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हिमाचल बीबीएन में बन रहा कोरोना के इलाज का इंजेक्शन…

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दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी के इलाज के लिए हिमाचल के बीबीएन में रैमडैसाविर इंजेक्शन तैयार किया जा रहा है। यह इंजेक्शन पहले इबोला वायरस से पीड़ित मरीजों पर इस्तेमाल किया गया था। इसे सार्स और अन्य संक्रमण के उपचार में भी परखा गया था। अब कोविड-19 उपचार के लिए ट्रायल में परिणाम चौंकाने वाला आया है। इस इंजेक्शन से 40 फीसदी तक सुधार देखा गया है। हालांकि, अभी ट्रायल जारी हैं लेकिन जुलाई अंत तक इसका उत्पादन शुरू होने की उम्मीद की जा रही है।

एचसीक्यू, फैबिफ्लू दवा निर्माण में अग्रणी औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन रैमडैसाविर इंजेक्शन का निर्माण करेगा। बीबीएन की इमेक्यूल लाइफ साइंस प्राइवेट लिमिटेड को दवा निर्माण के लिए लाइसेंस जारी किया गया है। इमेक्यूल लाइफ साइंस प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर वायरल शाह ने बताया कि ट्रायल पूरा होने के बाद उत्पादन शुरू किया जाएगा। अतिरिक्त दवा नियंत्रक डॉ. कमलेश नायक ने बताया कि इमेक्यूल लाइफ साइंस प्राइवेट लिमिटेड को रैमडैसाविर इंजेक्शन के ट्रायल का कांट्रेक्ट मिला है। इस इंजेक्शन का ग्लोबली पेटेंट ऑनर गिलियाड है। इसका 100 एमजी का इंजेक्शन है।

इस रोग की पहचान सर्वप्रथम सन 1976 में अफ्रीका की इबोला नदी के पास स्थित एक गांव में की गई थी। इसी कारण इसका नाम इबोला पड़ा। यह खतरनाक वायरस जानवर से संक्रमित करता है। वायरस को जड़ से खत्म करने के लिए अभी कोई दवा नहीं है। वर्तमान में यह एक गंभीर बीमारी का रूप धारण कर चुका है। इस बीमारी में शरीर में नसों से खून बाहर आना शुरू हो जाता है, जिससे अंदरूनी रक्तस्राव प्रारंभ हो जाता है। इसमें 90 फीसदी रोगियों की मृत्यु हो जाती है।

इबोला वायरस संक्रमित जानवरों के काटने से लोगों में फैलता है
रोगी के शरीर से निकलने वाला पसीना, खून या दूसरे तरल पदार्थ से यह वायरस फैलता है रोगी की मौत पर शव के संपर्क में आने से भी यह वायरस फैलता है आशंका है कि संक्रमित चमगादड़ों के मल-मूत्र के संपर्क में आने से भी इबोला वायरस फैलता है

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