Home समाचार RTI से खुलासा नोटबंदी पर RBI से सलाह नहीं वित्त मंत्रालय से...

RTI से खुलासा नोटबंदी पर RBI से सलाह नहीं वित्त मंत्रालय से भी मतभेद…

29
0
SHARE

क्या नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान आरबीआई की मंज़ूरी के बिना कर दिया था? डेक्कन हेराल्ड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक आरटीआई से मिली जानकारी यही बताती है. बताया जा रहा है कि आरबीआई बोर्ड की बैठक नोटबंदी के ऐलान के बस ढाई घंटे पहले शाम 5 बज कर तीस मिनट पर हुई थी और बोर्ड की मंज़ूरी मिले बिना प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का एलान कर दिया था. आरबीआई ने 16 दिसंबर, 2016 को सरकार को प्रस्ताव की मंज़ूरी भेजी यानी एलान के 38 दिन बाद आरबीआई ने ये मंज़ूरी भेजी है. आरटीआई ऐक्टिविस्ट वेंकटेश नायक द्वारा जुटाई गई इस जानकारी में और भी अहम सूचनाएं हैं. इसके मुताबिक वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव की बहुत सारी बातों से आरबीआई बोर्ड सहमत नहीं था

मंत्रालय के मुताबिक 500 और 1000 के नोट 76% और 109% की दर से बढ़ रहे थे जबकि अर्थव्यवस्था 30% की दर से बढ़ रही थी. आरबीआई बोर्ड का मानना था कि मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए बहुत मामूली अंतर है.  आरबीआई के निदेशकों का कहना था कि काला धन कैश में नहीं, सोने या प्रॉपर्टी की शक्ल में ज़्यादा है और नोटबंदी का काले धन के कारोबार पर बहुत कम असर पड़ेगा. इतना ही नहीं, निदेशकों का कहना था कि नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा.

इस खुलासे के बाद एक बार फिर नोटबंदी को लेकर सवाल खड़ा हो गया है एक ओर जहां मोदी सरकार नोटबंदी के फैसले को उपलब्धि बता रही है और दावा कर रही है कि इससे काला धन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में कामयाबी मिली हैं वहीं सरकार और आरबीआई के बीच मतभेद की बातें भी सामने आ रही हैं. गौरतलब है कि नोटबंदी और जीएसटी को लोकसभा चुनाव में पक्ष और विपक्ष दोनों ही बड़ा मुद्दा बना रही हैं. लेकिन अब आरटीआई से हुए इस खुलासे के बाद मोदी सरकार फिर सवालों के घेरे में है. विपक्ष का कहना है कि नोटबंदी का लघु और मझोले उद्योगों पर बुरा असर पड़ा है देश की विकास दर कम हो गई है.

हालांकि उद्योग मंडल सीआईआई के सर्वे में कहा गया है कि सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र में पिछले चार साल में रोजगार सृजन में 13.9 प्रतिशत की वृद्धि की गई.  सर्वे का यह नतीजा आधिकारिक और उद्योग के अन्य आंकड़ों से भिन्न है जिसमें नोटबंदी और जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद बड़े पैमाने पर रोजगार कम होने की बात कही गयी है. निजी क्षेत्र के एक शोध संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि केवल 2018 में 1.3 करोड़ रोजगार की कटौती हुई जबकि आधिकारिक एनएसएसओ के आंकड़ों के मुताबिक बेरोजगारी दर 2018 में 46 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here