7 डॉक्टर, 10 नर्स इलाज करते वक्त कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। बचाव का एक ही तरीका-पीपीई किट, लेकिन 40 से 42 डिग्री तापमान में इसे पहनना किसी तपती भट्टी के पास घंटों गुजारने जैसा है। इस किट को पहनकर संक्रमण से लड़ाई लड़ना कितना चुनौतीपूर्ण होता है, यह जानने के लिए भास्कर रिपोर्टर ने किट को पहनकर दफ्तर में चार घंटे काम किया। उनका अनुभव बताता है कि कोरोना वॉरियर्स मानवता की सेवा के लिए किन मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
भास्कर रिपोर्टर ने बताया- दोपहर के 12 बज रहे थे और तापमान 40 डिग्री के आसपास था। मैंने पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) किट पहनी। इसके बाद ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे बांध दिया हो। चश्मे-मास्क का दबाव चेहरे पर महसूस हो रहा था। किट पहनकर चलते नहीं बन रहा था। ग्लव्स के कारण मोबाइल पर पकड़ नहीं बन पा रही थी।
एन-95 मास्क पहनने के बाद लगा कि नाक पर कोई बोझ रख दिया गया हो और मजबूरी ऐसी कि आप चाहकर भी इसे हटा नहीं सकते। 10-15 मिनट में ही सिर पसीने से भर गया और इसकी बूंदें चेहरे की सतह से लुढ़कते हुए मास्क के भीतर जमा होने लगीं। पीपीई किट के अंदर भारी गर्मी का अहसास हो रहा था।
3. बेचैनी, गला सूख गया, असहनीय स्थिति गला सूख रहा था। कई बार ऐसा लगा कि मास्क निकालकर पानी पी लूं लेकिन नहीं निकाल सकती थी। एक घंटा ही बीता था कि बेचैनी महसूस होने लगी। मास्क के बेल्ट चुभने लगे थे। कानों पर अलग तरह का प्रेशर लग रहा था।
पसीने और उमस के अहसास ने परेशान कर दिया। उस पर चिलचिलाती गर्मी। चार घंटे के बाद जब पीपीई किट उतारी तो महसूस हुआ कि कोरोना वॉरियर्स के लिए यह ‘रक्षा कवच’ धारण करना कितना मुश्किल है।