सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण लगभग 500 किलोमीटर लंबा मनाली-लेह मार्ग एक फिर सेना और रसद को बॉर्डर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रहा है। सीमा सड़क संगठन के दीपक प्रोजेक्ट द्वारा मनाली से सरचू तक 222 किलोमीटर और सरचू से लेह तक 220 किलोमीटर तक नेशनल हाईवे का निर्माण और देखरेख का जिम्मा है। भारत सरकार द्वारा 1962 में भारत और चीन युद्ध के दौरान मिली हार और समय पर रसद तथा सेना के नहीं पहुंचने के बाद इस मार्ग का निर्माण किया गया था। इस मार्ग को डबललेन बनाने का काम किया जा रहा है।
1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी जब कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के जवानों द्वारा श्रीनगर-लेह मार्ग पर गुजर रही सेना के वाहनों और जवानों को नुकसान पहुंचा जा रहा था तो मनाली-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग तीन से सेना और रसद को कारगिल पहुंचाया गया। मगर अब फिर से लद्दाख में चीन द्वारा भारत के बीच तनाव बना हुआ है। तीन दिन पहले हुई खूनी झड़प में भारतीय सेना के 20 जवानों की शहादत हुई। ऐसे में एक बार फिर से भारत सरकार द्वारा श्रीनगर-लेह मार्ग को बंद कर बॉर्डर को सेना व रसद को मनाली-लेह मार्ग होकर भेजा जा रहा है।
गुरुवार को भी मनाली से लेह के लिए सेना से भरी एक निजी बस रवाना हुई। लद्दाख और अरुणाचल में बतौर डीआईजी रहे रक्षा विशेषज्ञ अनूप राम ठाकुर ने बताया कि 1962 के बाद सीमा सड़क संगठन द्वारा मनाली-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया गया है। उसके बाद यह मार्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कहा कि सीमा सड़क संगठन द्वारा इस मार्ग को डबललेन किया जा रहा है।
सुरक्षा की दृष्टि से यह मार्ग अति महत्वपूर्ण है और 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी सेना के साथ रसद को सीमा के लिए भेजा गया था। मनाली-लेह मार्ग में रोहतांग के नीचे सितंबर में बनकर तैयार होने वाली अटल टनल (रोहतांग) से आवाजाही से सेना को को सीमा तक पहुंचने में आसानी होगी। इससे 46 किलोमीटर दूरी कम हो जाएगी और बडे़ वाहन चार घंटे के बजाए मात्र 45 मिनट में कोकसर पहुंचने लगेंगे। वहीं सेना के वाहन एक दिन में ही लेह पहुंच जाएंगे।