राजेंद्र कुमार भारतीय फ़िल्म अभिनेता थे। राजेन्द्र कुमार 1960 और 1970 के दशक में फ़िल्मों में सक्रिय थे। उन्होंने फ़िल्मों में अभिनय करने के अलावा कई फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया था। हिन्दी फ़िल्मों में अपने सफल अभिनय और बेमिसाल अदाकारी की वजह से राजेन्द्र कुमार ने जो स्थान बनाया है, वहां तक पहुंचना हर अभिनेता का सपना होता है। राजेन्द्र कुमार की हर फ़िल्म इतनी हिट होती थी कि वह कई सालों तक बेहतरीन बिजनेस किया करती थी और यही वजह थी कि लोग उन्हें ‘जुबली कुमार’ के नाम से पुकारते थे। अपने रोमांटिक व्यक्तित्व की उन्होंने सिनेमा जगत् में ऐसी छटा बिखेरी की, उनकी फ़िल्में एक यादगार बन गईं। फ़िल्म ‘आरजू’ हो या ‘आई मिलन की बेला’ हर फ़िल्म में राजेन्द्र कुमार का एक अलग ही स्वरूप दर्शकों ने देखा।
जीवन परिचय
पश्चिम पंजाब के सियालकोट में 20 जुलाई, 1929 को जन्मे राजेन्द्र कुमार बचपन से ही अभिनेता बनने की चाह रखते थे। एक मध्यम वर्गीय परिवार से होने के बावजूद उन्होंने उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा। मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने के लिए उन्होंने पिता द्वारा दी गई घड़ी को बेचा था, पर मुंबई आकर अपनी किस्मत बदलने का हौसला उन्होंने किसी से नहीं लिया था। राजेन्द्र कुमार सुंदर होने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी बहुत ही दृढ़ अभिनेता थे। 21 साल की उम्र में ही उन्हें फ़िल्मों में काम करने का पहला मौका मिला। एक अभिनेता के तौर पर पहली बार उन्हें दिलीप कुमार अभिनीत फ़िल्म “जोगन” में एक छोटा-सा किरदार निभाने को मिला था। यहीं से वह लगातार सफलता प्राप्त करते गए। पहली बार फ़िल्म ‘जोगन’ में उन्होंने अभिनय किया और उसके बाद अपने हर रोल में वह खुद ब खुद फिट होते चले गए। इसके बाद ‘गूंज उठी शहनाई’ में पहली बार वह एक अभिनेता के तौर पर दिखे। वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब खान की फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ में राजेंद्र कुमार ने जो अभिनय किया, उसे देख आज भी लोग प्रफुल्लित हो उठते हैं। ‘मदर इंडिया’ के बाद राजेन्द्र कुमार ने ‘धूल का फूल’, ‘मेरे महबूब’, ‘आई मिलन की बेला’, ’संगम’, ‘आरजू’ , ‘सूरज’ आदि जैसे सफल फ़िल्मों में काम किया।
शुरुआती दौर
राजेन्द्र कुमार बचपन से ही अभिनेता बनने का सपना देखा करते थे। अपने इसी सपने को साकार करने के लिये पचास के दशक में वह मुंबई आ गये। मुंबई पहुंचने पर उनकी मुलाकात सेठी नाम के एक व्यक्ति से हुई, जिन्होंने उनका परिचय सुनील दत्त से कराया, जो उन दिनों स्वयं अभिनेता बनने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस बीच राजेन्द्र कुमार की मुलाकात जाने माने गीतकार राजेन्द्र कृष्ण से हुई जिनकी मदद से वह 150 रपए मासिक वेतन पर निर्माता, निर्देशक एच.एस. रवेल के सहायक निर्देशक बन गए। बतौर सहायक निर्देशक राजेन्द्र कुमार ने रवेल के साथ प्रेमनाथ और मधुबाला अभिनीत ‘साकी’ तथा प्रेमनाथ और सुरैया अभिनीत ‘शोखियां’ के लिए काम किया। वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘जोगन’ बतौर अभिनेता राजेन्द्र कुमार के सिने कैरियर की पहली फ़िल्म साबित हुयी। इस फ़िल्म में उन्हें दिलीप कुमार के साथ अभिनय करने का मौका मिला। इसके बावजूद राजेन्द्र कुमार दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे।
प्रमुख फ़िल्में
दर्शकों के मध्य राजेन्द्र कुमार का स्थान महबूब ख़ान की फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ (1957) से बना। फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ में राजेन्द्र कुमार ने नरगिस के बेटे का रोल किया था। ‘मदर इंडिया’ के बाद राजेन्द्र कुमार ने ‘धूल का फूल’ (1959), ‘मेरे महबूब’ (1963), ‘आई मिलन की बेला’ (1964), ‘संगम’ (1964), ‘आरजू’ (1965), ‘सूरज’ (1966) आदि जैसे सफल फ़िल्मों में काम किया।
राज कपूर और राजेंद्र कुमार के साथ वैजयंती माला
यद्यपि राजेन्द्र कुमार 1960 के दशक में भारतीय रजत पट पर छाये रहे, इनकी अनेक फ़िल्मों ने लगातार रजत जयंती (सिल्वर जुबली) की इसलिए उन्हें जुबली कुमार कहा जाने लगा। (1970 का दशक उनके लिये प्रतिकूल रहा क्योंकि उस दशक में राजेन्द्र कुमार की गंवार (1970), तांगेवाला (1972), ललकार (1972), गाँव हमारा शहर तुम्हारा (1972), आन बान (1972) आदि फ़िल्में बॉक्स आफिस पर पिट गईं और उनकी मांग घटने लग गई। सन् 1970 से 1977 तक का समय उनके लिये अत्यंत दुष्कर रहा। सन् 1978 में बनी फ़िल्म साजन बिना सुहागन, जिसमें उनके साथ नूतन ने काम किया था, ने फिर से एक बार राजेन्द्र कुमार का समय पलट दिया और वे फिर से दर्शकों के चहेते बन गये। राज कपूर ने अपनी फ़िल्में संगम (1964) और मेरा नाम जोकर (1970) में बतौर सहायक हीरो के उन्हें रोल दिया था। राज कपूर के साथ उन्होंने फ़िल्म दो जासूस (1975) में भी काम किया और उन्हें दर्शकों की सराहना मिली। उनके दौर की फ़िल्मों के शौकीन लोगों के लिए राजेन्द्र कुमार भी उतने ही बड़े ट्रैजेडी किंग थे, जितने बड़े ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार को माना जाता है।