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PM मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग अगली मुलाकात की तारीख और जगह हुई तय….

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पीएम नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच होने वाली अगली मुलाकात को लेकर बड़ी जानकारी सामने आई है. भारत में चीन के राजदूत लुओ झाओहुई ने ये जानकारी साझा की है कि पीएम मोद और राष्ट्रपति शी की अगली मुलाकात अगले महीने यानी नवंबर में होगी. उन्होंने ये भी बताया कि दोनों के बीच ये मुलाकात अर्जेंटीना में होगी.

झाओहुई ने ये बातें उस कार्यक्रम के दौरान कहीं जिसमें भारत-चीन द्वारा लॉन्च किए गए एक प्रोग्राम के तहत अफगानिस्तानी राजनयिकों को ट्रेंनिग दी जानी है. ये अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है. चीन के राज्य सलाहकार और विदेश मंत्री भी दिसंबर में भारत का दौरा करेंगे. इस दौरान भारत और चीन के बीच लोगों के आदान प्रदान का पहला कार्यक्रम लॉन्च होगा. ये जानकारी भी झाओहुई ने ही दी

आपको बता दें कि इसके पहले पीएम मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग की मुलाकात चीन के बुहान में हुई थी. इस दौरान हुई बातें तो मीडिया और देश के सामने नहीं आईं, लेकिन 70 दिनों से ज्यादा समय तक चले डोकलाम विवाद के बाद हुई इस मुलाकात को दोनों देशों के बीच एक नई शुरुआत के तौर पर देखा गया.

डोकलाम को भूटान में डोलम कहते हैं. करीब 300 वर्ग किलोमीटर का ये इलाका चीन की चुंबी वैली से सटा हुआ है और सिक्किम के नाथुला दर्रे के करीब है. इसलिए इस इलाके को ट्राई जंक्शन के नाम भी जाना जाता है क्योंकि यहां ये तीन प्वाइंट्स आकर मिलते हैं. ये डैगर यानी एक खंजर की तरह का भौगोलिक इलाका है, जो भारत के चिकन नेक यानी सिलिगुड़ी कॉरिडोर की तरफ जाता है. चीन की चुंबा वैली का याटूंग यहां आखिरी शहर है. चीन इसी याटूंग शहर से लेकर विवादित डोलम इलाके तक सड़क बनाना चाहता है.

इसी सड़क का पहले भूटान ने और फिर भारतीय सेना ने विरोध जताया. भारतीय सैनिकों की इस इलाके में मौजूदगी से चीन हड़बड़ा गया है. चीन को ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि जब विवाद चीन और भूटान के बीच है तो उसमें भारत सीधे तौर से दखलअंदाजी क्यों कर रहा है. पिछले साल 16 जून से भारत और चीन की सेना के बीच फेसऑफ यानी गतिरोध हुआ जो करीब 72 दिनों तक चला और फिर दोनों सेनाएं आपसी सहमति से पीछे हट गईं.

भारत-भूटान के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा कायम रखने की संधि है. भारत और भूटान में 2007 में संधि हुई थी कि एक दूसरे की मदद करेंगे. इसी के तहत भारतीय सेना भूटान की मदद कर रही है. हालांकि, विवाद की समाप्ति के बाद ये पुख्ता जानकारी सामने आई है कि चीन ने वहां बड़े स्तर पर सैन्य निर्माण को अंजाम दिया है.

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