कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए गायत्री शक्ति पीठ में मिल रहे ‘गोमय कुंड” की मांग बढ़ गई है। मात्र 10 मिनट में संपन्न होने वाले सूक्ष्म यज्ञ के लिए गोबर से बने कुंड और समिधा व कपूर का इस्तेमाल किया जाता है। कुंड और समिधा (हवन सामग्री)को तैयार करने में 20 से अधिक जड़ी-बूटियां मिलाई जाती हैं।
गायत्री शक्तिपीठ के व्यवस्थापक रामचंद्र गायकवाड़ ने बताया कि यह वैदिककालीन चिकित्सा पद्धति है। इसे यज्ञोपैथी भी कहा जाता है। इसमें कई जड़ी-बूटियों के पाउडर को यज्ञ अग्नि द्वारा औषधीय धूम्र में परिवर्तित किया जाता है। इस औषधीय धूम्र को श्वांस के द्वारा ग्रहण किया जाता है, जो रोग निवारण में लाभ प्रदान करता है। इससे प्राणशक्ति का संवर्धन भी होता है। जिस घर में यज्ञ होता है, वहां का वातावरण रोगाणुओं से मुक्त हो जाता है। सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
गोमय कुंड को बनाने और यज्ञ में आहुति देने के लिए तैयार हवन सामग्री में बीस से अधिक वन औषधियों का चूर्ण मिलाया जाता है। इनमें देवदार ऊंचा, मालकांगनी, बावुची, बेल गिरी, हरड़, बहेड़ा, वनतुलसी, कर्पूर, कर्पूर कचली, नीलगिरी, गोंद(गूगल), अजमोद, अमलतारा, गोरखमुंडी, चंदनचूरा, सिंदूरी, पलाश, धंवई, अर्जुन, गिलोय आदि शामिल हैं।
ऐसे संपन्न होता है यज्ञ
गायत्री शक्ति पीठ के गृह-गृह यज्ञ प्रभारी रमेश नागर ने बताया कि सूक्ष्म यज्ञ की विधि बहुत ही सरल है। शक्तिपीठ में गोमय कुंड की किट 220 रुपये में उपलब्ध है। इसमें एक छोटी-सी यज्ञ वेदी, हवन सामग्री और 30 छोटे-छोटे कटोरी नुमा कंडे रहते हैं। कमरे में यज्ञ करने के लिए वेदी पर कंडे को रखना होता है। इसके बाद कपूर या घी की फूलबत्ती की मदद से कंडे को प्रज्ज्वलित किया जाता है। साथ ही हवन सामग्री से इष्ट देवी-देवता का मंत्र जाप करते हुए आहुति दी जाती है। 10 मिनट में यज्ञ संपन्न हो जाता है और आसपास का वातावरण निर्मल हो जाता है।