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B’Day Spl: सुपरस्टार ‘के एल सहगल’ का 114वां जन्मदिन, गूगल ने ‘डूडल’ बनाकर किया याद…

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गूगल के रंग बिरंगे डूडल में सहगल को एक माइक के सामने गाते हुए दिखाया गया है। गूगल डूडल में सहगल के पीछे कोलकाता की कुछ बिल्डिंग्स भी दिखाई दे रही हैं। गूगल का यह डूडल जानी-मानी कलाकार विद्या नागराजन ने बनाया है।
बॉलीवु़ड के पहले सुपरस्टार के एल सहगल को कौन नहीं जानता। यह फिल्म इंडस्ट्री के पहले ऐसे सिंगर और एक्टर हैं जिन्होंने महज 15 साल के फिल्मी सफर में ऐसी छाप छोड़ी जिसे लोग आज भी याद करते हैं। उन्होंने बचपन में इंडियन क्लासिकल म्यूजिक में महारत हासिल की। वे भजन, कीर्तन गाया करते थे। एक सफल गायक और अभिनेता के तौर पर खुद को स्थापित करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की थी। के एल सहगल की आज 114वीं बर्थ एनिवर्सरी है।
हिंदी सिनेमा में बेमिसाल गायक के नाम से मशहूर सहगल का जन्म 11 अप्रैल, 1904 को हुआ था। सहगल ने कम उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया था। उन्होंने रेलवे टाइमकीपर का काम कर पैसा कमाना शुरू किया था। बाद में टाइपराइटर सेल्समैन का काम करने लगे थे। जिसकी वजह से वे कई जगह जाते थे। सहगल को उनके दोस्त मेहरचंद जैन ने गाने में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था।

1930 में उन्होंने बतौर सिंगर फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था। उनका गाना ‘झुलाना झुलाओं’ काफी हिट हुआ। उन्होंने गायकी के साथ एक्टिंग में भी हाथ आजमाने की सोची। दर्शकों को उनकी गायकी के साथ अदाकारी भी खासी पसंद आई। उन्होंने फिल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ से फिल्मों में डेब्यू किया था। साथ ही उन्होंने जिंदा लाश, सुबह का सितारा, देवदास, यहूदी की लड़की जैसी कई फिल्मों में काम किया।

के एल सहगल का दौर बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, किशोर कुमार, मुकेश, मुहम्मद रफी के स्टारडम के पहले का दौर है। यानी कि 1932 से 1947 तक का दौर बॉलीवुड के इस सुपरहीरो का था। के एल सहगल की शख्सियत ऐसी थी कि गायक किशोर और मुकेश भी उनसे प्रभावित थे और आदर्श मानते थे। शानदार गायक होने के साथ-साथ सहगल ने अपने अभिनय से भारतीय दर्शकों के दिलों पर खास जगह बनाई। 1935 में आई फिल्म ‘देवदास’ सहगल के करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई।

उनकी ख्याति का अंदाजा महज इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस दौर के इस दिग्गज एक्टर ने 200 फिल्मी गाने गाए। सहगल ने कई गैर फिल्मी गाने भी गाए जो आज भी युवाओं के दिलों की धड़कन बने हुए हैं। वो सहगल ही थे जो अपने गायन के दम पर भारतीय फिल्मी दुनिया को नई ऊंचाइयों पर ले गए। उनके गाने- जब दिल ही टूट गया, एक बंगला बने न्यारा, हम अपना उन्हें बना ना सके, दो नैना मतवाले तिहारे, मैं क्या जानूं क्या जादू है, किताबें, तकदीर आज भी युवाओं के पसंदीदा बने हुए हैं।

साल 1931-32 के बीच भारतीय सिनेमा की दुनिया में कदम रखने के बाद सहगल अगले कुछ ही सालों में सबसे मशहूर शख्सियत के रूप में उभरे। साल 1935 से 1947 तक उन्होंने गायकी और एक्टिंग की दुनिया पर एकछत्र राज किया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, फिल्मी दुनिया में कदम रखने के बाद के. एल. सहगल ने अपने 15 साल के करियर में कुल 36 फिल्मों में काम किया। इनमें उन्होंने 28 हिंदी फिल्में की, जबकि 7 बंगाली फिल्मों में काम किया। इनमें ‘प्रेसिडेंट’, ‘माई सिस्टर’, ‘जिंदगी’, ‘चांदीदास’, ‘भक्त सूरदास’, ‘तानसेन’ और अन्य खासी हिट रहीं।

सहगल ने किसी तरह के म्यूज़िक की ट्रेनिंग नहीं ली थी और वह अपनी मां और दूसरे लोगों के साथ धार्मिक कार्यक्रमों में गाया करते थे। सहगल को 1932 में उस समय बड़ा ब्रेक मिला जब उन्हें New Theatres नाम के एक फिल्म स्टूडियो ने तीन फिल्मों में लिया।

एक साल बाद, उन्होंने ‘पुराण भगत’ नाम की फिल्म में गाने गाए। ये गाने खूब पसंद किए गए और सहगल घर-घर में जाना पहचाना नाम बन गए। उनकी सबसे यादगार फिल्मों में भक्त सूरदास (1942) और तानसेन (1943) शामिल हैं। उमर खैयाम, कुरुक्षेत्र और शाहजहां जैसी कई बेहतरीन फिल्में भी उनके हिस्से में हैं। उनकी आखिरी फिल्म परवाना (1947) में रिलीज़ हुई।

सहगल को जो शोहरत मिली वो कम ही लोगों को हासिल होती है। उनकी लोकप्रियता का आलम ये रहा है कि अपने दौर के सबसे फेमस रेडियो चैनल रेडियो सीलोन ने करीब 48 साल तक हर सुबह अपना एक कार्यक्रम सहगल के गानों पर ही आधारित रखा था। 1940 से 1947 तक सहगल ने हिंदी फिल्म जगत में काफी नाम कमाया। सहगल ने अपने करियर में 185 गाने रिकॉर्ड किए, इसमें में 142 फिल्मी और 43 नॉन-फिल्मी रहे।

उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि लता मंगेशकर से लेकर किशोर कुमार तक के एल सहगल को अपना गुरू मानते थे। सहगल की एक्टिंग और गायकी का कोई तोड़ नहीं था लेकिन शराब की लत की वजह से उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया। कहा जाता है कि रिकॉर्डिंग भी एक पैग पीने के बाद ही करते थे। सहगल महज 43 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन इस छोटे से दौर में उन्होंने शोहरत की बुलंदियां हासिल कर ली थीं। उनका निधन 18 जनवरी, 1947 को जलंधर में हुआ था।

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