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कैबिनेट ने SC/ST एक्ट पर संशोधन बिल लाने की मंज़ूरी दे दी संसद के इसी सत्र में बिल लाया जाएगा…

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 कैबिनेट ने एससी/एसटी एक्ट पर संशोधन बिल लाने की मंज़ूरी दे दी है. संसद के इसी सत्र में बिल लाया जाएगा. एससी/एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट की ओर से बदलाव किए जाने के बाद NDA के दलित सांसद लगातार दबाव बना रहे थे. इसे लेकर दलित संगठनों ने 9 अगस्त को बंद का भी एलान कर रखा है. अब सरकार ने उनसे बंद वापस लेने की अपील की है.

यह विधेयक किसी भी अदालती आदेश से प्रभावित हुए बिना बावजूद एससी/एसटी के खिलाफ अत्याचार के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत के किसी भी प्रावधान को खारिज करता है. इसमें यह भी व्यवस्था है कि आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए कोई प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है. साथ ही इस कानून के तहत गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार की मंजूरी की जरूरत नहीं है.    दलित संगठन सरकार से उच्चतम न्यायालय के 20 मार्च के फैसले को पलटने की मांग कर रहे थे. उनका कहना था कि समाज के कमजोर तबके पर अत्याचार के खिलाफ इस कानून में आरोपी की गिरफ्तारी पर अतिरिक्त बचाव ने इस कानून को कमजोर और शक्तिहीन बना दिया है.

लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने NDTV से बात करते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ट जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने एससी/एसटी एक्ट को कमजोर किया है और सरकार ने उनको रिवार्ड देते हुए एनजीटी का चेयरमैन बनाया. हम मांग करते हैं कि जस्टिस गोयल को एनजीटी चेयरमैन पोस्ट से तत्काल हटाया जाय और ऑर्डिनेंस लाकर सरकार ऑरिजनल एससी/एसटी एक्ट को रिस्टोर करें. अगर हमारी मांग 9 अगस्त तक सरकार नहीं मानती है तो एलजेपी (लोजपा) की दलित सेना दूसरे दलित संगठनों के साथ सरकार के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा ले सकती है.

दलित संगठनों की यह एक प्रमुख मांग है और उन्होंने इस सिलसिले में 9 अगस्त को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया था. सरकार के एक सूत्र ने बताया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित (अत्याचार रोकथाम) कानून के मूल प्रावधानों को बहाल करने वाला विधेयक संसद में लाया जाएगा. कैबिनेट के फैसले के बाद लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ‘ये  अच्छा फैसला है. अब अगले कुछ ही दिनों में सरकार संसद में नया बिल लेकर आएगी.’कोई ऑटोमैटिक गिरफ्तारी नहीं होगी, गिरफ्तारी से पहले आरोपों की जांच जरूरी. FIR दर्ज करने से पहले DSP स्तर का पुलिस अधिकारी प्रारंभिक जांच करेगा.

इस मामले में अग्रिम जमानत पर भी कोई संपूर्ण रोक नहीं है. गिरफ्तारी से पहले जमानत दी जा सकती है. अगर न्यायिक छानबीन में पता चले कि पहली नजर में शिकायत झूठी है. यदि कोई आरोपी व्यक्ति सार्वजनिक कर्मचारी है, तो नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति के बिना और यदि व्यक्ति एक सार्वजनिक कर्मचारी नहीं है तो जिला के वरिष्ठ अधीक्षक की लिखित अनुमति के बिना गिरफ्तारी नहीं होगी. ऐसी अनुमतियों के लिए कारण दर्ज किए जाएंगे और गिरफ्तार व्यक्ति व संबंधित अदालत में पेश किया जाना चाहिए.

मजिस्ट्रेट को दर्ज कारणों पर अपने विवेक से काम करना होगा और आगे आरोपी को तभी में रखा जाना चाहिए जब गिरफ्तारी के कारण वाजिब हो. यदि इन निर्देशों का उल्लंघन किया गया तो ये अनुशासानात्मक कार्रवाई के साथ-साथ अवमानना कार्रवाई के तहत होगा. इस तरह के अपराध की शिकायत मिलते ही पुलिस FIR दर्ज करे. केस दर्ज करने से पहले जांच जरूरी नहीं. गिरफ्तारी से पहले किसी की इजाजत लेना आवश्यक नहीं है.  केस दर्ज होने के बाद अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं होगा. भले ही इस संबंध में पहले का कोई अदालती आदेश हो.

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