Home आर्टिकल विंध्य की सांस्कृतिक विरासत है कृष्णा-राजकपूर आडिटोरियम -राजेन्द्र शुक्ल….

विंध्य की सांस्कृतिक विरासत है कृष्णा-राजकपूर आडिटोरियम -राजेन्द्र शुक्ल….

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विंध्य वसुंधरा आदिकाल से अनमोल रत्नों से संपन्न रही है। खनिज और प्राकृतिक संसाधन, जलप्रपात, हरे-भरे वन और भरपूर वन्य जीव सम्पदा यहां की विशेषता हैं। साहित्य, कला, संस्कृति और लोक परंपराओं के मामले में भी विंध्य क्षेत्र बेजोड़ है। रीवा में 2 जून को कृष्णा राजकपूर ऑडिटोरियम और कला संस्कृति केंद्र का लोकार्पण, कला, संस्कृति एवं साहित्य साधकों के लिये अविस्मरणीय अवसर होगा।

लोग प्रायः पूछ बैठते हैं कि राजकपूर का रीवा से क्या रिश्ता रहा है..? वर्षों-वर्ष तक मुझे भी नहीं मालूम था। एक साहित्यिक समारोह में विंध्य के संस्कृतिकर्मियों ने इस तथ्य की ओर मेरा ध्यान आकर्षित करते हुए एक सुविधा संपन्न रंगशाला बनवाने की मांग की। तभी मैंने जाना कि राजकपूर की बारात रीवा आई थी और यहीं उनकी शादी हुई थी। करतारनाथ मल्होत्रा रीवा राज्य के आईजी थे। उनकी पुत्री कृष्णा जी के साथ 12 मई 1946 को यह विवाह संपन्न हुआ था। उस समारोह में शामिल होने व उसका स्मरण करने वाले आज भी कई लोग हैं। एक मित्र ने 1953 में रिलीज हुई फिल्म आह का वह भावपूर्ण दृश्य भी दिखाया जिसमें राजकपूर कहते हैं.. कि मुझे रीवा पहुंचना है, मुझे रीवा ले चलो..। इस फिल्म का क्लाइमेक्स रीवा ही है। कृष्णा-राजकपूर के लिए रीवा की अहमियत क्या रही, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम ही ‘रीमा’ रख दिया। रीवा का ऐतिहासिक नाम रीमा है। फिल्म-जगत के ग्रेट शोमैन का इतना प्रगाढ़ रीवा प्रेम..! 

इन तथ्यों से परिचित होने और यहां के संस्कृति कर्मियों की मंशा के अनुरूप यह तय हुआ कि राजकपूर की स्मृतियों को समर्पित एक भव्य ऑडिटोरियम बने। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी को यहाँ के निवासियों की मंशा से अवगत कराया, उन्होंने मुझसे इस परियोजना को आगे बढ़ाने और मूर्त रूप देने को कहा। हमारे मुख्यमंत्री कलाप्रेमी व उत्सवधर्मी व्यक्तित्व के कितने धनी हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 में भोपाल में नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के तर्ज पर मध्यप्रदेश स्कूल आफ ड्रामा की स्थापना की गई। आज यह संस्था पूरे देश में यश अर्जित कर रही है। इसी क्रम में प्रदेश में आनंद विभाग की स्थापना हुई है। मुख्यमंत्री जी का लोककला संस्कृति प्रेम सब जानते हैं। उन्हीं के मार्गदर्शन में यह तय हुआ कि जिस भवन में कृष्णा-राजकपूर का विवाह संपन्न हुआ था वहीं यह ऑडिटोरियम बने। उसके भूमि-पूजन के लिए राजकपूर जी के ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर जी रीवा आए। उन्होंने मुख्यमंत्री जी से मिलकर इस कला केन्द्र के लिये कृतज्ञता ज्ञापित की।

राजकपूर जी की पुण्यतिथि 2 जून को होती है। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का इससे बढ़िया मुहूर्त और क्या हो सकता है। लगभग बीस करोड़ की लागत से बने इस विश्वस्तरीय ऑडिटोरियम के लोकार्पण समारोह में बालीवुड का प्रतिष्ठित कपूर और मल्होत्रा परिवार शामिल होने आ रहा है। यह एक भावपूर्ण क्षण होगा, जब स्मृति जीवंत हो उठेगी। इस समारोह में राजकपूर के बेटे रणधीर कपूर, राजीव कपूर तो रहेंगे ही, प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता प्रेम चौपडा और उनकी पत्नी उमा भी शामिल होंगी। उमाजी भी करतारनाथ की बेटी हैं, जिनका जन्म यहीं, उसी सरकारी बंगले में हुआ था, जहाँ आज यह ऑडिटोरियम तैयार खड़ा है। अभिनेता प्रेमनाथ का बाल्यकाल इसी रीवा में बीता है, वे कृष्णा जी के बड़े भाई हैं। इस समारोह में उनके बेटे प्रेमकिशन भी होंगे। इस तरह फिल्म कलाजगत के दो महान परिवारों के वंशजों की भागीदारी में यह समारोह होगा।

ऑडिटोरियम विंध्य ही नहीं, समूचे मध्यप्रदेश का महत्वपूर्ण कला केंद्र होगा। इसमें विंध्य के महान सपूतों की कृतियों और स्मृतियों को सहेजा जाएगा। ऑडिटोरियम के निर्माण काल के ही बीच मध्यप्रदेश नाट्यविद्यालय के निदेशक संजय उपाध्याय यहां आए थे। उन्होंने बताया कि विद्यालय के रंगकर्मी बाणभट्ट की अमर रचना कादंबरी के मंचन की तैयारी कर रहे हैं। बाणभट्ट हमारे विंध्य की अमूल्य निधि हैं। छठवीं सदी के इस महान विद्वान का जन्म विंध्याटवी में सोणभद्र(सोन) के किनारे हुआ। बाणसागर उन्हीं की स्मृति को समर्पित है। संजय उपाध्याय ने ही बताया कि छठवीं सदी के इस संस्कृत उपन्यास का रंग-जगत में पहली बार मंचन होने जा रहा है। इसके नाट्यरूपांतरण का श्रेय रीवा निवासी व देश के सुप्रसिद्ध नाटककार योगेश त्रिपाठी को जाता है। मैंने आग्रह किया है कि कादंबरी का पहला मंचन इसी ऑडिटोरियम में हो।

मैं वृत्ति से इंजीनियर और प्रवृत्ति से राजनीति में हूँ। विंध्य के कला-साहित्य-संस्कृति कर्मियों के सानिध्य और संवाद से ही इस क्षेत्र में मेरी थोड़ी बहुत समझ बनी है। यह जानकर भी गौरवान्वित होता हूँ कि हिंदी साहित्य के पहले नाटक आनंदरघुनंदन के रचयिता हमारे महाराज विश्वनाथ सिंह रहे हैं। यह जानकर सुख मिला कि 186 वर्ष बाद उसका पहला मंचन मध्यप्रदेश नाट्यविद्यालय के रंगकर्मियों ने किया और उसे देशव्यापी सराहना मिली। आनंदरघुनंदन का मंचन भी इस ऑडिटोरियम में होगा। महाराज विश्वनाथ सिंह की स्मृति को अक्षुण्य बनाने की दिशा में हम ठोस पहल करेंगे। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की पहली कविता की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की। यह भी विंध्य के लिए गौरव का विषय है कि उनका आश्रम तमसा(टमस) के तट पर था। मार्कंडेय पुराण, जिसमें दुर्गा शप्तशती जैसी अमृतमयी रचना है, उसके रचयिता महर्षि मार्कंडेय का भी वास्ता इस भूमि से रहा है।

मुख्यमंत्री जी के मार्गदर्शन में बाणसागर के किनारे प्राचीन मार्कंडेय आश्रम को रमणीक बनाया गया है। वहां पहुंचने पर अलग ही आध्यात्मिक सुख मिलता है। संत तुलसीदास ने चित्रकूट में रहकर रामचरित मानस की रचना पूरी की। यह जानकर गौरव की अनुभूति होती हैं कि इस महान ग्रंथ में हमारी बोली को मान-सम्मान दिया गया है। विंध्य-भूमि भगवान राम की लीलाभूमि रही है। उनकी स्मृतियाँ यहां के कण-कण में है। रंगमंच में रामलीला की परंपरा शुरू करने का स्तुत्य योगदान यहीं के हमारे पूर्वज कलाकारों को है। महान संगीतकार तानसेन की साधना स्थली भी यही भूमि रही। जनश्रुति के अनुसार बीरबल का जन्म सीधी जिले के घोघरा में हुआ और विश्वभर में संगीत परंपरा की सुर लहरी बिखेरने वाले बाबा उस्ताद अलाउद्दीन ने मैहर में माँ शारदा के चरणों में बैठकर साधना की थी। इतिहास के ये अनमोल अध्याय विंध्य की गौरवमयी सांस्कृतिक विरासत का बखान करते हैं। इनसे जुड़ी श्रुतियों और स्मृतियों को सहेजने का काम मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के मार्गदर्शन में मध्यप्रदेश शासन द्वारा किया जाएगा।

मेरा मानना है कि अधोसंरचनाओं के निर्माण भर ही विकास नहीं होता है, उसे प्राण-वायु देने का काम लोककलाएं व हमारी संस्कृति करती है। हमारा मध्यप्रदेश इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।

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