माफ कीजिएगा सरकारे चाहें जितनी बातें करें, लेकिन सच यह है कि इन हालातों में मजदूरों को शहरों में जिंदा रहने का भरोसा नहीं रह गया है। 600 किमी पैदल चलने के बाद विदिशा रोड से गुजरते हुए शमीम का यह जवाब प्रवासी श्रमिकोण्ं के शहर से लौटने की पीड़ा बयां करता है।
ग्यारह मील से ओबेदुल्लागंज, सीहोर से भोपाल, भाेपाल से विदिशा और रायसेन रोड से गुजर रहे ये मजदूर महीने भर पहले तक किसी कपड़ा फैक्ट्री में कॉन्टैक्ट श्रमिक थे या बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन साइट पर काम कर रहे थे।
लाॅकडाउन के चलते इन्हें इस महीने की पगार भी नहीं मिली है। कब मिलेगी.. इसका भी कोई जवाब नहीं है। इसलिए निकल पड़े हैं और अपनी धुन में चले जा रहे हैं। सिर पर रखे थैले और कांधों पर ऊंघते बच्चे ही इनकी बची-खुची उम्मीदें हैं।