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एम्स में कमीशन का खुला खेल मरीज को बताए बिना एजेंट से मंगाकर लगाया इम्प्लांट पैसा न देने पर धमकाया…

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 भोपाल: ऑल् इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) में कमीशन का खुला खेल चल रहा है…और इसमें शामिल हैं वहीं के डॉक्टर। इन डॉक्टरों के एजेंट तय हैं…और कमीशन भी। क्योंकि यहां सर्जरी के दौरान लगाने जाने वाले इम्प्लांट मनचाही जगहों से बुलाए जाते हैं। कितना पैसा लगेगा, यह भी डॉक्टर सर्जरी के बाद ही बताते हैं। अगर मरीज या उनके परिजन यह पैसा देने में आनाकानी करते हैं ताे डाॅक्टर और एजेंट मिलकर न सिर्फ उन पर दबाव बनाते हैं, बल्कि एफआईआर दर्ज कराने की धमकी तक दे देते हैं। ये मजाक है उस पेशे के साथ…जिन्हें हम डॉक्टर के रूप में भगवान समझते हैं…देखिए वे कमीशन के लिए कैसी व्यूह रचना रचते हैं।

एम्स प्रबंधन ने मरीजाें की दवाइयाें और इम्प्लांट के लिए अमृत फार्मेसी अनुबंध किया हुआ है। इसके लिए एम्स परिसर में काउंटर भी खाेले गए हैं। अमृत फार्मेसी पर सभी दवाइयां व इम्प्लांट 40 प्रतिशत की छूट पर दिए जाते हैं। नियम के अनुसार डाॅक्टराें काे चाहिए कि दवाइयाें के साथ ही इम्प्लांट पर्चे पर लिख कर दें, ताकि मरीजाें के परिजन अमृत फार्मेंसी से ला सकें। अनुबंध के मुताबिक अमृत फार्मेसी इम्प्लांट के लिए मना नहीं कर सकता है। माैजूद नहीं है ताे एक-दाे दिन में बुलाकर देना हाेता है।

मंडीदीप निवासी 53 वर्षीय सीताराम सामरे काे रीढ़ की हड्डी में परेशानी थी। सीताराम सालभर से एम्स में इलाज करा रहे थे। पिछले दिनाें डाॅ. वीके वर्मा ने सर्जरी की जरूरत बताई थी। ऐसे में 14 जनवरी काे वे एम्स में भर्ती हुए थे। अगले दिन डाॅक्टर ने सर्जरी के लिए दवाइयां लिखीं। सीताराम के बेटे माेहित ने अमृत फार्मेंसी से दवाइयां लाकर दी। 4 घंटे चली सर्जरी के तत्काल बाद एक युवक माेहित के पास पहुंचा अाैर काेने में ले जाकर 34 हजार की मांग की। माेहित ने पूछा कैसे पैसे…ताे उसने कहा कि आपके पिता काे जाे इम्प्लांट लगाया गया है वह हमने सप्लाई किया है। माेहित ने हैरानी जताई और अस्पताल में काउंटर पर पेमेंट करने की बात कही ताे डाॅ. वीके वर्मा, डाॅ. मनाेज नागर और डाॅ. वैभव जैन ने एजेंट काे भुगतान करने के लिए दवाब बनाया।

एजेंट प्रतीक साेनी और माेहित पार्किंग में माैजूद हैं। यहां एजेंट उन्हें बार-बार यही समझा रहा है कि इम्प्लांट लगाने के लिए एम्स ने हमारे जैसी 10-12 फर्माें काे सूचीबद्ध किया हुआ है। जरूरत पर डाॅक्टर हमें सीधे फाेन करते हैं और हम उन्हें सप्लाई देते हैं। एजेंट प्रतीक साेनी(लाल स्वेटर में) माेहित काे लेकर यहां पहुंचा और डाॅ. वैभव जैन (एप्रिन में) अाैर मनाेज नागर काे बुलाया। दाेनाें डाॅक्टराें ने एजेंट काे पैसे देने के लिए माेहित को समझाया। साथ ही एजेंट से कहा कि अगर भुगतान नहीं करें ताे इनके खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज कराओ।

एजेंट प्रतीक साेनी पैसाें के भुगतान के लिए माेहित पर दवाब बना रहा है। उसने एक घंटे में पैसे का बंदाेबस्त करने काे कहा अाैर बिल बनाकर लाने का कहकर गया। शाम तक भुगतान नहीं हाेने पर बारबार फाेन करके धमकाता रहा है। डाॅक्टर मरीज काे लगने वाली दवाइयां के साथ ही दूसरी तमाम जरूरी सामान ताे एम्स के पर्चे पर लिखकर देते हैं, और उन्हीं के परिजनों से बुलवाते हैं। लेकिन, हकीकत यह है कि इम्प्लांट के लिए वे सीधे एजेंट काे फाेन कर देते हैं। इम्प्लांट के बारे में न ताे मरीज काे बताते हैं और न उनके परिजनाें काे।… यहां तक तो ठीक है। इसके बाद शुरू होती है कमीशनबाजी…  सर्जरी के बाद एजेंट ही मरीज के परिजनाें से पैसे की डिमांड करता है। अगर परिजन किसी तरह की ना-नुकुर करते हैं ताे डाॅक्टर एजेंट के साथ मिलकर दवाब बनाने हैं। इस मामले से जुड़े वीडियो भास्कर के पास मौजूद हैं।

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