साढ़े चार सौ मेगावाट के शोंगटोंग पावर प्रोजेक्ट के तहत बनने वाली सिल्ट फ्लश टनल के निर्माण में फंसा बड़ा पेच हट गया है। वीरवार को नई दिल्ली में प्रदेश सरकार, रक्षा मंत्रालय और सेना के अधिकारियों के बीच हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में टनल के लिए ब्लास्टिंग और डंपिंग साइट पर सहमति बन गई है। सेना की ओर से ब्लास्टिंग की मंजूरी और मलबा डंप करने के लिए जगह न देने की वजह से पिछले लंबे समय से इस प्रोजेक्ट की टनल के निर्माण का काम रुका हुआ था।
अब बैठक में डंपिंग के लिए जगह मुहैया कराने की मंजूरी निर्माण एजेंसी को सेना ने दे दी है। करीब ढाई हजार करोड़ की लागत से तैयार किए जाने वाले 450 मेगावाट क्षमता के शोंगटोंग कड़छम प्रोजेक्ट के निर्माण में पिछले लंबे समय से पेच फंसा हुआ था। जिस क्षेत्र में इस टनल का मुहाना खोलने के लिए ब्लास्ट किया जाना था, उसके नजदीक ही सेना का आयुध डिपो है। चूंकि, उस क्षेत्र में सेना से वर्क्स ऑफ डिफेंस एक्ट 1903 के तहत अनुमति लेना जरूरी है, ऐसे में सेना ने इस क्षेत्र में ब्लास्टिंग की मंजूरी नहीं दी। साथ ही सेना ने अपने आयुध डिपो के नजदीक प्रोजेक्ट निर्माण के दौरान डंपिंग साइट उपलब्ध कराने से भी इंकार कर दिया था।
प्रोजेक्ट में पानी की टनल तो बनकर तैयार हो गई थी लेकिन, सिल्ट फ्लश टनल का निर्माण अटक गया था। वीरवार को प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त मुख्य सचिव ऊर्जा राम सुभग सिंह के अलावा पावर कारपोरेशन व प्रोजेक्ट के अधिकारियों ने रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार के अलावा सेना के दो मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक में दोनों ही बिंदुओं पर लंबी चर्चा के बाद सेना ने डंपिंग साइट की अनुमति दे दी।
साथ ही तय हुआ कि ब्लास्टिंग से पहले रक्षा मंत्रालय के सेंटर फार फायर एक्सप्लोसिव एंड एनवायरमेंट सेफ्टी की रिपोर्ट ली जाएगी। उसकी रिपोर्ट में अगर कोई सवाल नहीं उठता है तो मंजूरी दे दी जाएगी। ऊर्जा विभाग कहता आया है कि ब्लास्टिंग साइट आयुध डिपो से दूर है लेकिन, सेना के अधिकारी इस बात पर राजी नहीं हो रहे थे। चूंकि मामला कभी सचिव स्तर पर डील नहीं हुआ, इसलिए निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा था। अब दोनों सरकारों के सचिवों और अन्य अधिकारियों से चर्चा करने के बाद बीच का रास्ता निकला है।