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बुधु भगत

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बुदु भगत भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इनकी लड़ाई अंग्रेज़ों, ज़मींदारों तथा साहूकारों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध थी

जन्म: बुधु भगत का जन्म आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के सिलागाई नामक ग्राम में 17 फ़रवरी, सन 1792 ई. को हुआ था। कहा जाता है कि उन्हें दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं, जिसके प्रतीकस्वरूप वे एक कुल्हाड़ी सदा अपने साथ रखते थे।[1]

बाल्यकाल: आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में “लरका विद्रोह” नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।[2] छोटा नागपुर के आदिवासी इलाकों में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। मुण्डाओं ने ज़मींदारों, साहूकारों के विरुद्ध पहले से ही भीषण विद्रोह छेड़ रखा था। उरांवों ने भी बागी तेवर अपना लिये। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। गरीब गांव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे।

अंग्रेज़ों से संघर्ष: हज़ारों लोगों के हथियारबंद विद्रोह से अंग्रेज़ सरकार और ज़मींदार कांप उठे। बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इंपे को सौंपा गया।बनारस की पचासवीं देसी पैदल सेना की छह कंपनी और घुड़सवार सैनिकों का एक बड़ा दल जंगल में भेज दिया गया। टिकू और आसपास के गांवों से हज़ारों ग्रामीणों को गिरफ़्तार कर लिया गया। बुधु के दस्ते ने घाटी में ही बंदियों को मुक्त करा लिया। करारी शिकस्त से कैप्टन बौखला गया।

शहादत: 13 फ़रवरी, सन 1832 ई. को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया। बुधु आत्म समर्पण करना चाहते थे, जिससे अंग्रेज़ों की ओर से हो रही अंधाधुंध गोलीबारी में निर्दोष ग्रामीण न मारे जाएँ। लेकिन बुधु के भक्तों ने वृताकर घेरा बनाकर उन्हें घेर लिया। चेतावनी के बाद कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। अंधाधुंध गोलियाँ चलने लगीं। बूढ़े, बच्चों, महिलाओं और युवाओं के भीषण चीत्कार से इलाका कांप उठा। उस खूनी तांडव में करीब 300 ग्रामीण मारे गए। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर जबरन खामोश कर दिया गया। बुधु भगत तथा उनके बेटे ‘हलधर’ और ‘गिरधर’ भी अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।

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