Home राष्ट्रीय आम बजट : उम्मीदों और लक्ष्यों के बीच तालमेल की चुनौती….

आम बजट : उम्मीदों और लक्ष्यों के बीच तालमेल की चुनौती….

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यह बजट ऐसे समय में पेश किया जा रहा है जबकि आने वाले महीनों में आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से तीन प्रमुख राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकारें हैं। अगले साल आम चुनाव भी होने हैं।
बजट में नयी ग्रामीण योजनाएं आ सकती हैं तो मनरेगा, ग्रामीण आवास, सिंचाई परियोजनाओं व फसल बीमा जैसे मौजूदा कार्यक्रमों के लिए आवंटन में बढ़ोतरी भी देखने को मिल सकती है।
गुजरात में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में देखने को मिला कि भाजपा का ग्रामीण वोट बैंक छिटक रहा है जिसे ध्यान में रखते हुए जेटली अपने बजट में कृषि क्षेत्र के लिए कुछ प्रोत्साहन भी ला सकते हैं।

इसी तरह लघु उद्योगों के लिए भी रियायतें आ सकती हैं क्योंकि इस खंड को भाजपा के प्रमुख समर्थक के रूप में देखा जाता है। जेटली माल व सेवा कर (जीएसटी) के कार्यान्वयन से इस वर्ग को हुई दिक्कतों को दूर करने के लिए कुछ कदमों की घोषणा कर सकते हैं।
इसके साथ ही आयकर छूट सीमा बढ़ाकर आम आदमी को कुछ राहत देने का प्रयास भी बजट में किया जा सकता है। राजमार्ग जैसी ढांचागत परियोजनाओं के साथ साथ रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए अधिक आवंटन किया जा सकता है।
लेकिन इसके साथ ही जेटली के समक्ष बजट घाटे को कम करने की राह पर बने रहने की कठिन चुनौती भी है। अगर भारत इस डगर से चूकता है तो वैश्विक निवेशकों व रेटिंग एजेंसियों की निगाह में भारत की साख जोखिम में आ सकती है।
जेटली ने राजकोषीय घाटे को मौजूदा वित्त वर्ष में घटाकर जीडीपी के 3.2 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा था। आगामी वित्त वर्ष 2018-19 में इसे घटाकर तीन प्रतिशत किया जाना है।
हालांकि इस बजट को लेकर बड़ी अपेक्षाएं नहीं पालने की नसीहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही दे चुके हैं जबकि उन्होंने संकेत दिया था कि बजट में लोकलुभावन कदमों पर जोर नहीं होगा। उन्होंने कहा था, यह एक भ्रम है कि आम आदमी छूट चाहता है।
जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद यह पहला आम बजट होगा जिस पर विश्लेषकों की इसलिए भी निगाह है क्योंकि वे देखना चाहते हैं कि जेटली वृद्धि को बल देने के लिए क्या क्या उपाय करेंगे।
ऐसी चर्चा है कि शेयरों में निवेश से होने वाले पूंजीगत लाभ पर कर छूट समाप्त हो सकती है। यह भी देखना होगा कि क्या जेटली कारपोरेट कर में कमी लाने के अपने वादे को पूरा करते हैं या नहीं। जानकारों का कहना है कि कुछ क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने के लिए प्रोत्साहनों की घोषणा हो सकती है तो उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए स्टार्टअप यानी नयी कंपनियों के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं।
बजट में अधिक परियोजनाएं कम कर चाहते हैं उपक्रम
आम बजट से एक दिन पहले परिवहन क्षेत्र के 87.5 प्रतिशत लघु एवं मझोले उपक्रमों (एसएमई) ने क्षेत्र के लिए और अधिक परियोजनाओं की घोषणा की उम्मीद जताई है। डन एंड ब्रैडस्ट्रीट के एक सर्वे में यह जानकारी दी गई है।
सर्वे में कहा गया है कि खुदरा और ई कामर्स क्षेत्र के 54 प्रतिशत एसएमई राष्ट्रीय खुदरा नीति चाहते हैं। सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया है कि धातु और खनन क्षेत्र के 43 प्रतिशत लघु एवं मझोले उद्यमों ने कहा कि सरकर को लाभ से जुड़े प्रोत्साहनों का विस्तार कर इसमें पूंजी गहन उद्योगों को भी शामिल करना चाहिए।
हालांकि, 88 प्रतिशत की राय थी कि सरकार संरक्षणवादी रुख अपनाते हुए घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देगी। सर्वे के अनुसार वाहन क्षेत्र से जुड़े 56 प्रतिशत एसएमई ने सहायक या छोटे मोटे उपकरणों पर माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में कटौती का सुझाव दिया है।
भारतीय वाहन कलपुर्जा विनिर्माता संघ (एक्मा) ने भी यह सुझाव दिया है। वहीं 88 प्रतिशत की राय थी कि सरकार को भारत चरण छह को अपनाने के लिए प्रोत्साहन देने वाले कदम उठाने चाहिए।
रसायन और फार्मा क्षेत्र के 50 प्रतिशत लघु एवं मझोले उद्यमों ने कहा कि सरकार को बजट में शोध एवं विकास के लिए भारित कटौती प्रावधान को बदलकर इसे 200 प्रतिशत करना चाहिए।
सर्वे के अनुसार खुदरा और ई-कामर्स क्षेत्र के 52 प्रतिशत लोगों ने खुदरा और एफएमसीजी क्षेत्र के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की वकालत की। वहीं परिवहन और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के 88 प्रतिशत लोगों का कहना था कि लॉजिस्टिक पार्कों की स्थापना की जानी चाहिए।
सर्वे में कहा गया है कि 91 प्रतिशत एसएमई ने प्रोत्साहन देने वाली सरकार की नीतियों और योजनाओं के जरिये प्रौद्योगिकी को अपनाने पर जोर दिया।

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