Home राष्ट्रीय कावेरी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला कर्नाटक ने जताई खुशी…..

कावेरी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला कर्नाटक ने जताई खुशी…..

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150 साल पुराने कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को झटका दे दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को मिलने वाला पानी घटाने का आदेश दिया है. अब तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी पानी ही मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कर्नाटक ने खुशी जताई है. अब तमिलनाडु का 15 टीएमसी पानी कर्नाटक को  लेगा.सुप्रीम कोर्ट के ही कहने पर कावेरी नदी प्राधिकरण ने 2007 में कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, पुदुच्चेरी के बीच पानी बांटा था. लेकिन राज्यों ने इसे नहीं माना था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई.

कावेरी कर्नाटक के कोडागू से बहना शुरू होती है. इसलिए पानी देना कर्नाटक की जिम्मेदारी है लेकिन कर्नाटक इसके लिए तैयार नहीं है. 2007 में कावेरी ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडू को 419,कर्नाटक को 270, केरल को 30 टीएमसी और पुदुच्चेरी को 7 टीएमसी पानी देने का आदेश दिया था. जिस पर सभी राज्यों ने असंतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

कावेरी जल विवाद लंबे समय से कर्नाटक और तमिलनाडू की राजनीति को प्रभावित करता रहा है. दोनों राज्यों में इस मसले पर कई बार उग्र प्रदर्शन हो चुके हैं. राज्य बदली हुई परिस्थितियों का हवाला देते हुए ज़्यादा पानी की मांग कर रहे हैं. पानी के बंटवारे का विवाद लगभग 150 साल पुराना है. तब कर्नाटक मैसूर रियासत के तहत था और तमिलनाडू मद्रास प्रेसिडेंसी कहलाता था. मैसूर के राजा और मद्रास के ब्रिटिश अधिकारियों में पानी के बंटवारे को लेकर कई बार समझौते हुए. इनमें एक बड़ा समझौता 1924 ने हुआ था. तब दोनों राज्यों में सिंचाई भूमि का क्षेत्र और सिंचाई के लिए ज़रूरी पानी की मात्रा तय की गई.

आज़ादी के बाद जब राज्यों का पुनर्गठन हुआ तो कर्नाटक और तमिलनाडू के साथ केरल और पुदुच्चेरी का भी कुछ हिस्सा कावेरी बेसिन के तहत पड़ गया. इस वजह से ये दोनों राज्य भी पानी के दावेदार हैं. 1924 में हुए समझौते की मियाद 50 साल, यानी 1974 तक थी। 70 और 80 के दशक में कावेरी के पानी पर दोनों राज्यों में विवाद और बढ़ने लगा. कभी आपसी बातचीत, कभी केंद्र के दखल तो कभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अस्थायी हल निकाले गए. हालांकि, जब भी मानसून की स्थिति कमजोर पड़ी, कर्नाटक ने तमिलनाडू के लिए पानी छोड़ने से मना किया. 1995-96 और 2002 में ऐसे ही हालात बने.

2007 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बने कावेरी डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल ने पानी बंटवारे पर आदेश दिया. ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडू को 419 टीएमसी, कर्नाटक को 270 टीएमसी, केरल को 30 टीएमसी और पुदुच्चेरी को 7 टीएमसी पानी दिया, लेकिन अपने हिस्से में आए पानी पर असंतोष जताते हुए सभी राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी.

कर्नाटक का कहना है कि ट्रिब्यूनल ने पुराने आंकड़ों के आधार पर पानी का बंटवारा कर दिया. आज के हालात में वो इतना पानी देने की स्थिति में नहीं है। जो पानी उसके हिस्से में आया है, वो सिंचाई के लिए कम है. इसके अलावा उसे बहुत बड़े महानगर में तब्दील हो चुके बंगलुरू में सप्लाई करने के लिए भी काफी पानी चाहिए. तमिलनाडू की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट पानी में उसका हिस्सा बढ़ाए. साथ ही पानी के बंटवारे को लेकर न्यायिक आदेश पास करे ताकि राजनीतिक लड़ाई के नुकसान से किसानों को बचाया जा सके.

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