मप्र हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने एक मामले में माध्यमिक शिक्षा मंडल (माशिमं) की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि बोर्ड की गंभीर लापरवाही के चलते एक मेधावी छात्रा को गहरा मानसिक आघात पहुंचा। जिस छात्रा को दसवीं बोर्ड के गणित विषय में 93 अंक मिले थे, उसे केवल 10 अंक दिए गए।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने कहा कि छात्रा की कोई गलती नहीं होते हुए भी उसे कोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी। तनाव में इतना समय काटना पड़ा। इसके लिए कहीं न कहीं बोर्ड जिम्मेदार है। छात्रा न केवल अदालती खर्च वरन हर्जाना पाने की भी हकदार है। कोर्ट ने माशिमं को एक माह के भीतर छात्रा को 30 हजार रुपए बतौर हर्जाना भुगतान करने के आदेश दिए।
पिछले साल सिलवानी की रहने वाली खुशी सोनी ने दसवीं की बोर्ड परीक्षा दी थी। जब रिजल्ट आया, तो उसके होश उड़ गए। उसे गणित में 100 में से 10 अंक मिले थे। छात्रा सीधे हाईकोर्ट पहुंची। याचिका दायर कर खुशी ने कोर्ट से अपील की कि उसकी उत्तर पुस्तिका किसी से बदली गई है। इसकी जांच कराएं। कोर्ट ने माशिमं से जांच कराई तो पता चला कि खुशी की पूरी आंसरशीट एक अन्य छात्रा रजनी हरदयाल से बदल दी गई थी।
इन्हें देखकर बोर्ड के ओआईसी इब्राहिम नंद से पूछा- जिसने अंकसूची बदलने का अनैतिक कार्य किया है, उसे क्या सजा दी गई। नंद ने बताया कि सिलवानी के पुष्पा हाईस्कूल में बने परीक्षा केंद्र में दोनों छात्राओं की कॉपी में अंकित एनरोलमेंट नंबर के आखिरी दो अंक बदल दिए गए थे। मामले में केंद्राध्यक्ष पीके नीखरा, सहायक केंद्राध्यक्ष शरद मालवीय, पर्यवेक्षक ललित शाक्य, मूल्याकंन अधिकारी अनिल खंतवाल, मुख्य परीक्षक महेंद्र सिंह रघुवंशी, उपमुख्य परीक्षक महेंद्र जैन और परीक्षक राजाराम सेन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है।
खुशी सोनी- रिजल्ट देखते ही मैं रोने लगी क्योंकि मुझे पूरा विश्वास था कि गणित में मुझे 90 से ज्यादा मार्क्स मिलेंगे। कॉपी देखते ही मैंने पापा से कहा कि यह मेरी राइटिंग नहीं है। जब तक सही रिजल्ट नहीं आ गया, तब तक मैं बहुत टेंशन में रही और शुरू में तो कई बार रात को सो नहीं पायी।’ (जैसा छात्रा ने भास्कर को बताया)