कांग्रेस के ‘हाथ’ का साथ छोड़कर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. सिंधिया के 22 कांग्रेसी समर्थकों ने अपना इस्तीफा दे दिया है, जिसके चलते कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. ऐसे में कमलनाथ सरकार का सियासी भविष्य अब फैसला विधानसभा अध्यक्ष के हाथों में है. राजनीतिक संकट के दौर में विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति की भूमिका सबसे अहम हो गई है और जिसके चलते उन्हें कमलनाथ सरकार के लिए संकटमोचक माना जा रहा है.
बता दें कि कर्नाटक में पिछले साल ऐसा ही सियासी संकट गहराया था, जिसमें विधानसभा अध्यक्ष ने काफी अहम भूमिका निभाई थी. स्पीकर ने अपने अधिकारों के उपयोग करके कई दिनों तक कुमारस्वामी की सरकार को बचाए रखा था, लेकिन कांग्रेस-जेडीएस अपने-अपने बागी विधायकों को मना नहीं सकी थी. इसके चलते सदन में कुमारस्वामी बहुमत सिद्ध नहीं कर सके और सत्ता गंवानी पड़ी थी.
कर्नाटक की तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी विधानसभा अध्यक्ष कमलनाथ सरकार के संकट को कई दिनों तक टाल सकते हैं. कांग्रेस भी ज्यादा से ज्यादा समय लेना चाहती है, ताकि रूठे विधायकों को मनाया जा सके. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह खुद कह चुके हैं कि अब विधानसभा स्पीकर एनपी प्रजापति के हाथों में विधायकों में इस्तीफा है. ऐसे में वो एक-एक विधायकों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर निर्णय लेंगे यह उन पर निर्भर करेगा.
दरअसल किसी भी सदस्य (विधायक) ने विधानसभा से इस्तीफा दिया है तो उससे विधानसभा अध्यक्ष का संतुष्ट होना जरूरी होगा. ऐसे में स्पीकर संतुष्ट हैं, तो इस्तीफा स्वीकार कर सकते हैं. यदि अध्यक्ष को लगता है कि इस्तीफा दबाव डालकर दिलवाया गया है, तो वे सदस्य से बात कर सकते हैं या उसे अपने सामने उपस्थित होने के लिए कह सकते हैं, उसके बाद संतुष्ट होने पर ही अगली कार्रवाई को आगे बढ़ाया जा सकेगा. इस प्रक्रिया के लिए स्पीकर वक्त ले सकते हैं.
विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफा देने वाले विधायकों को कर्नाटक की तरह विधानसभा के पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्य घोषित कर सकते हैं. स्पीकर अगर ऐसे करते हैं तो विधायक कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं, जिस प्रकार कर्नाटक के विधायकों ने किया था.
कर्नाटक में विधानसभा अध्यक्ष ने इस्तीफा देने वाले सदस्यों को पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया और सदस्यता से अयोग्य ठहराए गए विधायकों को सुप्रीम कोर्ट ने सही माना था और उपचुनाव लड़ने की मंजूरी दे दी थी. हालांकि इसके लिए अच्छा खासा समय लग सकता है. ऐसे में अब देखना है कि मध्य प्रदेश विधानसभा के स्पीकर एनपी प्रजापति क्या सियासी कदम उठाते हैं.