भोपाल. कोरोना बीमारी से आसानी से जीता जा सकता है, बस अपना मनोबल ऊंचा बनाए रखें। डॉक्टरों की सलाह मानें, दिमाग को शांत रखने के लिए मेडिटेशन और योग करें। यह कहना है कोरोना को हराने वाले आईएएस अफसर गिरीश शर्मा के। शर्मा अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन संस्थान, भोपाल के प्रमुख सलाहकार हैं। गिरीश शर्मा और उनके बेटे सुमर्तल शर्मा को 11 अप्रैल को संक्रमण की पुष्टि हुई थी और वह 11 अप्रैल से 26 अप्रैल तक चिरायु अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती रहे। उन्होंने दैनिक भास्कर से अपने इलाज के दिनों के अनुभव पर विस्तार से बातचीत की। उनकी जर्नी को उन्हीं के शब्दों में पढ़िए…
आईएएस गिरीश शर्मा बताते हैं- “मैं रोज योग, प्राणायाम करता और सुबह-शाम टहलता था। कोशिश रहती थी कि जितने भी मेरे आसपास के लोग हैं, उन्हें भी योग और मेडिटेशन कराऊं। मेरा 18 साल का बेटा सुमर्तल शर्मा भी मेरे साथ ही भर्ती था। उसका समय पेंटिग्स बनाते, मोबाइल पर फिल्में देखते और दोस्तों से मोबाइल पर बात करते गुजर जाता था। मेरा कुछ पढ़ते-लिखते और ऑफिस के काम को निपटाते समय कट जाता था। कुछ काम वाट्सएप और ऑनलाइन के माध्यम से करता था। भाषाओं का शौक है, इसलिए ऑनलाइन स्पैनिश और जर्मन भाषा सीखता था। मैंने इन भाषाओं का एक शब्द रोज सीखा।”
पलटकर देखता हूं तो लगता है कि 14 दिन कैसे गुजर गए। असल में आप एक ऐसी सिचुएशन में हैं, जिसे लंबा जाना है। जब आपको ये पता चलता है कि 14 दिन देने ही हैं और फिर उसमें दो अग्नि परीक्षाएं हैं, मतलब दो टेस्ट देने होंगे। इसके बाद हमारे कई साथी ऐसे भी होते हैं, जिनके टेस्ट पॉजिटिव आ जाते हैं। उन्हें और ज्यादा रुकना पड़ता है। उस समय सबसे जरूरी है मनोबल और धैर्य बनाकर रखना। इसके लिए आपके दिमाग का शांत होना बहुत जरूरी है। परिवार और साथियों के साथ लगातार बातचीत कर रहे हैं तो कभी निराश नहीं होंगे। फिर लोग एक-दूसरे से जुड़ने लगते हैं। सच कहूं तो इस दौरान आप कब एक-दूसरे के हो जाते हैं पता नहीं चलता है। ये कुछ तरीके हैं, जिसके माध्यम से आप सस्टेन कर सकते हैं, मतलब कोरोना संक्रमण से जल्दी ठीक हो जाएंगे।”
अस्पताल में जब नया पेशेंट आता है तो बहुत ज्यादा बदहवास होता है। उसको रिलैक्स कर दें या आप उसे ये समझा दें कि सब ठीक है, ठीक हो जाएगा। असल में, यहां पर परिवार और दोस्तों से अलग हुए पेशेंट के साथ घुलमिल जाएं, जिससे वह परिवार की कमी महसूस न करे। जैसे यहां पर वह एक अजनबी है। कब वह अपना बन जाता है पता ही नहीं चलता। मैंने इसके लिए लोगों के साथ हंसना, उन्हें हंसाना शुरू किया। किसी से उसकी जिंदगी के संस्मरण सुन लिया तो किसी को सुना दिया और दिल खोलकर हंस लिया।
अस्पताल में एक-दूसरे का सहारा बनना पड़ता है। मदद भी ऐसी कि आज फ्रूट्स अच्छे आए हैं, आप लोग देख लें। एक जैन समाज से जुड़ी बुजुर्ग महिला आई थीं, वह लहसुन प्याज नहीं खाती थीं, ऐसे में उनके भोजन को लेकर समस्या आ रही थी। मैंने उन्हें सलाह दी कि आप दलिया खाओ, पोहा, फल खा लीजिए। मैं खुद भी दलिया खाकर ही रहता था। इस पर बुजुर्ग अम्मा को संतोष हो गया। बातचीत की श्रंखला जारी रहनी चाहिए, जिससे यहां कोई भी खुद को अकेला महसूस न करें।”
चिरायु हॉस्पिटल के स्टॉफ ने हमारे लिए कार्ड्स बनाए, वो बहुत खूबसूरत हैं और उन्हें फ्रेम कराऊंगा, संजों के रखूंगा। जिससे ये समय हमेशा मेरी स्मृतियों में रहे। कोरोना की लड़ाई ने बहुत कुछ सिखाया है। धैर्य और मनोबल इस बीमारी से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार है।