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सिंके हुए बांस के कांप वाली जोधपुरी पतंग इंदौर की पसंदीदा बरेली के मांझे से लड़ाए जाएंगे पेंच….

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चील, परेल, कानबाज, नीलमपरी, चांदबाज, लिप्पू और डग्गा… ये पतंगों के नाम हैं जो उनके आकार, प्रकार और रंगों के आधार पर रखे गए थे। पुराने लोगों को आज भी इनकी पहचान है। पुरानी किस्म की पतंग जो जर्मनी ताव (राइस पेपर) से बनाई जाती थी वो आज भी बिकती हैं, लेकिन नए तरीकों से भी पतंग बनाई जा रही हैं।

शहर में संक्रांत और पतंगबाज़ी की तैयारी का जायज़ा लिया ताे हमने जाना कि इंदौर में सबसे ज्यादा जोधपुरी पतंग पसंद की जाती है। इसकी खासियत यह है कि इसमें लगी बांस की पतली किमची (कांप) सेंके और छिले हुए बांस की होती है। इससे हवा के दबाव को देर तक झेल पाती है और टूटती नहीं है। इसमें जाली और झालर लगी होती है। शहर में 3 रुपए से 300 रुपए तक की पतंग बिक रही है। जोधपुरी पतंग की शुरुआत 5 रुपए से होती है। सबसे महंगा बिकता है डग्गा। यह बड़े साइज़ की पतंग होती है। पैराशूट पतंग 300 रुपए में मिल रही है।

चाइनीज़ मांझा जिससे परिंदे और इंसान ज़ख्मी हो जाते हैं वह शहर में नहीं बिक रहा। बरेली का मांझा जो कपास से बनता है वह डिमांड में है। इसकी खासियत है कि तनने पर यह टूट जाता है पर नुकसान नहीं पहुंचाता। शहर में 50 रुपए से 1000 रुपए तक के हुचके मिल रहे हैं।

72 साल के साजिद हुसैन बचपन से पतंग उड़ाते आ रहे हैं। वे पतंगबाज के नाम से जाने जाते हैं और उनके पास इंदौर के मशहूर रशीद भाई के हाथ की बनी 60 साल पुरानी पतंग, सितारा, सिंघाड़ा, हंडीबाज और मैदानी पतंग आज भी रखी है। इन्हें एक पेटी में संभाल रखा है।विंदा त्रिवेदी 22 साल से पतंगबाज़ी कर रहे हैं। बताते हैं कि संक्रांत से सावन तक हर महीने उनका ग्रुप दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक किसी ग्राउंड या ऊंची जगह पर पतंग उड़ाने जाता है। 25 लोगों के इस ग्रुप में 5 से लेकर 75 साल के लोग हैं।

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