राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा मनोनीत सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रंजन गगोई ने राज्यसभा सदस्य के तौर पर शपथ ले ली है. बता दें कि उनको राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाने के बाद से ही विवाद हो रहा है. हालांकि विवादों के बीच उन्होंने आखिरकार पद की शपथ ले ली है और वह राज्यसभा मेंमबर बन गए हैं.
रंजन गोगोई के राज्यसभा सदस्य मनोनित होने का विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस ने रंजन गोगोई के मनोनीत होने पर हमला बेलते हुए से पांच सवाल पूछे थे. कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ”रंजन गोगोई कृपया यह भी बताएं कि अपने ही केस में खुद निर्णय क्यों? लिफाफा बंद न्यायिक प्रणाली क्यों? चुनावी बॉन्ड का मसला क्यों नहीं लिया गया? राफेल मामले में क्यों क्लीन चिट दी गई? सीबीआई निदेशक को क्यों हटाया गया?”
शिवसेना के संजय राउत ने उनके नामांकन पर सवाल खड़े किए. संजय राउत ने कहा कि जो व्यक्ति CJI के पद पर रहा हो उसे राजनीति से दूरी बनाए रखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि सीजेआई के साथ हमेशा न्याय का तराज़ू ही अच्छा लगता है और अच्छा लगता रहेगा, लेकिन आजकल सीजेआई राजनीति में दिलचस्पी दिखा रहे हैं जो कि अपने आप में हैरानी की बात है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा में मनोनीत किये जाने को लेकर विपक्षी पार्टियां सवाल उठा रही हैं. इस फेहरिस्त में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस भी हैं. पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसफ ने मंगलवार को हैरानी जताते हुए कहा कि गोगोई द्वारा इस मनोनयन को स्वीकार किये जाने ने न्यायापालिका में आम आदमी के विश्वास को हिला कर रख दिया है.
उन्होंने कहा, ”जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस गोगोई, मैंने और जस्टिस मदन बी लोकुर ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाई थी. 12 जनवरी 2018 की हमारी प्रेस कांफ्रेंस में जस्टिस गोगोई के शब्द थे- हमने देश के प्रति अपना कर्ज़ चुकाया है.”
इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च में प्रोफेसर मधु किश्वर ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामांकन को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है. ये याचिका 20 पेजों की है. इस याचिका को किसी वकील की मदद से तैयार या दायर नहीं किया गया है. मधु किश्वर ने अपनी याचिका में कहा है कि भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामंकित करना एक राजनीतिक नियुक्ति जैसा लग रहा है. उन्होंने अपनी याचिका में ये भी बताया है कि गोगोई ने अपने कार्यकाल में कुछ ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं. इस तरह की नियुक्ति से सुप्रीम कोर्ट में उसकी अध्यक्षता में दिए गए निर्णयों की विश्वसनीयता पर लोगों को संदेह हो सकता है