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मजदूरों की मजबूरी इंदौर से गुना ट्रक में सवारी 1000 रु. तो पुणे से इलाहाबाद के 3500 रुपए…

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कोरोना संक्रमण काल में जहां हर संस्था, व्यक्ति, समाज गरीबों और मजबूरों की मदद करने में लगा है वहीं ट्रक वालों ने मजदूरों की मजबूरी से नया उद्योग खड़ा कर लिया है। सेवा का मुखौटा लगाकर ट्रकों में भर-भर भेजे जा रहे मजदूरों की दास्तां भास्कर ने जानी। जिस भी ट्रक में भरे हुए मजदूरों को रोककर आपबीती पूछी उनका दर्द छलक पड़ा। 200-300 किमी की यात्रा एसी वोल्वो बस से भी दो से तीन गुना ज्यादा ट्रक में तपती धूप में की पड़ रही है।

वाले इस समय लागत से पांच गुना कमाई कर रहे हैं। मजदूर इस यात्रा को विवश हैं क्योंकि सरकार और जिम्मेदार खामोश है। नौकरीपेशा बाइक से तपती घूप में मासूम बच्चों को कपड़े से बांधकर सैकड़ों किमी के सफर पर निकले हैं। कुछ गरीब बच्चों को कंधों पर बैठाए पैदल ही चले जा रहे हैं। कुछ मजदूरों ने तो यह भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने म.प्र. बॉर्डर तक फ्री में छुड़वाया, यहां से ही ट्रकवालों की वसूली हो रही है। उन्हें घर जाना है, इसलिए मजबूर हैं।

केस 1 40 डिग्री से ज्यादा तापमान के बीच खुले ट्रक में इंदौर से गुना तक का सफर मांगलिया टोल नाके से रविवार दोपहर एक ट्रक में 34 मजदूरों गुना के लिए निकले। इनमें सूरज साकेत ने बताया मैं दिन पहले मुंबई से पैदल निकला था। इंदौर आते-आते थक गया अब चलने की स्थिति नहीं। ऐसे ही मजदूर भी थक चुके थे।

उन्होंने गुना जाने के लिए ट्रक की व्यवस्था की। ट्रांसपोर्टर ने गुना तक के प्रति व्यक्ति हजार-हजार रुपए लिए। ड्राइवर इमरान से भास्कर ने बता की तो उसने बताया पैसे सेठ हाजी ने लिए हैं, मुझे तो मजदूरों को छोड़ना है। भास्कर ने ट्रांसपोर्टरों से बात की तो पता चला गुना तक ट्रक आने और जाने का खर्च 20 हजार के लगभग हैं। यह तब जब ट्रक लोडेड हो। 34 लोगों को ले जाने में एक तरफ का डीजल और ड्राइवर का खर्च मिलाकर 6 से 7 हजार ही आएगा।

बायपास रोड पर ही एक ट्रक में सवार 40 लोग मिले। उनमें एक आशीष कुमार ने बताया हम पुणे से ट्रक कर इलाहबाद जा रहे हैं। हर व्यक्ति से 3500 रुपए लिए हैं। पुणे से इलाहबाद करीब 1350 किमी है। इतने लंबे सफर में भोजन रास्ते में स्वयं सेवी संगठनों के भरोसे।

यूपी के आजमगढ़ का रहने वाला रामशरण, पत्नी सुमन, तीन बच्चे सहित सात लोगों को लेकर चार दिन पहले सूरत से पैदल निकला। करीब 500 किमी चल कर इंदौर पहुंचे परिवार को रास्ते में कोई मदद नहीं मिली। अभी उन्हें आजमगढ़ तक जाना है।

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