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माखन लाल चतुर्वेदी

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माखन लाल चतुर्वेदी जन्म- 4 अप्रैल, 1889 बावई, मध्य प्रदेश; (मृत्यु- 30 जनवरी, 1968) सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे हिन्दी रचनाकार थे। इन्होंने हिन्दी एवं संस्कृत का अध्ययन किया। ये ‘कर्मवीर’ राष्ट्रीय दैनिक के संपादक थे। इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इनका उपनाम एक भारतीय आत्मा है। राष्ट्रीयता माखन लाल चतुर्वेदी के काव्य का कलेवर है तथा रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा है।

माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है।

माखनलाल चतुर्वेदी का तत्कालीन राष्ट्रीय परिदृश्य और घटनाचक्र ऐसा था जब लोकमान्य तिलक का उद्घोष- ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ बलिपंथियों का प्रेरणास्रोत बन चुका था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र का सफल प्रयोग कर कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी का राष्ट्रीय परिदृश्य के केंद्र में आगमन हो चुका था। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए स्वदेशी का मार्ग चुना गया था, सामाजिक सुधार के अभियान गतिशील थे और राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता की चाह के रूप में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई थी।

ऐसे समय में माधवराव सप्रे के ‘हिन्दी केसरी’ ने सन १९०८ में ‘राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। अप्रैल १९१३ में खंडवा के हिन्दी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका ‘प्रभा’ का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी को सौंपा गया।

स्वाधीनता के बाद जब मध्य प्रदेश नया राज्य बना था तब यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि किस नेता को इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी जाय? किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बनी। तीन नाम उभर कर सामने आये पहला पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, दूसरा पंडित रविशंकर शुक्ल, और तीसरा पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा । कागज़ के तीन टुकडो पर ये नाम अलग अलग लिखे गए। हर टुकड़े की एक पुडिया बनायी गयी। तीनो पुड़ियाये आपस में खूब फेंटी गयी फिर एक पुडिया निकाली गयी जिस पर पंडित माखन लाल चतुर्वेदी का नाम अंकित था। इस प्रकार यह तय पाया गया कि वे नवगठित मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री होंगे।

तत्कालीन दिग्गज नेता माखनलाल जी के पास दौड़ पड़े। सबने उन्हें इस बात की सुचना और बधाई भी दी कि अब आपको मुख्यमंत्री के पद का कार्यभार संभालना है। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने सबको लगभग डांटते हुए कहा कि मैं पहले से ही शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते “देवगुरु” के आसन पर बैठा हूँ। मेरी पदावनति करके तुम लोग मुझे “देवराज” के पद पर बैठना चाहते हो जो मुझे सर्वथा अस्वीकार्य है । उनकी इस असहमति के बाद रविशंकर शुक्ल को नवगठित प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया।

20वीं शती के प्रथम दशक में ही चतुर्वेदी जी ने कविता लिखना आरंभ कर दिया था, पर आज़ादी के संघर्ष में सक्रियता का आवेश शनै:-शनै: उम्र के चढ़ाव के साथ परवान चढ़ा, जब वे बाल गंगाधर तिलक के क्रांतिकारी क्रिया-कलापों से प्रभावित होने के बावजूद महात्मा गाँधी के भी अनुयाई बने। आपने राष्ट्रीय चेतना को राजनैतिक वक्तव्यों से बाहर निकाला।हिंदी साहित्य में Neo-Romanticism अभियान के लिये वे जाने जाते है. 1955 में हिंदी के हिम तरिंगिनी में उनके अतुल्य कामो के लिये उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया था. 1963 में भारत सरकार ने उन्हें भारत का नागरिकत्व पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया.

साहित्यिक योगदान : माखनलाल चतुर्वेदी जी सच्चे देशप्रेमी थे। माधवराव सप्रे के ‘हिन्दी केसरी’ ने सन् 1908 में ‘राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया।अप्रैल 1913 में खंडवा के हिन्दी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका ‘प्रभा’ का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी को सौंपा गया। अग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखने और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण ‘प्रभा’ का प्रकाशन बंद हो गया था।

सन् 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलालजी ने गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गाँधी से मुलाकात की। सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन और सन् 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय योगदान दिया और अंग्रेजी हुकूमत को पहली गिरफ़्तारी देने का सम्मान पाया। सन् 1913 में कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा ‘प्रताप’ का संपादन एवं प्रकाशन प्रारंभ किया गया। गणेश शंकर विद्यार्थी के देशप्रेम और सेवाभाव से माखनलाल जी बहुत प्रभावित हुए।

सन् 1924 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी की गिरफ़्तारी के बाद इन्होंने ‘प्रताप’ का सम्पादकीय कार्य- भार संभाला। सन् 1919 में ये जबलपुर से ‘कर्मवीर’ राष्ट्रीय दैनिक के संपादक रहे। सप्रेजी की मृत्यु के बाद 4 अप्रैल 1925 को  जब खंडवा से माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कर्मवीर’ का  पुनः प्रकाशन किया तब उनका आह्वान था- “आइए, गरीब और अमीर, किसान और मजदूर,  ऊँच और नीच, जीत और पराजित के भेदों को ठुकराइए। प्रदेश में राष्ट्रीय ज्वाला जगाइए और देश तथा संसार के सामने अपनी शक्तियों को ऐसा प्रमाणित कीजिए, जिसका आने वाली संतानें स्वतंत्र भारत के रूप में गर्व करें।”

माखनलाल जी जैसा बोलते थे, वैसा ही लिखते थे। उनका भाषण भी काव्यमय होता था। ऎसे व्यक्ति को कलम के धनी या वाणी के धनी कहने से काम नहीं चलता। शायद कोई शब्द या शब्द-समूह उन्हें व्याख्यायित नहीं कर सकता। सन १९६५ में खंडवा में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र ने उनका सार्वजनिक सम्मान किया था। वे बहुत बीमार और अशक्त थे। तब सम्मान के जवाब मे जो उन्होंने कहा, वह उनकी दृष्टि की विराटता, संवेदना की व्यापकता और मानवीय मूल्यवत्ता का शायद आखिरी वक्तव्य है।

उन्होंने कहा- ‘जहां कहीं मनुष्य का अपने अभिमत के प्रति समर्पण हैं, जहां कहीं जीवन की श्रम से आराधना है, जहां कहीं उत्सर्ग और बलिदान के मोमदीप अंधकार को अपनी बलि दे रहे है, जहां कहीं नगण्यता गण्यमान्यता को चुनौती दे रही है, जहां कहीं हिमालय की रक्षा में सिरों को हथेलियों पर लेकर मरण-त्यौहार मनानेवाली जवानियां है और जहां कहीं पसीना ही नगीना बना हुआ है, वहीं पर, केवल वहीं पर, आपका माखनलाल दीखते हुए या न दीखते हुए भी उपस्थित रहना चाहता है।

माखनलाल जी गांधीवादी थे, यह सही है। पर वे इस सीमा में बंधे नहीं थे। वे विद्रोही थे। उनमें वैष्णव मधुर साधना, समर्पण आदि है। उन पर सूफ़ी प्रभाव भी है। पर एक बड़ी महत्वपूर्ण बात है। इस गांधीवाद और वैष्णववाद के साथ ही वे सामाजिक क्रांतिकारी भी थे। उन्होंने रूस की समाजवादी क्रांति के समर्थन में ‘ कर्मवीर’ में लिखा है। वे लेनिन को ‘महात्मा’ लिखते थे और ‘कर्मवीर’ में लेनिन की पत्नी क्रुप्सकाया के संस्मरणों के आधार पर उन्होंने लेनिन के बारे में काफ़ी लिखा है। 1943 में उस समय का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा देव पुरस्कार माखनलालजी को हिम किरीटिनी पर दिया गया था।

1954 में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की स्थापना होने पर हिन्दी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार दादा को हिमतरंगिनी के लिए प्रदान किया गया। पुष्प की अभिलाषा और अमर राष्ट्र जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया। 1963 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से अलंकृत किया।

10 सितंबर 1967 को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलालजी ने यह अलंकरण लौटा दिया। हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूँजे धरा, बीजुरी काजल आँज रही आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं। कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पाँव, अमीर इरादे :गरीब इरादे आदि आपकी प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियाँ हैं।

साहित्य में स्थान-माखनलाल चतुर्वेदी कवि होने के साथ-साथ एक पत्रकार, निबंधकार और सफल संपादक भी थे। अतः उनकी साहित्य सेवा बहुमुखी थी। उनके व्यक्तित्व की तेजस्विता और फक्कड़पन उनके काव्य में भी सर्वत्र प्रतिबिंबित हुए हैं। स्वाभिमानी और स्पष्टवादी होने के साथ में अति भावुक भी थे यही कारण है कि उनकी काव्य रचनाओं में जहां एक ओर आग है तो दूसरी और करुणा की भागीरथी भी है।

इन्होंने त्याग, बलिदान, देशभक्ति का अनूठा संगम हिंदी काव्य सरिता को प्रदान किया है। शब्द उनकी भावनाओं का अनुगमन करते प्रतीत होते हैं। उनकी साहित्य सेवा को भारत सरकार ने पद्म भूषण की उपाधि तथा सागर विश्वविद्यालय में डी लिट् की उपाधि द्वारा सम्मानित किया। इनका निधन सन 1968 में हुआ।

पुष्प की अभिलाषा :

चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी माला में, बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं सम्राटों के, शव पर हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर पर, चढूँ भाग्य पर इतराऊँ

मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक

कविताएँ :

• एक तुम हो .
• लड्डू ले लो .
• दीप से दीप जले .
• मैं अपने से डरती हूँ सखि .
• कैदी और कोकिला .
• कुंज कुटीरे यमुना तीरे .
• गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीर .
• सिपाही .
• वायु .
• वरदान या अभिशाप? .
• बलि-पन्थी से .
• जवानी .
• अमर राष्ट्र .
• उपालम्भ .
• मुझे रोने दो .
• तुम मिले .
• बदरिया थम-थमकर झर री ! .
• यौवन का पागलपन .
• झूला झूलै री .
• घर मेरा है? .
• तान की मरोर .
• पुष्प की अभिलाषा .
• तुम्हारा चित्र .
• दूबों के दरबार में .
• बसंत मनमाना .
• तुम मन्द चलो .
• जागना अपराध .
• यह किसका मन डोला .
• चलो छिया-छी हो अन्तर में .

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