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पंचमढ़ी

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पंचमढ़ी मध्य प्रदेश की सतपुड़ा पर्वतश्रेणी में समुद्र के तल से 3,500 फुट से 4,000 फुट तक की ऊँचाई पर नर्मदा नदी के निकट स्थित एक पहाड़ी स्थान है। इसका नाम ‘पांच मढ़ियों’ या प्राचीन गुफ़ाओं के कारण है, जो किंवदंती के अनुसार महाभारत कालीन हैं। कहा जाता है कि अपने एक वर्ष के अज्ञातवास के समय पांडव इन गुफ़ाओं में रहे थे। पंचमढ़ी को ‘मध्य प्रदेश की छत’ भी कहा जाता है।

इतिहास
पंचमढ़ी का नाम पाँच मढ़ियों या प्राचीन गुफ़ाओं के कारण पंचमढ़ी पड़ा है। यहाँ महादेव पहाड़ी के शैलाश्रयों में शैलचित्रों का भण्डार मिला है। इनमें से अधिकतर शैलचित्र पाँचवी से आठवीं शताब्दी के हैं, किंतु सबसे प्राचीन चित्र दस हज़ार साल पहले के माने जाते हैं। महादेव पर्वत शृंखलाओं में 5 मील (लगभग 8 कि.मी.) के घेरे में लगभग पचास शिलाश्रय चित्रित पाए गए हैं। इन गुफ़ा एवं चित्रों की खोज का श्रेय डॉ.एच. गार्डन को दिया जाता है। इन गुफ़ाओं के चित्र आदिकाल से ऐतिहासिक काल तक निरंतर रचे गए थे। पूर्वकाल के चित्र डमरुनुमा तथा तख्तीनुमा मानवाकार वाले हैं तथा बाद के काल के चित्र परिष्कृत रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। इस स्थल की मुख्य गुफ़ाएँ- इमली खोह, बनियाबेरी, मोण्टेरोजा, डोरोथीडीप, जम्बूदीप, निम्बूभोज, लश्करिया खोह, भांडादेव आदि हैं। पंचमढ़ी के चित्रकारों ने मानव जीवन के सामान्य जन-जीवन की झाँकी बखूबी चित्रित की है। इन गुफ़ाओं में शेर का आखेट, स्वस्तिक की पूजा, क्रीड़ा नर्तन, बकरी, सितार वादक, गर्दभ मुँह वाला पुरुष, तंतुवाद्य का वादन करते पुरुष, दिव्यरथवाही, धनुर्धर तथा अनेक मानव व पशुओं की आकृतियाँ चित्रित की गई हैं। सर्वाधिक चित्रण शिकार पर आधारित है

पंचमढ़ी झील
कुछ विद्वानों का यह मत भी है कि पंचमढ़ी की ये गुफ़ाएँ वास्तव में बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए बनवाई गई थीं। आधुनिक काल में पंचमढ़ी की खोज 1862 ई. में कैप्टन फोरसाइथ ने की थी। उन्होंने ‘हाइलैंड्स ऑफ़ सेंट्रल इंडिया’ नामक एक ग्रंथ भी लिखा था। उन्हें मध्य प्रान्त के चीफ़ कमिश्नर सर रिचर्ड टेम्पल ने सतपुड़ा की पहाड़ियों के इस भाग के अन्वेषण के लिए विशेष रूप से भेजा था।

आदिम जातियों का निवास
पंचमढ़ी में अब से लगभग सौ वर्ष पहले गोंड और कोरकू नामक आदिवासियों का निवास था। यहाँ की अनेक चट्टानों पर आदिम निवासियों के लेख पाये गए हैं। उनके चित्र भी शिलाओं पर उत्कीर्ण हैं, जिनके विषय मुख्यत: ये हैं- गाय, बैल, घोड़ा, हाथी, माला, रथ, रणभूमि के दृश्य तथा शिकार। गोंडों के इतिहास के ज्ञाताओं का कथन है कि गोंडों में प्रचलित किंवदंती में उनके जिस मूल स्थान काचीकोपालोहागढ़ का उल्लेख है, वह पंचमढ़ी का बड़ा महादेव और चौरागढ़ ही है। चौरागढ़ आज भी गोंडों का प्रसिद्ध देव स्थान है। यहाँ के देवालय में शिव की मूर्ति है, जिस पर भक्त लोग त्रिशूल चढ़ाते हैं। बेतवा (वेत्रवती) नदी का उद्गम पंचमढ़ी के निकट स्थित धूपगढ़ शिखर से हुआ है, जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से 4454 फुट है

महत्त्वपूर्ण जानकारी
अनुमानित दूरी
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 200 पिपरिया से 47 कि.मी. की दूरी पर पंचमढ़ी स्थित है।

कैसे पहुँचें
पंचमढ़ी पहुँचने के लिए निकटम रेलवे स्टेशन पिपरिया, इटारसी है। निकटतम हवाई अड्डा भोपाल है। पंचमढ़ी भोपाल, इंदौर, पिपरिया, नागपुर से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।

कहाँ ठहरें
पंचमढ़ी में ठहरने के लिए काफ़ी होटल हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक अपने बजट के हिसाब से उनमें ठहर सकते हैं। ‘मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम’ के होटल भी यहाँ सर्वसुविधायुक्त हैं।

कैसे घूमें
पंचमढ़ी के दर्शनीय स्थलों को घुमाने के लिए जीप सुविधा उपलब्ध रहती है

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