नागदा शहर…मध्य प्रदेश के उज्जैन से 60 किलोमीटर दूर चंबल नदी के किनारे की बसाहट. इस औद्योगिक नगरी को प्रदूषित हवा, पानी और मिट्टी ने जकड़ रखा है. आसपास के 14 गांवों में हालात बेहद खराब हैं. इन गांवों में लोग युवावस्था में ही बूढ़े दिखने लगे हैं. उनकी आंखें खराब हो रही हैं. अंग बेकार हो रहे हैं जबकि कुछ तो कैंसर की गिरफ्त में आ चुके हैं.
नागदा में चंबल नदी के डाऊन स्ट्रीम पर स्थित सबसे पहले गांव परमारखेड़ी में तो हालात और भी बुरे हैं. हाल ही में जब केंद्रीय और मध्यप्रदेश प्रदूषण विभाग की टीम परमारखेड़ी पहुंची तो यहां रहने वाली शारदा को देखकर हैरान रह गई. शारदा की उम्र 27 वर्ष है, लेकिन वो इस उम्र में ही बुजुर्ग नजर आती है.
परमारखेड़ी गांव में 177 घर हैं और यहां 48 से ज्यादा लोग दिव्यांग हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि यहां बच्चे स्वस्थ पैदा होते हैं, लेकिन फैक्ट्रियों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के कारण वो दिव्यांग हो गए हैं. इसका जीता जागता उदाहरण गांव के ही कालूसिंह का परिवार है.कालूसिंह बताते हैं कि उनके परिवार के तीन बच्चे 1995 तक ठीक थे, लेकिन प्रदूषित पानी के सेवन के कारण उनके 29 साल के बड़े बेटे मानसिंह, 27 साल की बेटी शारदा और 25 साल का बेटा कन्हैया शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग हो गए हैं. अब तीनों ही अपने पैरों पर ना तो खड़े हो पाते हैं, ना ही सही से बोल पाते हैं.
परमारखेड़ी की ही तरह नागदा औद्योगिक क्षेत्र का एक और इलाका है मेहतवास. यहां लोगों का कहना है कि प्रदूषण की वजह से उनके बीच कैंसर फैल रहा है. स्थानीय लोग इसे कैंसर कॉलोनी ही बुलाते हैं. यहां लगभग 300 परिवार रहते हैं और तकरीबन हर चौथे घर में कैंसर मरीज है. 2010 में स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में 12 लोगों की मौत कैंसर से होने का खुलासा हुआ था. इसके बाद के वर्षों में कैंसर से और 17 मौतें हो चुकी हैं और कई लोग कैंसर से अभी भी जूझ रहे हैं.
नागदा औद्योगिक नगरी में कई छोटे-बड़े उद्योग हैं. यहां थर्मल पावर प्लांट, केमिकल प्लांट, विस्कस फाइबर के अलावा कई कपड़ा मिल भी हैं. इस औद्योगिक शहर के आसपास एक लाख से ज्यादा लोगों की बसाहट है, लेकिन यहां ड्रेनेज की सही व्यवस्था ना होने के कारण उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट सीधे चंबल नदी और आसपास के खेतों में फैलता है. इस ओर पहले तो किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे औद्योगिक अपशिष्ट ही लोगों के लिए धीमा जहर बन गया.
यहां के हालात पर शोध कर रहे एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि नागदा में ड्रेनेज की व्यवस्था सही नहीं होने से इन उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट चंबल नदी में बहाया गया. चूंकि यह इलाका चंबल नदी के पानी पर आश्रित है इसलिए लोग नदी का पानी पीने और खेती की जमीन पर इस्तेमाल करने लगे. समय के साथ जहरीला पानी जमीन के अंदर भी पहुंचा और जमीन बंजर हो गई. भूजल भी प्रदूषित हो गया. साथ ही फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं भी लोगों की बीमारी की वजह बना.
स्थानीय पत्रकार प्रकाश जैन ने बताया पहले नागदा में सोयाबीन, मटर, टमाटर, चने की खेती बड़े पैमाने पर होती थी, लेकिन जहरीले पानी के जमीन में जाने के कारण कई इलाके बंजर हो गए. खेतों पर केमिकल की परत नजर आती है. फसल भी नहीं उग पाती है.
नागदा के आसपास चंबल से सटे इलाकों की जमीन पर खेती की हालत पर 2018 में इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में एक रिसर्च भी पब्लिश हो चुकी है. रिसर्च स्कॉलर विनोद कुमार धाकड़, डॉ. पराग दलाल और डॉ. जे.के श्रीवास्तव ने अपनी संयुक्त रिसर्च में बताया कि चंबल के अपर स्ट्रीम और डाउन स्ट्रीम से पानी और मिट्टी के सैंपल लिए गए थे इसमें यह पता लगा कि फैक्ट्रियों के अपशिष्ट मिलने की वजह से पानी जहरीला हो गया. पानी में लेड, नाइट्रेट, फ्लोराइड समेत कई जहरीले तत्व मिले. इसी पानी से खेतों में सिंचाई की गई जिस कारण जमीन की उर्वरक क्षमता प्रभावित हो गई.
एक इंटरनेशनल साइंटिफिक जनरल में छपी रिपोर्ट में बताया गया कि चंबल नदी के डाउन स्ट्रीम के परमारखेड़ी, राजगढ़, अटलावदा, बनवाड़ा, निनावटखेड़ा, जूना नागदा सहित 14 गांव चंबल नदी पर ही निर्भर हैं. यहां सिंचाई और पीने के पानी का स्त्रोत भी चंबल ही है, लेकिन औद्योगिक नगरी से निकलने वाले अपशिष्ट ने पानी को प्रदूषित और जमीन को बंजर कर दिया है.