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सिद्धार्थ को इस स्थान पर हुआ था सत्य का बोध तब कहलाए भगवान बुद्ध…

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भगवान बुद्ध ने सृष्टि को जानने के लिए एक नया द़ृष्ठिकोण लोगों के सामने रखा. उन्होने लोगों के दुखों का कारण बताते हुए उसके निवारण भी बताया. आइए जानते हैं भगवान बुद्ध के बारे में. सत्य की खोज के लिए कठोर तपस्या करने वाले भगवान बुद्ध को वैशाख पूर्णिमा के दिन ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.

बिहार के बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. विशेष बात ये है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में उनका महापरिनिर्वाण हुआ था. भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार भी माना जाता है.बौद्ध अनुयायी इस दिन अपने घरों में दीपक जलाते हैं और भगवान बुद्ध की कथा का श्रवण करते हैं. प्रार्थनाएं करते हैं. इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है.

भगवान बुद्ध के प्रथम गुरु का नाम आलार कलाम था. भगवान बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था. 35 वर्ष की उम्र में वैशाख की पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान बुद्ध ने एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया. यह वृक्ष बोधगया में निरंजना नदी के तट पर था. यहां पर उन्होंने कठोर तपस्या की. यह उपवास उन्होंने सुजाता नामक कन्या के हाथों खीर खाकर तोड़ा था.

सुजाता ने पीपल वृक्ष से संतान प्राप्ति की प्रार्थना की थी. इसके लिए वह सोने के थाल में गाय के दूध की खीर प्रसाद के रूप में लेकर पहुंची जहां पर पहले से ही सिद्धार्थ ध्यानमग्न थे. सुजाता को लगा कि वृक्ष देवता मानव शरीर में उपस्थित हैं.

सुजाता ने बड़े आदर भाव से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और बोली ‘जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी मनोकामना पूर्ण हो.’ उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई. सिद्धार्थ को सच्चा ज्ञान हुआ. तभी से सिद्धार्थ ‘बुद्ध’ कहलाए. जिस वृक्ष के नीचे उन्हे बोध मिला वह बोधिवृक्ष और गया का समीपवर्ती स्थान बोधगया कहलाया.भगवान बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश किया. दु:ख से बचने के लिए उन्होंने अष्टांगिक मार्ग बताया.

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