Home शख़्सियत अमरनाथ झा

अमरनाथ झा

44
0
SHARE

अमरनाथ झा भारत के प्रसिद्ध विद्वान, साहित्यकार और शिक्षा शास्त्री थे। वे हिन्दी के प्रबल समर्थकों में से एक थे। हिन्दी को सम्माननीय स्तर तक ले जाने और उसे राजभाषा बनाने के लिए अमरनाथ झा ने बहुमूल्य योगदान दिया था। उन्हें एक कुशल वक्ता के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना भी की। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 1954 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था।

जन्म तथा शिक्षा
अमरनाथ झा का जन्म 25 फ़रवरी, 1897 ई. को बिहार के मधुबनी ज़िले के एक गाँव में हुआ था। उनके पिता डॉ. गंगानाथ झा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् थे। अमरनाथ झा की शिक्षा इलाहाबाद में हुई। एम.ए. की परीक्षा में वे ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में सर्वप्रथम रहे थे। उनकी योग्यता देखकर एम.ए. पास करने से पहले ही उन्हें ‘प्रांतीय शिक्षा विभाग’ में अध्यापक नियुक्त कर लिया गया था।

शिक्षा सम्बंधित प्रमुख तथ्य
अमरनाथ झा ने सन 1903 से 1906 तक कर्नलगंज स्कूल में पढ़ाई की। सन 1913 में स्कूल लिविंग परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण और अंग्रेज़ी, संस्कृत एवं हिंदी में विशेष योग्यता प्राप्त की। फिर 1913 से 1919 तक आप म्योर सेंटर कॉलेज, प्रयाग में शिक्षा ग्रहण करते रहे। इन्हीं दिनों 1915 में इंटरमीडिएट में विश्वविद्यालय में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया। फिर 1917 में बीए की परीक्षा एवं 1919 में एम.ए. की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। सन 1917 में म्योर कॉलेज में 20 वर्ष की अवस्था में ही अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर हुए। सन 1929 में विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रोफेसर हुए। 1921 में प्रयाग म्युनिसिपलिटी के सीनियर वाइस चेयरमैन हुए। उसी वर्ष पब्लिक लाइब्रेरी के मंत्री हुए। आप पोएट्री सोसाइटी, लंदन के उपसभापति रहे और रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर के फेलो भी रहे। 1938 से 1947 तक प्रयाग विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे। 1948 में अमरनाथ पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन हुए।[1]

उच्च पदों की प्राप्ति
अमरनाथ झा की नियुक्त 1922 ई. में अंग्रेज़ी अध्यापक के रूप में ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में हुई। यहाँ वे प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहने के बाद वर्ष 1938 में विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने और वर्ष 1946 तक इस पद पर बने रहे। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय ने बहुत उन्नति की और उसकी गणना देश के उच्च कोटि के शिक्षा संस्थानों मे होने लगी। बाद में उन्होंने एक वर्ष ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ के वाइस चांसलर का पदभार सम्भाला तथा उत्तर प्रदेश और बिहार के ‘लोक लेवा आयोग’ के अध्यक्ष रहे।

रचनाएँ
अमरनाथ झा की रचनाएं निम्नलिखित है

संस्कृत गद्य रत्नाकर (1920)
दशकुमारचरित की संस्कृत टीका (1916)
हिंदी साहित्य संग्रह (1920)
पद्म पराग (1935)
शेक्सपियर कॉमेडी (1929)
लिटरेरी स्टोरीज (1929)
हैमलेट (1924)
मर्चेंट ऑफ वेनिस (1930)
सलेक्शन फ्रॉम लार्ड मार्ले (1919)
विचारधारा (1954)
हाईस्कूल पोएट्री

प्रतिभाशाली
अमरनाथ झा कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए विदेश गए। शिक्षा जगत के आप स्तंभ थे। आप एक उच्च कोटि के शासक थे और साथ ही खिलाड़ी भी। शिक्षा जगत में आपके कार्य अत्यंत सराहनीय हैं। अमरनाथ जी का अध्ययन विशाल था। हिंदी, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी सभी भाषाओं के साहित्य से बहुत प्रेम करते थे। ‘विचारधारा’ नामक हिंदी पुस्तक में आपकी आलोचनाओं से इसका पता चलता है। आप बंगाली के भी अध्येता थे और संगीत प्रेमी भी थे। साथ ही आपको चित्रकला से भी लगाव था। आपकी भावना सीमा बद्ध नहीं थी। आधुनिकता से प्रभावित एक वैज्ञानिक विचारक थे।

झा साहब ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ के अध्यक्ष रहे तथा हिंदी साहित्य के वृहत इतिहास के प्रधान संपादक थे। विभिन्न रूपों में की गई आपकी सेवाएं चिरस्मरणीय रहेंगी

पुरस्कार व सम्मान
डॉ. अमरनाथ झा अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इलाहाबाद और आगरा विश्वविद्यालयों ने उन्हें एल.एल.ड़ी. की और ‘पटना विश्वविद्यालय’ ने डी.लिट् की उपाधि प्रदान की थी। वर्ष 1954 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।

हिन्दी के समर्थक
हिन्दी को राजभाषा बनाने के प्रश्न पर विचार करने के लिए जो आयोग बनाया था, उसके एक सदस्य डॉ. अमरनाथ झा भी थे। वे हिन्दी के समर्थक थे और खिचड़ी भाषा उन्हें स्वीकर नहीं थी। डॉ. अमरनाथ झा ने अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।

निधन
एक कुशल वक्ता के तौर पर भी अमरनाथ झा जाने जाते थे। उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना भी की। देश और समाज के लिए अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले इस महापुरुष का 2 सितम्बर, 1955 को देहांत हो गया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here