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Cong-BJP दोनों की एक-एक सीट पक्की लेकिन तीसरी सीट पर क्रॉस वोटिंग का खतरा..

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मध्यप्रदेश में तीन सीटों में से एक-एक सीट भाजपा और कांग्रेस के खाते में जाएगी। जबकि तीसरी सीट के लिए भी कांग्रेस का पक्ष मजबूत है, इसके बाद भी भाजपा उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है। हालांकि इस तीसरी सीट के लिए क्रॉस वोटिंग की आशंका से कांग्रेस की चिंता बढ़ सकती है। एक राज्यसभा सीट के लिए 58 वोटों की जरूरत है। एक-एक सीट पर वोट डलने के बाद कांग्रेस के पास 56 वोट बचेंगे और भाजपा के पास 49 वोट। लिहाजा भाजपा को नौ और कांग्रेस को दो वोटों की जरूरत पड़ेगी। चूंकि प्रदीप जायसवाल बतौर मंत्री सरकार में शामिल हैं, इसलिए कांग्रेस को एक ही वोट की जरूरत पड़ेगी।

तीसरी सीट पर यदि पांच विधायक भी क्रॉस वोटिंग करते हैं तो भाजपा जीत जाएगी, क्योंकि इस तीसरी सीट के लिए कांग्रेस के पास 56 और भाजपा के पास 49 वोट हैं। 5 वोट क्रॉस होने पर भाजपा के वोट 54 हो जाएंगे और कांग्रेस के 51 रह ही जाएंगे।  कांग्रेस की मुश्किल यह है कि वह चाहे तो भी विधायकों के खिलाफ दल-बदल निरोधक कानून का इस्तेमाल कर उन्हें अयोग्य करार नहीं कर सकती, क्योंकि ऐसा होने पर सदन में सरकार अल्पमत में आ जाएगी। एेसे में कांग्रेस की मजबूरी विधायकों को हर हाल में अपने साथ बनाकर रखने की है।

तीसरी सीट के लिए भाजपा पर भी क्रॉस वोटिंग का खतरा है क्याेंकि यदि कांग्रेस प्रथम वरीयता के वोटों से जीतना चाहती है तो उसे भाजपा का 1 वोट लेना होगा। यदि किसी भी दल की क्रॉस वोटिंग नहीं हुई तो तीसरी सीट का फैसला दूसरी वरीयता के वोटों के आधार पर होगा।

प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने से तीन सीटों में से दो उसके खाते में जा सकती हैं। इन पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की ही चर्चा है। वहीं, कुछ दिन पहले मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, बाला बच्चन और जयवर्द्धन सिंह समेत पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने प्रियंका गांधी को मप्र कोटे से राज्यसभा में भेजे जाने के लिए खुलकर मैदान में आ गए थे। इधर, मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने मीडिया से चर्चा में सिंधिया को राज्यसभा के लिए परफेक्ट बताया।

रिक्त होने वाली सीटों में दो भाजपा की हैं। इसमें प्रभात झा व सत्यनारायण जटिया का कार्यकाल पूरा हो रहा है। दोनों के दो कार्यकाल हुए हैं। भाजपा में परंपरा रही है कि तीसरा कार्यकाल आमतौर पर नहीं मिलता। स्व. अनिल माधव दवे ही अपवाद रहे। माना जा रहा है कि प्रभात झा के लिए संघ से दबाव नहीं बनता है तो इस बार दावेदारों में सबसे आगे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ही रहेंगे।

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