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जनता की सहभागिता से ही पर्यावरण संरक्षण – मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान…

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मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि पर्यावरण संरक्षण में जनता को जोड़ कर किए गए प्रयास ही सफल है। समाज यदि तय कर ले तो वह एक दिन में 7 करोड़ 14 लाख पौधे लगा सकता है। नदी संरक्षण की अभूतपूर्व पहल कर सकता है। इन अभूतपूर्व सफलताओं का आधार समाज को आगे कर सरकार द्वारा किये गये प्रयास है। मुख्यमंत्री श्री चौहान आज यहाँ आर.सी.वी.पी नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबंधकीय अकादमी के सभागार में राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा पर्यावरण पर राष्ट्रीय संगोष्ठी 2017 का दो दिवसीय आयोजन यहाँ किया गया है।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के कार्य अकेले सरकार नहीं कर सकती। समाज का साथ में खड़ा होना जरूरी है। प्रदेश में 2 जुलाई को हुआ वृक्षारोपण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। नर्मदा नदी, वृक्षारोपण के प्रति ऐसा उत्सवी माहौल था कि पौध-रोपण करना गर्व का विषय बन गया था। पौध-रोपण में शामिल नहीं होना लोक लज्जा का कारण माना जाने लगा था। उन्होंने कहा कि पौध-रोपण कार्य निरंतर अलग-अलग स्थलों पर हर वर्ष चलेगा। प्रदेश नर्मदा नदी के संरक्षण के अभियान से नदियाँ बचाने का राज्य बना है। अगले वर्ष से ताप्ती, बेतवा और क्षिप्रा जैसी अन्य नदियों के संरक्षण के कार्य जन-सहभागिता से किये जायेंगे। उन्होंने कहा कि नर्मदा प्रदेश की जीवन-रेखा है। विद्युत, सिंचाई और पेयजल का स्त्रोत है। नर्मदा का प्रवाह कम नहीं होने दिया जायेगा। वृक्षारोपण के साथ ही नदी में जल-मल को रोकने के लिये नर्मदा किनारे के सभी 18 शहरों में सीवरेज प्लान्ट लगाने, पूजन सामग्री कुंडों में प्रवाहित करने, अंतिम संस्कार के लिए मोक्ष धाम और कचरे से ऊर्जा बनाने के प्रयास किये गये हैं। नर्मदा के दोनों तटों पर मदिरा का विक्रय बंद करवाया गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति की मूल चेतना जड़, चेतन सभी को एक समान मानने और विश्व के कल्याण की है। इसीलिये पशुओं को देवी-देवताओं के साथ जोड़ कर आराधना की जाती है। गोर्वधन पूजा भी प्रकृति की उपासना ही है। यही चेतना सरकार का संकल्प है। ऐसा कोई उद्योग जो मानव, पशु-पक्षी जीवन के लिए खतरनाक है, प्रदेश की धरती पर नहीं लगेगा। उन्होंने कहा कि यह हर व्यक्ति का दायित्व है कि वह ऐसी धरती छोड़े, जो मानव और अन्य प्रजातियों को सुरक्षित रख सकें। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति देश में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नया वातावरण बनाया है। उन्होंने धरती को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित करने की सोच के साथ कार्य किया है। इसके प्रभावी परिणाम दिखने लगे हैं। मुख्यमंत्री ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किए गए अभूतपूर्व प्रयासों की सराहना की। धरती को प्राणी मात्र के लिए सुरक्षित बनाए रखने के लिए ट्रिब्यूनल को कठोर दृष्टिकोण रखने की जरूरत बताई। उन्होंने आव्हान किया कि वनों, प्रकृति का संरक्षण सबकी जिम्मेदारी है। वन्य-प्राणियों के घर सुरक्षित रहे, साथ ही इंसान के घर भी नहीं टूटे इस दिशा में चिंतन किया जाये। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संगोष्ठी का चिंतन पर्यावरण सरंक्षण के प्रयासों को नई दिशा देगा। मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया कि संगोष्ठी के निष्कर्षों को क्रियान्वित करने के प्रयासों में सरकार का पूरा सहयोग रहेगा।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने कहा कि पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति सोच में परिवर्तन समय की जरूरत है। दृष्टिकोण कैसा हो, इस विषय पर चिंतन होना चाहिए। साल के वृक्ष का उदाहरण देते हुए बताया कि 20 वर्ष के चक्र में लगने वाला कीड़ा 18 लाख साल के पेड़ खत्म कर देता हैं। ऐसी पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति विकास और शोध की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वनवासियों का वन के प्रति आसक्ति का आधार आजीविका है। वन संरक्षण के लिये वन के साथ उनके जुड़ाव को बढ़ाने के प्रयास जरूरी है। लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि टिश्यू कल्चर द्वारा पौध-रोपण से वनीकरण के प्रयासों पर विचार किया जाना चाहिये। वन हल्दी, मूसली आदि अनेक औषधीयाँ विलुप्त हो रही हैं। उनको लैब में तैयार कर वनवासियों को देने के प्रयासों पर विचार हो। उन्होंने कहा कि पेड़ लगाने को भारतीय संस्कृति में यज्ञ कराने के समान पुण्य का कार्य माना गया है। नदी साफ करना, जल और प्रदूषण रोकना, हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। इस लिए यह विचार किया जाना चाहिए कि जहाँ वन सुरक्षित है, वहाँ के रहवासी के लिए वन उनके विकास का माध्यम बने। वन संरक्षण के लिये उनको बर्बाद नहीं किया जाये। परियोजनाओं के प्रति पर्यावरणीय चिंतन भी समग्र दृष्टि से किया जाये। विद्युत उत्पादन की जल आधारित परियोजना का उल्लेख करते हुए कहा कि कुछ एकड़ में वृक्षों की रक्षा के लिए परियोजना 30 से 35 वर्षों से लंबित है। परियोजना यदि समय पर शुरू हो जाती तो कोयले से विद्युत उत्पादन से होने वाले प्रदूषण की भारी मात्रा में बचत हो जाती। उन्होंने इस दिशा में चिंतन का अनुरोध किया। उन्होंने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह द्वारा पौध-रोपण की पहल की सराहना करते हुए कहा कि निर्णय लेने और क्रियान्वयन की विशिष्ट क्षमता उनमें है। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पर्यावरण संरक्षण की क्रियात्मक पहल 5 करोड़ परिवारों को गैस कनेक्शन दिलवा कर की है। इस एक कार्य से 20 हजार करोड़ वृक्षों की रक्षा हुई है। इस दिशा में आगे बढ़ने के प्रयास जरूरी है। उन्होंने एन.जी.टी. के द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाये गये कदमों की सराहना करते हुए कहा कि इससे देश में पर्यावरणीय चेतना बनी है। संगोष्ठी के चिंतन को राज्य में लागू करने का आश्वासन दिया।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरमेन न्यायाधिपति श्री स्वतंत्र कुमार ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति आग्रही बन कर प्रयासों की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि केवल सस्टेनेबल डेव्लेपमेंट के लिए पेड़ काटे जाने चाहिये वह भी तब जब एक पेड़ के बदले में 10 पेड़ लगाये जाये। उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ सम्मानीय व्यवहार जरूरी है। यदि प्रकृति का अपमान किया गया तो उसके परिणाम अत्यंत भयंकर होंगे। विगत दिनों की प्राकृतिक विभीषिकाएँ, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। प्रकृति से जिसकी भरपाई हो सके, उससे अधिक नहीं लिया जाना चाहिये। उन्होंने आव्हान किया कि पर्यावरण संरक्षण के लिये सारे विश्व को परिवार मानकर हर घर, गली, मोहल्ले, राज्य और देश में प्रयास होने आवश्यक है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति भारत सरकार और ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा किये जा रहे प्रयासों की विश्व में हर स्तर पर सराहना हो रही है। उनके निर्णयों-निष्कर्षों का सारी दुनिया के विकास में प्रयोग हो रहा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संगोष्ठी के निष्कर्ष क्षेत्र, देश और विश्व के लिये उपयोगी होंगे।

प्रारंभ में राष्ट्रीय हरित अधिकरण क्षेत्रीय न्यायपीठ मध्य क्षेत्र के न्यायाधिपति श्री दिलीप सिंह ने क्षेत्र में पर्यावरणीय चेतना के विभिन्न विषय पर प्रकाश डाला। बताया कि एन.जी.टी. बैंच के प्रयासों से युवाओं में पर्यावरणीय उत्साह और जागरूकता बढ़ी है। उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को मज़बूत बनाने की मध्यप्रदेश की पहल की सराहना की। उन्होंने बताया कि अधिकरण द्वारा आयोजित क्षेत्रीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के क्रम में पहली चेन्नई में हुई थी। भोपाल की संगोष्ठी दूसरी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संगोष्ठी का चिंतन पर्यावरण के बेहतर भविष्य का रोडमेप बनायेगा। आभार प्रदर्शन प्रमुख सचिव पर्यावरण श्री मलय श्रीवास्तव ने किया। संचालन सुश्री प्रतीक्षा द्वारा किया गया। अतिथियों को स्मृति-चिन्ह भेंट किये गये। अतिथियों द्वारा अकादमी परिसर में पौध-रोपण भी किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ दीप जलाकर से हुआ।

कार्यक्रम में एन.जी.टी. सेंट्रल बैंच की स्मारिका का विमोचन और प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2014-15 एवं 2015-16 के पुरस्कार औद्योगिक इकाइयों और नगर निकायों को दिये गये। संगोष्ठी में पर्यावरण मंत्री श्री अंतर सिंह आर्य, मुख्य सचिव श्री बी.पी. सिंह, सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के चेयरमेन श्री एस.पी.एस. परिहार, राजस्थान नदी घाटी प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री राम वेदरी और महाधिवक्ता मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय श्री पुष्पेन्द्र कौरव भी मौजूद थे।

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