बिहार की राजनीति में गुरुवार को जो कुछ हुआ वो सरकर और राजनीति के लिए काफ़ी अहम है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक अनोखा फैसला करते हुए पश्चिम चम्पारण के भितिहरवा कन्हैया कुमार और कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान की ‘संविधान बचाओ, नागरिकता बचाओ यात्रा’ को निकालने की इजाजत दी और साथ ही सभा भी करने दिया. इसके पहले जिला प्रशासन ने इस यात्रा को रुकवाकर सभी को हिरासत में ले लिया था और इसके बाद वहां काफी ड्रामा हुआ. पश्चिम चंपारण के जिलाधिकारी ने एक दिन पहले ही इस यात्रा की अनुमति दी थी. लेकिन बाद में प्रशासन ने अपने ही फैसले को पलटते हुए सभी को आदेश दिया कि जहां जगह से यात्रा शुरू होनी है वहीं से जिले से बाहर चले जाएं. कन्हैया कुमार और शकील अहमद सहित सभी लोग गांधी आश्रम में धरने पर बैठ
गये और उनका आरोप था कि स्थानीय सांसद और बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल के इशारे पर हो रहा है. लेकिन गुरुवार को जैसे ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस पूरे घटनाक्रम की ख़बर मिली, उन्होंने अधिकारियों को जमकर डांटा और साफ़ साफ़ कहा कि विरोध और आंदोलन करने का सबको अधिकार है. प्रशासन का काम है कि वो सभी की सुरक्षा सुनिश्चहित करें.
नीतीश का ये संदेश जैसे ही ज़िला अधिकारी को मिला आयोजकों के मुताबिक उनके सुर बदल गये और आंदोलनकारियों की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई. इतना ही नहीं जहां-जहां सभा निर्धारित थी वहां भी शांति बनी रही. इसके बाद कन्हैया कुमार और शकील अहमद खान ने नीतीश कुमार को धन्यवाद कहते हुए कहा कि बीजेपी की एक बड़ी साज़िश नाकाम हो गई. लेकिन बीजेपी के नेताओं का मानना था कि जो भी हुआ ग़लत हुआ और इस नीतीश कुमार के फैसले से वह हैरान नजर आए. लेकिन इस घटनाक्रम से फिर साबित होता हैं कि बिहार में सरकर के बॉस नीतीश कुमार थे और हैं.