भारत माता के चरणों में अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर सपूतों की बदौलत ही आज हम खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। दुश्मन ने बार-बार चुनौतियां दी हैं, लेकिन हमारे वीर सपूतों ने हर चुनौती का डटकर सामना किया और दुश्मन को भारत की पवित्र भूमि पर कदम तक नहीं रखने दिया है। देश की शान के लिए मर मिटने वालों शहीदों में कैप्टन अमोल कालिया को कभी भुलाया नहीं जा सका।
26 फरवरी 1974 को पड़ोस के शहर नंगल में जन्मे अमोल कालिया ने कारगिल को फतह करने के बाद अपने प्राणों की आहुति दी। नया नंगल के फर्टिलाइजर सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 12वीं करने के बाद उन्होंने प्रथम प्रयास में ही अप्रैल 1991 में राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी (एनडीए) की परीक्षा भी महज 17 वर्ष की आयु में उत्तीर्ण कर ली। 1994 में विज्ञान स्नातक हुए तथा भारतीय सेवा अकादमी में एक वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त करने उपरांत दिसंबर 1995 में शहीद अमोल कालिया ने कमीशन प्राप्त किया था।
जनवरी 1996 को जम्मू-कश्मीर में सेकंड लेफ्टिनेंट का पद प्राप्त किया तथा 25 जनवरी 1996 को ही खेमकरण सेक्टर में दुश्मन से लोहा लेते बाल-बाल बचे। इस दौरान हुए सड़क हादसे में अमोल कालिया को काफी गंभीर चोट लगने पर 14 घंटे के बाद चेतना आई थी।
जब भारतीय क्षेत्र में भारत के स्वर्ण मुकुट कहे जाने वाले हिमालय पर पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने कदम रखने का कुटिल प्रयास किया। उस समय चोटी संख्या 5203 को मुक्त कराने का कार्यभार कैप्टन अमोल कालिया तथा 14 अन्य जवानों को दिया गया।
16,000 फीट की उस चोटी पर आधुनिक हथियारों के अभाव के बावजूद शूरवीर जवानों ने सात से आठ घंटों का भीषण युद्ध किया। उन्होंने दो दर्जन से ज्यादा शत्रुओं को मौत के घाट उतारा।
कैप्टन अमोल कालिया तथा उनके साथी जवान इस चोटी को बचाने में कामयाब रहे। इस दौरान पीछे से आए शत्रु दल ने कैप्टन अमोल कालिया को अपनी गोलियों से छलनी कर दिया। नौ जून रात्रि से चला यह अभियान 10 जून की सुबह तक चलता रहा।
इसमें अपने साथियों सहित अमोल कालिया शहीद हो गए। इस ऑपरेशन के दौरान कैप्टन अमोल कालिया सहित हिमाचल प्रदेश व कई अन्य राज्यों से ताल्लुक रखने वाले वीर सपूतों ने अपने शौर्य एवं पराक्रम से एक नया अध्याय रच दिया।