22 मई को शनि जयंती है. इस दिन सूर्य पुत्र शनि देव का जन्म दिवस मनाया जाता है. इस दिन अमावस्या की तिथि भी है. शनि देव ने इस तिथि पर ही जन्म लिया था. इस दिन दिन विधिवत पूजा और उपासना करने से शनि की अशुभता को दूर किया जा सकता है.
मान्यता है कि शनि जिस पर मेहरबान हो जाएं उसे राजा से रंक बनाने में देर नहीं करते हैं वहीं अगर इनकी नजर तिरछी हो जाए तो नुकसान का अंदाजा लगाना भी मुश्किल होता है. शनि जब अशुभ होते हैं तो एक साथ कई कष्ठ देते हैं. यहां तक ये कभी कभी मृत्यु तुल्य कष्ट भी प्रदान करते हैं. इसलिए इन्हे प्रसन्न रखना बहुत ही जरुरी हो जाता है.
इसका अर्थ ये है कि शनि जब गोचर से जन्म कुंडली के 12 वें भाव में विराजमान हों तो सिर, जन्म राशि पर हों तो हृदय और जन्म राशि से द्वितीय स्थान में हों तो पैर पर शनि अपना प्रभाव डालते हैं.
ऐसा करने वालों को शनि देते हैं कष्ठ
शनि उन लोगों को सबसे अधिक कष्ठ देते हैं जो दूसरों को सताते हैं. मजदूर और गरीबों पर अत्याचार करते हैं. वहीं जीव जंतु खास तौर पर कौवा और कुत्ता आदि को मारने वालों को भी शनि का प्रकोप झेलना पड़ता है.
शनि की साढ़ेसाती धनु, मकर और कुंभ राशि पर है. वहीं मिथुन और तुला राशि पर शनि की ढैय्या है. इसलिए इन राशि वालों को विशेष ध्यान देने की जरुरत है. शनि एक न्याय प्रिय ग्रह हैं. इसलिए इन्हें अन्याय पसंद नहीं है. कलयुग में शनि को मनुष्य को उसके किए गए कर्मों का फल इसी जन्म में देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है
इसलिए शनि देव व्यक्ति के अच्छे बुरे कर्मों का फल उसे इसी जन्म में प्रदान करते हैं. शनि को धोखा देने वाले, स्वार्थी, दूसरों के हक का अतिक्रमण करने वाले और रिश्वत लेने वाले व्यक्ति बिल्कुल भी पसंद नहीं है. ऐसे लोगों को भी शनि कठोर दंड देते हैं.