पापमोचनी एकादशी, नाम के अनुसार ही इस व्रत को करने वालों के सभी पाप कट जाते हैं. पुराणों में इस व्रत का महात्म्य बताया गया है. कहा जाता है कि विकट से विकट स्थिति में भी पापमोचनी एकादशी से हरि कृपा आवश्य मिलती है.
व्रतों में नवरात्रि, पूर्णिमा, अमावस्या और एकादशी मुख्य व्रत हैं. इसमें सबसे बड़ा व्रत एकादशी का माना जाता है. एकादशी के व्रत से चंद्रमा के हर खराब प्रभाव को रोका जा सकता है. एकादशी व्रत से ग्रहों के बुरे प्रभाव को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है. इस व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर पर पड़ता है. इससे अशुभ संस्कारों को भी नष्ट किया जा सकता है.
चैत्र मास की यह एकादशी फलदायी है. श्री हरि की कृपा का उत्तम दिन है पापमोचनी एकादशी. चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है. व्यक्ति के सारे पापों को नष्ट करने की क्षमता के कारण ये पापमोचनी एकादशी कहलाती है. इस व्रत से व्यक्ति पाप मुक्त हो सकता है और उसे संसार के सारे सुख प्राप्त हो सकते हैं.
पापमोचनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पीले फुलों से पूजा करने पर उनकी कृपा बरसती है. इस दिन नवग्रहों की पूजा से सभी ग्रह शुभ परिणाम देते हैं.
साल भर में कुल 24 एकादशी आती हैं और हर एकादशी का अपना अलग महत्व है. ज्योतिष के विशेषज्ञों के अनुसार एकादशी के व्रत का सीधा असर मन और दिमाग पर पड़ता है. साथ ही मिलती है श्री हरि की कृपा. इस भगवान विष्णु की चतुर्भुज रूप की पूजा करें.
उन्हें पीले वस्र धारण कराएं और सवा मीटर पीले वस्त्र पर उन्हें स्थापित करें. दाएं हाथ में चंदन और फूल लेकर सारे दिन के व्रत का संकल्प लें. भगवान को 11 पीले फल, 11 फूल और 11 पीली मिठाई अर्पित करें. इसके बाद उन्हें पीला चंदन और पीला जनेऊ अर्पित करें. इसके बाद पीले आसन पर बैठकर भगवत कथा का पाठ या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. प्रार्थना कहें आपके मन की इच्छा जरूर पूरी होगी.