मध्यप्रदेश ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए गेहूँ उपार्जन के मामले में देश के अग्रणी राज्य होने का कीर्तिमान स्थापित कर नई पहचान गढ़ी है। मध्यप्रदेश के अन्नदाता किसानों ने ही मध्यप्रदेश को बनाया है। पंजाब जो परंपरागत रूप से गेहूँ उत्पादन और उपर्जन में देश में सबसे आगे होता था वो स्थान आज मध्यप्रदेश ने प्राप्त कर लिया है। इस वर्ष 129 लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूँ उपर्जान कर मध्यप्रदेश ने एक नया इतिहास रचा है।
खेती किसानी मध्यप्रदेश का आधार है। पहले प्रदेश को पिछड़ा माना जाता था। आज प्रदेश के किसानों ने मध्यप्रदेश के भाल पर बंपर उत्पादन का ऐसा तिलक लगाया है कि मध्यप्रदेश सभी राज्यों को पीछे छोड़ते हुए पहले पायदान पर पहुँच गया है। देश के कुल गेहूँ उपार्जन में एक तिहाई योगदान हमारे प्रदेश का है। पंजाब जो एतिहासिक रूप से गेहूँ उपार्जन में अग्रणी हुआ करता था वह आज मध्यप्रदेश से पीछे हो गया है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए प्रयास पहले से ही प्रारंभ किये थे। सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाकर खेती का सिंचित रकबा बढ़ाया गया। किसानों को रियायती दर पर बिजली दी गई। कोशिश यह की गई कि उत्पादन लागत न्यूनतम हो और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके।
समर्थन मूल्य पर अनाज खरीदने का उद्देश्य राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लोगों को अत्यंत सस्ती दर पर खा़द्यान उपलब्ध कराने के साथ किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य देकर बाजार में अनाज के मूल्य को न्यूनतम स्थिर रखना है। भारत सरकार द्वारा भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से स्वयं समर्थन मूल्य पर खरीदी की जाती है और राज्य अपनी आवश्यकता के लिए खरीदी करते हैं। कई राज्य देश के अन्य प्रदेशों की आवश्यकता के लिए उपार्जन करके भारत सरकार को केन्द्रीय पूल में सौंप देते हैं। मध्यप्रदेश को अपने लिए 29 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता है। प्रदेश में इसके अतिरिक्त जो गेहूँ उपार्जन किया है वह केन्द्रीय पूल के लिए है।
कोविड-19 संकट के कारण गेहूँ का उपार्जन सरकार और किसानों दोनो के लिए चुनौतीपूर्ण था। लॉकडाउन और आवागमन बाधित होने के कारण बाजार में गेहूँ का विक्रय नहीं होने से सरकारी खरीदी किसानों के लिए बहुत आवश्यक थी। गेहूँ उपार्जन की तैयारियां पहले जैसी नहीं थी। मुख्यमंत्री ने पद सम्हालते ही उत्कृष्ठ व्यवस्थाओं को अंजाम दिया। मध्यप्रदेश अकेला ऐसा राज्य है जहाँ वर्ष 2012-13 से ही ई-उपार्जन नाम का सॉफ्टवेयर तैयार किया गया, इसके माध्यम से किसानों के पंजीकरण से लेकर उपार्जन केन्द्रों का निर्धारण, किसानों से क्रय की प्रक्रिया, गोदामों तक ट्रकों से परिवहन तथा किसानों का भुगतान इत्यादि सभी प्रक्रियाएँ पूर्णत: ऑनलाइन है। राज्य सरकार ने शुरू से ही गेहूँ उपार्जन की रणनीति के सभी विषयों को बारीकी से समझा और जो भी दिक्कतें आ सकती थी उनको दूर किया। उपार्जन केन्द्रों की संख्या दोगुनी कर दी गई। एक तिहाई से अधिक केन्द्र गोदाम स्तर पर ही खोले गये। इसके परिणामस्वरूप किसानों को कम से कम दूरी तय करनी पड़ी तथा प्रत्येक केन्द्र पर कम से कम भीड़ हुई। खरीदी केन्द्रों पर स्थानीय लोगों को ही रोजगार देकर श्रमिकों की व्यवस्था की गई। गेहूँ परिवहन के लिए ट्रकों की व्यवस्था, गेहूँ के सुरक्षित भंडारण के लिए चलाये गये लॉजिस्टिक अभियान में दो माह तक 10 हजार से भी ज्यादा ट्रकों का उपयोग कर गेहूँ का गोदामों में भंडारण किया गया। पूरे अभियान में लगभग 16 लाख किसानों ने उपार्जन केन्द्रों पर अपना गेहूँ बेचा और उपार्जन के संपूर्ण प्रबंधन में 5 लाख से अधिक अधिकारी और कर्मचारी लगे। यह अभियान कोरोना और लॉकडाउन के दौर में संभवत: विश्व के सबसे बड़े अभियानों में से एक रहा है।
उपार्जित गेहूँ के भुगतान की भी सुनिश्चित व्यवस्था की गई। अभी तक लगभग 25 हजार करोड़ से अधिक की राशि किसानों के खातों में पहुँच चुकी है। कोरोना और लॉकडाउन के चलते इस वर्ष गेहूँ उपार्जन कर किसानों को प्राथमिकता के आधार पर राशि दी गई। उससे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को गति मिली। गेहूँ उपार्जन की प्रकिया में छोटे-छोटे भूखंड पर खेती करने वाले लघु और सीमांत किसानों को सबसे पहले सीधे लाभान्वित करने में सफलता मिली।
मध्यप्रदेश में खेती को लाभ का धंधा बनाने का मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का सपना है। प्रदेश इस दिशा में मजबूती से कदम उठा रहा है। मध्यप्रदेश के किसान मेहनती हैं। उनकी मेहनत ने आज मध्यप्रदेश को यह ऐतिहासिक उपलब्धि दी है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि मेरी सरकार किसानों को साथ लेकर आगे बढ़ेगी, जिससे भविष्य में भी ऐसी उपलब्धियां हमारे अन्नदाता किसानों के प्रयासों से मिलेंगी। प्रदेश के किसानों ने सरकार के प्रति जो भरोसा दिखाया है, मैं उसे हर हालत में निभाउगां।
किसान पुत्र मुख्यमंत्री अन्नदाता की समस्याओं के समाधान के लिए हमेशा सबसे आगे मजबूती से खड़े रहते है। किसानों में यह भरोसा है कि उनका लीडर स्वयं किसान है इसलिए किसानों के हितों की अनदेखी कभी भी नहीं हो सकती। कोविड-19 और लॉकडाउन के चलते किसानों को होने वाली संभावित कठिनाईयों को देखते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने गेहूँ उपार्जन का मजबूत नेटवर्क खड़ा किया और किसानों का गेहूँ खरीदकर उनके खातों में नकद पैसा डाला। फसल बीमा योजना का पैसा भी जो पहले नहीं मिल पाया था उसे किसानों को दिलाया गया। सरकार के प्रयासों और किसानों की मेहनत से मध्यप्रदेश अनाज उत्पादन में देश का सिरमौर बनता जा रहा है।