वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार समिति की बैठक आज यहां अतिरिक्त मुख्य सचिव वन व समिति के अध्यक्ष आरडी धीमान की अध्यक्षता में हुई। बैठक में उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहौल-स्पीति के स्पीति और किन्नौर जिले में छरमा (सीबकथाॅर्न) और चिलगोजा की खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि यह समिति महत्वाकांक्षी हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना की क्रियान्वयन ऐजेंसी है। जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी जाईका द्वारा वित्त पोषित यह 800 करोड़ रुपए की परियोजना भारत-जापान सहयोग के हिस्से के रूप में कार्यान्वित की जा रही है।
बैठक में स्पीति में छरमा सीबकथाॅर्न की नर्सरी को बड़े पैमाने पर विकसित करने पर जोर दिया गया, ताकि किसान अपने खेतों में इन पौधों की खेती और प्रसार कर सकें। क्षेत्र में छरमा (सीबकथाॅर्न) आधारित प्रसंस्करण इकाइयां भी स्थापित की जाएंगी। उन्होंने कहा कि किन्नौर में चिलगोजा की खेती के प्रोत्साहन के और प्रयास किए जाएंगे। जिसका उद्देश्य जनजातीय क्षेत्र के किसानों की आय को बढ़ाना है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव ने कहा कि परियोजना के तहत आने वाले क्षेत्रों में आय सृजन और समुदायों की आजीविका के लिए गैर-काष्ठ वन उत्पाद आधारित गतिविधियों को बढ़ाने के लिए ग्राम वन विकास समितियों, स्वयं सहायता समूहों और सामान्य रूचि समूहों को खेतों में और खेतों के बाहर गतिविधियों को शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का समर्थन करने का निर्णय लिया गया। इन गतिविधियों में वर्मी कम्पोस्टिंग, डेयरी, सब्जी नर्सरी, मुर्गी पालन, मशरूम की खेती, हस्तशिल्प, हथकरघा और पारंपरिक ऊनी कपड़े बनाना, बुनाई और सिलाई शामिल हैं। इसके अलावा, पलंबर, मोबाइल मरम्मत, ब्यूटीशियन, चिनाई, इलेक्ट्रीशियन, बढ़ई, आतिथ्य, पर्यटन और बागवानी पौधों की प्रूनिंग की गतिविधियों को भी बढ़ावा देने में मदद की जाएगी।
परियोजना के जड़ी-बूटी सेल के कामकाज की समीक्षा करते हुए उन्होंने इस पर संतोष जताते हुए कहा कि सेल ने औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती के लिए पांच मंडल विकसित किए हैं। सेल द्वारा पाल्मोरोसा घास की खेती बिलासपुर जिले में वीएफडीएस की मदद से शुरू की गई है। यह सेल टौर वृक्ष के पत्तों की पत्तल बनाने की गतिविधि भी शुरू करेगा। इसके अलावा, चीड़ की पत्तियों को इक्टठा करने और इसके ब्रिकेट बनाकर बेचने पर भी चर्चा की गई।
बैठक में परियोजना के तहत 16 वाहन खरीदने की स्वीकृति भी दी गई। ये वाहन वन रेंज स्तर पर उपलब्ध करवाए जाएंगे। यह पहली बार है, जब वाहन रेंज स्तर पर उपलब्ध होंगे। इससे फील्ड कर्मचारियों को अपने कार्य को कुशलतापूर्वक व शीघ्रता से करने में मदद मिलेगी।
इससे पहले, मुख्य परियोजना निदेशक व सदस्य सचिव नागेश कुमार गुलेरिया ने परियोजना से संबंधित भौतिक और वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष के शुरुआत में कोविड-19 के प्रभाव के कारण परियोजना गतिविधियों का कार्यान्वयन, विशेष रूप से गतिविधियां जो प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और स्थानीय समुदायों के एकत्रीकरण से जुड़ी थीं, प्रभावित हुईं, लेकिन अब पुनः परियोजना की गतिविधियों ने गति पकड़ ली है।
इस अवसर पर प्रधान मुख्य वन अरण्यपाल डाॅ. सविता, प्रधान मुख्य वन अरण्यपाल (वन्यजीव) अर्चना शर्मा सहित अन्य सदस्य भी बैठक में उपस्थित थे।