उर्जित पटेल , जन्म- 28 अक्टूबर, 1963, गुजरात, भारत, भारतीय रिज़र्व बैंक के 24वें गवर्नर रहे हैं। उन्होंने 23वें गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल पूर्ण होने के पश्चात् यह पद ग्रहण किया था। रघुराम राजन 4 सितंबर, 2016 को पदमुक्त हो गये थे। उनके बाद उर्जित पटेल ने 5 सितम्बर, 2016 से अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया था। इससे पहले उर्जित आरबीआई के डिप्टी गवर्नर थे। उन्हें 11 जनवरी, 2013 को रिज़र्व बैंक में डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया था और जनवरी, 2016 में उन्हें सेवाविस्तार दिया गया। उर्जित पटेल स्वतंत्र विचारों वाले एकाग्रचित्त व्यक्तित्व के मालिक हैं। वे किसी भी चीज के बारे में पूरी तरह विस्तार से जानने में यकीन रखते हैं।
परिचय
उर्जित पटेल भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर भी रहे हैं। उन्हें जनवरी, 2016 में रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के रूप में तीन साल का विस्तार दिया गया था। वह डिप्टी गवर्नर से रिज़र्व बैंक के गवर्नर बनने वाले आठवें व्यक्ति रहे। उर्जित पटेल लंदन स्कूल इकोनॉमिक्स से स्नातक हैं और फिर उन्होंने प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। रघुराम राजन के करीबी सहयोगी माने जाने वाले पटेल को महंगाई के ख़िलाफ़ मोर्चा संभालने वाले राजन के मजबूत सिपाही के तौर पर जाना जाता है।
समिति के अध्यक्ष
देश में पहली बार महंगाई दर का लक्ष्य तय करने का फैसला उर्जित पटेल की अगुवाई वाली कमेटी की सिफारिशों के आधार पर हुआ था। इसी के आधार पर तय हुआ था कि अगले पांच साल के लिए खुदरा महंगाई दर का लक्ष्य चार फीसद रहेगा, जो ज्यादा से ज्यादा छह फीसद तक जा सकती है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने की जिम्मेदारी गवर्नर और इस कमेटी की होगी जो संसद के प्रति जवाबदेह होगी। पहले ब्याज दरें तय करने का पैमाना थोक महंगाई दर को माना जाता था, लेकिन खुदरा महंगाई दर को इसका पैमाना बनाने की सिफारिश करने का श्रेय भी उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली इस कमेटी को ही जाता है। हालांकि गवर्नर बनने के बाद पटेल अकेले मौद्रिक नीति या ब्याज दरों में फेरबदल का फैसला नहीं कर सकते थे। यह काम छह सदस्यों वाली एक कमेटी को करना था, जिसका मुखिया गवर्नर को बनाया गया था।
कार्यक्षेत्र
रिज़र्व बैंक में डिप्टी गवर्नर के तौर पर उर्जित पटेल तीन साल का एक कार्यकाल पूरा कर चुके थे और वर्ष 2016 में उन्हें दो साल का विस्तार दिया गया था। डिप्टी गवर्नर बनने से पहले वह बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप में एनर्जी एडवाइजर के तौर पर काम कर रहे थे। पटेल 1990 से 1995 तक ‘अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष’ (आइएमएफ) में भी काम कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने अमेरिका, भारत, बहमास और म्यांमार डेस्क पर काम किया। आइएमएफ की तरफ से ही वह 1996-1997 में रिज़र्व बैंक में डेपुटेशन पर आए। इस दौरान भारत में डेट मार्केट को विकसित करने संबंधी नियम बनाने में उनका अहम योगदान रहा। साथ ही बैंकिंग सुधार, पेंशन फंड रिफॉर्म, रियल एक्सचेंज रेट और विदेशी मुद्रा बाज़ार को विकसित करने में भी उन्होंने रिज़र्व बैंक को परामर्श दिया।
देश में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की पहली सरकार को भी उनकी विशेषज्ञता का लाभ मिला था। 1998 से 2001 तक उन्होंने वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में कंसल्टेंट की भूमिका निभायी थी। इसके अतिरिक्त वह रिलायंस इंडस्ट्रीज में प्रेसीडेंट (बिजनेस डवलपमेंट), आइडीएफसी के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर व मैनेजमेंट कमेटी के सदस्य और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के बोर्ड में सदस्य भी रह चुके हैं। साल 2000 से 2004] के बीच उर्जित पटेल कई केंद्रीय व राज्य स्तरीय उच्चाधिकार समितियों के सदस्य भी रहे। मसलन वित्त मंत्रालय की डायरेक्ट टैक्स पर बने टास्क फोर्स के सदस्य रहने के साथ-साथ वह प्रधानमंत्री की इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बने टास्क फोर्स के सचिवालय में भी रहे। मौद्रिक नीति विभाग के मुखिया होने के नाते इस संबंध में रिज़र्व बैंक ने रघुराम राजन के कार्यकाल में जो भी कदम उठाए, उसके पीछे उर्जित पटेल की सोच ही आधार रही है। ऐसा माना जा रहा था कि गवर्नर बनने के बाद उर्जित पटेल रघुराम राजन की नीतियों को ही आगे बढ़ाएंगे।[2]