कोलार में रहकर हम 14 लोगों ने किसी तरह 40 दिन गुजार दिए। मजदूरी करके जो भी पैसे जुटाए थे, वो खत्म हो गए। मकान मालिक ने पानी की मोटर भी निकाल ली, यानी अब पानी के लिए भी मोहताज होना पड़ता। इसलिए पैदल ही चल रहे हैं, अपने मुकाम गोपालगंज, बिहार के लिए। अब पैरों के छालों की परवाह नहीं। किसी ने लिफ्ट दी तो ठीक, नहीं दी तो पैदल ही पहुंच जाएंगे कुछ दिनों में। भोपाल-विदिशा रोड पर सत्येंद्र कुमार सिंह और उनके 13 साथियों ने भोपाल के कोलार से बुधवार को ही अपना ये मुश्किल सफर शुरू किया है।
गोद में 4 दिन का बच्चा और 2500 किमी का सफर
वहीं, दूसरी तस्वीर मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाली सामने आई है। यहां पश्चिम बंगाल के मालदा की खातून इसलिए खुश हैं कि उन्हें एमपी में आकर खाना मिला है। अब बच्चे का भी पेट भर सकेगा। गोद में मरणासन्न से पड़े बच्चे को देखकर सोमालिया के कुपोषित बच्चों का चेहरा सामने आ जाता है।
8 दिन में 4 गुना बढ़ गया महाराष्ट्र की ओर से आने वाला ट्रैफिक
24 मार्च से टोल प्लाजा बंद कर दिए गए थे। 20 अप्रैल को फिर से चालू होने के बाद 3 मई तक भी मुंबई से आने वाले वाहनों का औसत लगभग 2500 वाहन प्रतिदिन था, जो 12 मई तक बढ़कर लगभग 13,500 वाहन प्रति दिन तक हो गया है।
गौरतलब है इसमें रोजाना निकलने वाले हजारों ऑटो रिक्शा, महाराष्ट्र-गुजरात की हजारों मोटरसाइकिल आदि के आंकड़े शामिल नहीं है। फरवरी जैसे सामान्य महीनों में जब लॉकडाउन का अंदेशा भी नहीं था तब भी मुंबई-आगरा नेशनल हाईवे नंबर-3 पर मुंबई की ओर से आने वाले वाहनों की औसत संख्या रोजाना करीब 8000 ही थी।
8 बजे जब दादा नहीं उठे तो हिलाया। पता चला कि वे मर चुके हैं। तभी बाकी सवारियों ने हंगामा शुरू कर दिया। बोले कि वे लाश के साथ सफर नहीं कर सकते। हमें राऊ चौराहे पर उतार दिया गया। ट्रक वाला पूरा किराया लेकर भाग गया। फिर राऊ पुलिस ने भोजन करवाया। शव जिला अस्पताल भेजा गया। कमलेश के मुताबिक उनका परिवार मुंबई के कांदीवली में रहता है। यहां परिवार के आधे लोग आइस्क्रीम बेचते हैं और आधे नारियल पानी। जैसे-तैसे गुजारा होता है। दादा की चाहत थी कि अब पलायन के बाद वे मुंबई नहीं लौटेंगे।