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शून्य लागत खेती को लेकर शिमला में सम्मेलन, कई विशेषज्ञों ने दिए किसानों को टिप्स….

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सम्मेलन में आंध्र प्रदेश के कृषि सलाहकार टी. विजय कुमार भी मौजूद रहे। इस सम्मेलन में अतिरिक्त मुख्य सचिव (कृषि) डॉ. श्रीकांत बाल्दी ने कहा की शून्य लागत प्राकृतिक खेती से किसान की आय डबल हो सकती है। पालमपुर विवि में इसका तुलनात्मक अध्ययन हुआ है और पाया गया है कि प्राकृतिक खेती में ज्यादा उत्पादन हुआ है, जबकि रसायनिक इस्तेमाल में कम उत्पादन हुआ। उन्होंने कहा कि एक गाय से 30 एकड़ में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। गाय का दस किलो गोबर और सात लीटर गौ मूत्र एक एकड़ में खेती को पर्याप्त है।
डॉ. बाल्दी ने कहा कि हिमाचल में उर्वरक का कम प्रयोग होता है। उनका कहना था कि यहां 59 किलो प्रति हेक्टेयर उर्वरक का प्रयोग होता है, जबकि पंजाब में 237 और देशभर में 141 किलो प्रति हेक्टेयर है। वहीं कीटनाशक भी यहां कम इस्तेमाल होता है। हिमाचल में 158 ग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक प्रयोग होता है, जबकि पंजाब में यह 1164 ग्राम प्रति हेक्टेयर और देशभर में 381 ग्राम प्रति हेक्टेयर है।
डॉ. बाल्दी ने कहा कि हिमाचल में 2009-10 में जैविक खेती शुरू की गई थी और 2011 में जैविक खेती नीति तैयार की थी। इसके बाद इसमें और ज्यादा कार्य हुआ। अब राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने शून्य लागत प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक किया है और उन्होंने गुरूकुल में जो देखा है, उससे वे प्रभावित हुए हैं और अब इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

शून्य लागत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आयोजित इस सम्मेलन में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल, शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज, ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा, स्वास्थ्य मंत्री विपन सिंह परमार, ग्रामीण विकास मंत्री वीरेंद्र कंवर, वन मंत्री गोबिंद ठाकुर, कई विधायक, जिला परिषद सदस्य, किसान और सरकार के उच्चाधिकारी भी मौजूद रहे।

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