लद्दाख संघर्ष के बाद भारत और चीन के बीच तनाव को कम करने के लिए जहां दोनों पक्षों के बीच Moldova में बातचीत चल रही है वहीं नई दिल्ली में सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण की समीक्षा की गई. सचिव (बॉर्डर मैनेजमेंट) ने संजीव कुमार पिछले पांच दिनों में दूसरी बार वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ लगी सीमा पर बुनियादी ढांचे की समीक्षा की. गौरतलब है कि हाल के दिनों में भारत सक्रिय रूप से लद्दाख क्षेत्र में विकास गतिविधियों को विस्तार दे रहा है जो गालवान घाटी से होते हुए श्योक पहुंचता है. भारत की इन गतिविधियों से चीन की चिंता बढ़ी है क्योंकि भारत ने गालवान घाटी में अपनी डिफेंस गतिविधियों को ऊंचाई देने के लिए दारुक-सुरेक-दौलत बीती ओल्डी को फीडर रोड बनाया है. एक वरिष्ठ नौकरशाह “हमारा फ़ोकस चल रही परियोजनाओं को गति देना है क्योंकि हम दूसरे चरण (Second Phase) में पिछड़ रहे हैं.” उनके अनुसार, दूसरे चरण में सरकार ने लगभग 32 रणनीतिक सड़कों को पूरा करने की योजना बनाई थी. उन्होंने कहा, ” बैठक में मंजूरी से संबंधित समस्याएं थीं, इसलिए बैठक में इन बाधाओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित किया गया.” इस चरण में लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तराखंड क्षेत्रों में दो महत्वपूर्ण रणनीतिक सड़कों को पूरा करने की जरूरत है.
नॉर्थ ब्लॉक में सीमा अधोसंरचना से संबंधित उच्च स्तरीय बैठक और साथ ही सीमा सड़क संगठन, आईटीबीपी और सीपीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने भाग लिया. मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स (MHA) ने आधुनिक निर्माण उपकरणों की खरीद की प्रगति की भी समीक्षा की. केंद्र ने न केवल 2017-2020 के बीच खरीद प्रक्रिया को गति देने में कामयाबी हासिल की है, बल्कि 2017 के बाद से निर्माण उपकरण और सामग्री का एयरलिफ्ट भी बढ़ाया है. केंद्र की लगातार नीति के कारण भारत ने पिछले 6 वर्षों में 4764 किमी रणनीतिक सड़कों का निर्माण पूरा कर लिया है. जहां तक भारत में बॉर्डर रोड्स के निर्माण की बात है तो 2008-17 में केंद्रीय गृह मंत्रालय के डेटा के अनुसार, जहां 230 किमी प्रति वर्ष सड़कों की कटिंग की जा रही थी जतो पिछले तीन वर्षों में दोगुनी हो गई है और 2017-2020 अब 470 किमी/ वर्ष हो गई है.
इसके साथ ही अब हर साल लगभग 380 किमी सड़कें बन रही हैं. सुरंग निर्माण के संदर्भ में जबकि 2008-14 में केवल एक सुरंग पूरी हुई थी, लेकिन पिछले 6 वर्षों में 6 और चालू हैं और 19 और योजना बनाई जा रही है. पुलों के निर्माण के साथ कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाया गया है. पिछले 6 वर्षों में भारत ने इंडो-चीन बॉर्डर के साथ सुदूर क्षेत्र को जोड़ने वाले 14450 मीटर के पुल बनाने में कामयाबी हासिल की है. एमएचए ने चल रही परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर बजट को मंजूरी दी है. 2019-20 में एमएचए के आंकड़ों के अनुसार सीमा विकास के लिए मंत्रालय ने 8050 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे, जबकि इस वित्तीय वर्ष में यह राशि बढ़कर 11800 करोड़ रुपये होग गई. चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ भारत के बुनियादी ढांचे के विकास पर भी आपत्ति जता रहा है. भारत सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि एलएसी के साथ सड़क निर्माण जारी रहेगा और भारत इस मसले पर चीन के दबाव में नहीं आएगा.