Home स्पोर्ट्स साल 2017: भारतीय हॉकी ने दो स्वर्ण और तीन कांस्य किए अपने...

साल 2017: भारतीय हॉकी ने दो स्वर्ण और तीन कांस्य किए अपने नाम….

33
0
SHARE

पिछले साल के आखिर में जूनियर विश्व कप अपनी झोली में डालने वाली भारतीय हॉकी के लिए साल 2017 मिली जुली सफलता वाला रहा जिसमें दो स्वर्ण और तीन कांस्य पदक भारत के नाम रहे. सात ही बड़े टूर्नामेंटों की सफल मेजबानी से अंतरराष्ट्रीय हॉकी में भारत का रुतबा बढ़ा. भारतीय सीनियर पुरुष टीम ने इस साल एशिया कप में पीला तमगा जीता, जबकि अजलन शाह कप और भुवनेश्वर में हुए हॉकी विश्व लीग फाइनल में कांसे से संतोष करना पड़ा. महिला टीम ने 13 साल बाद एशिया कप अपने नाम कर इतिहास रचा,  तो जूनियर टीम के हिस्से जोहोर बाहरू कप का कांस्य पदक रहा.

इस साल भारतीय पुरुष टीम के कोच रोलेंट ओल्टमेंस की खराब प्रदर्शन के बाद छुट्टी हो गई. जूनियर विश्व कप विजेता कोच हरेंद्र सिंह को इस साल महिला टीम की बागडोर मिली, तो महिला टीम के कोच रहे नीदरलैंड्स के शोर्ड मारिन ने सीनियर पुरुष टीम का जिम्मा संभाला. जूनियर टीम को जूड फेलिक्स के रूप में नया कोच मिला. हरेंद्र के साथ महिला टीम ने एशिया कप जीता, तो मारिन पहले विदेशी कोच हो गए, जिनके साथ सीनियर पुरुष टीम ने लगातार दो पदक (एशिया कप और हॉकी विश्व लीग फाइनल) जीते.

पिछले साल रियो ओलंपिक में खराब प्रदर्शन का गम भुलाते हुए साल का आगाज अप्रैल में अजलन शाह कप से हुआ, जिसमें न्यूजीलैंड को प्लेऑफ में हराकर भारत ने कांस्य पदक जीता. इस टूर्नामेंट में नियमित गोलकीपर और कप्तान पीआर श्रीजेश चोटिल हो गए और अब तक वापसी नहीं कर सके हैं.

इसके बाद जर्मनी में तीन देशों के आमंत्रण टूर्नामेंट में दुनिया की तीसरे नंबर की टीम बेल्जियम को हराना और जर्मनी से ड्रॉ खेलना भारत की उपलब्ध रही. वहीं, जून में लंदन में हॉकी विश्व लीग सेमीफाइनल में भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा और ओल्टमेंस की विदाई का कारण भी बना. भारत कनाडा और मलेशिया जैसी कमजोर टीमों से हारकर छठे स्थान पर रहा और एकमात्र उपलब्धि चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान पर मिली जीत रही. मेजबान होने के नाते हालांकि फाइनल्स में भारत की जगह पक्की थी.

अगस्त में यूरोप दौरे पर नौ जूनियर खिलाड़ियों को मौका दिया गया, जो लखनऊ में पिछले साल विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा थे. इससे ओल्टमेंस खफा हो गए, लेकिन चयनकर्ताओं के फैसले को सही साबित करते हुए भारत की युवा टीम ने नीदरलैंड्स को दो बार हराया. इसके बाद डच कोच की रवानगी दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ थी. महिला टीम के कोच मारिन को, जब सीनियर पुरुष टीम की जिम्मेदारी सौंपी गई, तो सभी को हैरानी हुई क्योंकि माना जा रहा था कि जूनियर टीम के कोच हरेंद्र सिंह नए कोच होंगे. मारिन के साथ भारत ने ढाका में एशिया कप जीता, जिसमें फाइनल में मलेशिया को 2-1 से मात दी.

साल के आखिर में भुवनेश्वर में खेला गया हॉकी विश्व लीग फाइनल्स दर्शकों के उत्साह और सफल मेजबानी की एक शानदार बानगी के रूप में बरसों तक याद रखा जाएगा. बारिश के बीच भी छाता लिए दर्शक कलिंगा स्टेडियम पर पूरी तादाद में जुटे और भारत से इतर मैचों में भी भीड़ देखी गई. दर्शकों के इस जज्बे को एफआईएच ने भी सलाम किया.

भरोसेमंद मिडफील्डर सरदार सिंह को बाहर रखने का फैसला चौकाने वाला रहा, जबकि ड्रैग फ्लिकर रूपिंदर पाल सिंह और बीरेंद्र लाकड़ा ने टीम में वापसी की. विश्व कप विजेता और गत चैंपियन ऑस्ट्रेलिया से ड्रॉ खेलकर भारत ने अच्छा आगाज किया, लेकिन फिर इंग्लैंड और जर्मनी से हार गई. बेल्जियम जैसी दमदार टीम को क्वार्टर फाइनल में पेनल्टी शूटआउट में हराकर भारत ने अंतिम चार में जगह बनाई. भारी बारिश में खेले गए सेमीफाइनल में रियो ओलंपिक चैंपियन अर्जेंटीना ने एक गोल से भारत को हराया, लेकिन फिर जर्मनी को प्लेऑफ में हराकर भारत ने कांसा बरकरार रखा, हालांकि जर्मन टीम के सात खिलाड़ी बीमार थे.

कोच मारिन ने कहा कि इस टूर्नामेंट के जरिये उन्हें टीम की ताकत और कमजोरियों का अहसास हो गया और अब वे अगले साल के लिए बेहतर रणनीति बना सकेंगे. उन्होंने कहा, ‘हम एक टीम के रूप में खेले और यह सबसे बड़ी बात है. यह युवा टीम है और इस टूर्नामेंट से मिला अनुभव अगले साल काफी काम आएगा. अगर हम अपनी क्षमता के अनुरूप खेलते रहे, तो दुनिया की किसी भी टीम को हरा सकते हैं.’ महिला टीम जोहानिसबर्ग में हॉकी विश्व लीग सेमीफाइनल में आठवें स्थान पर रही और एकमात्र जीत चिली के खिलाफ मिली. हरेंद्र के आने के बाद हालांकि टीम ने चीन को पेनल्टी शूटआउट में 5.4 से हराकर 13 बरस बाद एशिया कप जीता. पहली बार टीम एफआईएच रैकिंग में शीर्ष दस में पहुंची और कोच हरेंद्र का इरादा अगले साल के आखिर तक दुनिया की शीर्ष टीमों में इसे शामिल करना है.

उन्होंने कहा,‘मैं पोडियम फिनिश से संतुष्ट होने वालों में से नहीं हूं. मेरा लक्ष्य स्वर्ण पदक ही होता है और मुझे यकीन है कि यह टीम इसे हासिल करने में सक्षम है. बस हुनर को थोड़ा तराशने की जरूरत है. अगले साल कई टूर्नामेंट होने है और पहला लक्ष्य राष्ट्रमंडल खेलों में 2002 में जीता स्वर्ण फिर हासिल करना है.’ नरिंदर बत्रा इसी साल अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ के पहले गैर यूरोपीय अध्यक्ष बने और साल के आखिर में भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पद पर भी काबिज हुए. भारत ने 2019 में प्रस्तावित हॉकी प्रो-लीग से नाम वापस ले लिया, जबकि टीमों की आर्थिक अड़चनों के कारण हॉकी इंडिया लीग नहीं खेली जा सकी, हालांकि हॉकी इंडिया की सीईओ एलेना नॉर्मन ने 2019 में इसकी वापसी का दावा किया है.

अगला साल भारतीय हॉकी के लिए दशा और दिशा तय करने वाला होगा, जिसमें अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में राष्ट्रमंडल खेल, अगस्त सितंबर में जकार्ता में एशियाई खेल और फिर नवंबर दिसंबर में भुवनेश्वर में सीनियर हॉकी विश्व कप खेला जाना है. इनमें बेहतर प्रदर्शन करके विश्व हॉकी की महाशक्ति बनते जा रहे भारत का इरादा मैदानी प्रदर्शन में भी अपनी धाक कायम करने का होगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here