मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बड़े तालाब के पास जिस पहाड़ी पर आज वन विहार राष्ट्रीय उद्यान है, तीन दशक पहले वह वीरान थी। आबादी की मार से जंगल बर्बाद हो चुका था। वन विभाग के प्रयासों से 1981 से इस पहाड़ी के वन क्षेत्र का सघन संरक्षण शुरू हुआ और जल्दी ही पहाड़ी पर हरीतिमा की चादर फैलने लगी। वर्ष 1983 में 26 जनवरी को पहाड़ी के 445.21 हेक्टेयर इलाके को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला और नाम दिया गया वन विहार।
वन विहार में वन्य-प्राणियों को प्राकृतिक वातावरण में रखा जाता है। यहाँ लावारिस, कमजोर, रोगी, घायल, बूढ़े और जंगल में भटके हुए वन्य-प्राणियों को लाकर उनका उपचार और सेवा की जाती है। देश के अन्य राज्यों के प्राणी संग्रहालयों से अदला-बदली कर यहाँ लाये गये हैं। सर्कस और मदारियों से छुड़ाए गये जानवर भी यहाँ रखे गये हैं। अच्छी देखभाल के कारण यहाँ रहने वाले सिंह, बाघ, भालू आदि जानवर औसत आयु से अधिक जिंदगी जी रहे हैं।
वन विहार की प्राकृतिक छटा तथा वन्य-प्राणियों और पक्षियों के कारण पर्यटकों का यहाँ आवागमन हमेशा ही बना रहता है। वन विहार के बोट क्लब के पास रामू गेट से भदभदा के पास चीकू गेट तक लगभग 5 किलोमीटर में प्रकृति और वन्य-प्राणियों से पर्यटकों का भरपूर मनोरंजन होता है। साथ में दूरबीन और कैमरा लाने पर भ्रमण और भी रोमांचक बन सकता है। पक्षी देखने में रुचि रखने वाले लोगों के लिये सर्दियाँ यहाँ बहुत आल्हादकारी हैं। सर्दी के मौसम में यहाँ बेशुमार प्रवासी पक्षी भी आते हैं। अब तक करीब 211 प्रजातियों के पक्षियों को यहाँ चिन्हित किया जा चुका है।
राष्ट्रीय उद्यान में शाकाहारी वन्य-प्राणी सांभर, चीतल, नीलगाय, कृष्ण मृग, लंगूर, जंगली सुअर, सेही, खरगोश आदि खुले रूप में विचरण करते हैं। सिंह, बाघ, भालू, तेंदूआ, लकड़बग्घा, रीछ आदि मांसाहारी जानवरों को बाड़ों में रखा गया है। यहाँ स्नेक-पार्क भी है, जिसमें विषैले किंग कोबरा, कोबरा, वायपर रसैल के साथ विषहीन धामन, चैकर्डकीलबेक, सेण्डबोआ आदि को रखा गया है। ये भोपाल के विभिन्न स्थानों से रेस्क्यू कर लाये गये हैं।
भोपाल तालाब का लगभग 50 हेक्टेयर जल क्षेत्र वन विहार से लगा हुआ है, जो सूर्य के साथ सुबह, दोपहर, शाम अलग-अलग अद्भुत छटाएँ बिखेरता रहता है।
वन विहार में मध्यप्रदेश का एकमात्र सर्व-सुविधा सम्पन्न रेस्क्यू सेंटर है। इसमें बीमार, वनों से भटके हुए, सर्कस आदि से बरामद किये गये, मांसाहारी और शाकाहारी वन्य-प्राणियों के उपचार और रख-रखाव की आधुनिक व्यवस्था है। वन विहार में बेल, इमली, बबूल, अमलतास, रेओंझा, दूधी, लेडिया, साजा, आँवला, तेन्दू और सीताफल आदि के साथ कई किस्म की घास भी पाई जाती है। वन विहार के निचले हिस्से में गाजर घास, चकौड़ा, धतूरा और वन तुलसी फैली हुई है।
वन विहार में 5 वर्ष से कम बच्चों को नि:शुल्क और स्कूल एवं कॉलेज के छात्र-छात्राओं द्वारा पूर्व सूचना पर 50 प्रतिशत भुगतान पर प्रवेश की अनुमति है। एक संस्था को साल में केवल एक ही बार यह सुविधा उपलब्ध है। वन विहार में मौसम के अनुसार भ्रमण का समय बदलता रहता है। पार्क एक से 31 अक्टूबर तक प्रात: 7 बजे से शाम 6 बजे तक, एक नवम्बर से 15 फरवरी तक प्रात: 7 बजे से शाम 5.30 बजे तक, 16 फरवरी से 15 अप्रैल तक सुबह 7 बजे से शाम 6.30 बजे तक और 16 अप्रैल से 31 जुलाई तक सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। वन विहार में प्रत्येक शुक्रवार, दीपावली, होली और रंगपंचमी को अवकाश रहता है।
पर्यटकों के लिये बैटरी-चलित वाहन, पेयजल, बैठने, साइकिल, कैफेटेरिया आदि की सुविधाएँ हैं। चीकू द्वार पर लकड़ी से बना कैफेटेरिया आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ बैठकर झील दर्शन के साथ चाय, नाश्ता अद्भुत अहसास देता है।
वन विहार में वन्य-प्राणी को किसी भी संस्था या व्यक्ति द्वारा मासिक, त्रैमासिक, छ:माही या वर्षभर के लिये गोद भी लिया जा सकता है। योजना में व्यय की गई राशि आयकर मुक्त होती है। इसके अलावा भारतीय और विदेशी दानदाता भी यहाँ स्थापित मध्यप्रदेश टाइगर फाउण्डेशन सोसायटी के लिये राशि दान कर सकते हैं। दान राशि आयकर से मुक्त है। यह राशि वन्य-प्राणियों के रख-रखाव, पोषण-आहार आदि पर खर्च की जाती है।