आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर कोरोना की दवा खोजने के लिए सीवियर अक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) को फैलाने वाले सार्स कोव-2 वायरस का अध्ययन कर रहे हैं। संस्थान के बायोसाइंस और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर इस काम में जुटे हैं। आ
अमेरिका, नॉर्वे, स्वीडन, फ्रांस, डेनमार्क के रिसर्च ग्रुप के साथ मिलकर स्टॉप कोविड-19 पैंडेमिक प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहा है। नॉर्वेजियन रिसर्च काउंसिल इस प्रोजेक्ट को फंड कर रही है। देश के कई संस्थानों के इस इंडियन रिसर्च ग्रुप के प्रमुख आईआईटी इंदौर के डॉ. अविनाश सोनवाने होंगे।
आईआईटी के डॉ. अमित कुमार ने बताया- हम सार्स कोव-2 वायरस के 16 तरह के प्रोटींस पर अध्ययन कर रहे हैं। इसके जरिए एक साल में कोरोना की असरकारक वैक्सीन तैयार की जाएगी।
थ्रीडी प्रिंटिंग से बना रहे दोबारा उपयोग किए जा सकने वाले मास्क
पुलिस और मेडिकल स्टाफ के पर्स, मोबाइल और चाबियों को संक्रमण रहित करने के लिए आईआईटी, आईजी विवेक शर्मा के सुझाव पर स्टरलाइजेशन चैंबर भी बना रही है।
इसमें 254 एनएम की यूवी किरणों से सामान को डिसइंफेक्ट किया जा सकेगा। संस्थान के डॉ. आईए पलानी और डॉ. इंद्रसेन सिंह थ्रीडी प्रिंटिंग मशीन के जरिए कपड़े के मास्क तैयार कर रहे हैं। डॉ. विपुल सिंह और डॉ. पलानी ने ऑप्टिकल टेंपरेचर सेंसर तैयार किया है। मरीज के कपड़ों पर लगाने से शरीर के तापमान पर लगातार नजर रखी जा सकेगी।
विशेष ईंटों से बने कमरों में ट्रकों का संक्रमण भी होगा दूर
बड़े सामान, मशीन और हर बड़े आकार की चीजों को संक्रमण रहित करने के लिए आईआईटी ने विशेष प्रकार की ईंटें और मोर्टार बनाए हैं। सिविल इंजीनियरिंग विभाग के संदीप चौधरी और राजेश कुमार ने बताया, ईंट और कोटिंग वाले मोर्टार से बनी टनल में सामान को यूवी लाइट से संक्रमण मुक्त करेंगे। इसमें सामान से परावर्तित किरणों को विशेष ईंट सोख लेंगी।