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महिला वर्ग की टॉपर सृष्टि बोलीं एक महिला सशक्त होती है तो पीढ़ियां बदल जाती हैं..

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भोपाल. आईएएस बनना सृष्टि जयंत देशमुख के बचपन का सपना था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा को अपना लक्ष्य बना लिया था। उस वक़्त उन्होंने जो ठाना, आज उसे पा भी लिया।  भोपाल की रहने वालीं सृष्टि जयंत देशमुख सिविल सेवा परीक्षा की महिला श्रेणी में टॉप पर रही हैं। और उन्होंने आल इंडिया पांचवी रैंक हासिल की है। सृष्टि ने अपने पहले प्रयास में ही ये सफलता हासिल की है।

सृष्टि कहती हैं, बचपन से कहीं एक कीड़ा था, जो दिमाग में बैठ गया था कि चाहे जो हो जाए उन्हें ये परीक्षा पास करनी है और अच्छी रैंक हासिल करनी है। इसलिए इंजीनियरिंग चुना, जिससे कैरियर भी सिक्योर रहे। लेकिन सेकेंड ईयर और थर्ड ईयर तक आकर लगा कि सिविल सेवा परीक्षा ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे समाज के लिए कुछ किया जा सकता है।

सृष्टि ने कहाकि पहला, शिक्षा- हमारे प्रदेश और देश की एक बड़ी आबादी है, जो अब भी शिक्षा से दूर है। दूसरा, महिला सशक्तिकरण – जब एक महिला सशक्त होती है तो वह पूरे परिवार और पीढ़ियों के लिए बदलाव की वजह बन जाता है। इसलिए महिलाओं का सशक्तिकरण बेहद जरूरी है।

जब मैंने तैयारी शुरू की और पढ़ा कि मध्य प्रदेश में स्कूलों के हालात बेहद खराब, प्रदेश में 15 से 20 हजार स्कूल ऐसे हैं, जहां पर केवल एक ही स्कूल हैं। महिलाओं की स्थिति खराब है। तब यही मेरा मोटिवेशन बन गया कि समाज के लिए कुछ करना है। इसलिए मैंने आईएएस और कैडर मध्य प्रदेश रखा है।

सिविल सेवा की तैयारी से लेकर इस क्षेत्र में काम करने तक महिलाओं के सामने क्या अलग चुनौतियां आती हैं? इस सवाल पर सृष्टि ने कहा, ”ये सवाल मुझसे परीक्षा के साक्षात्कार में भी पूछा गया था। तब मैंने कहा था कि चुनौतियां तो हर नौकरी में होती हैं। महिला होने के कारण हो सकता है कि मेरे फैसलों की स्वीकार्यता को लेकर चुनौतियां आएं लेकिन मैं अपना काम स्पष्टता से और पूरी तैयारी के साथ करूंगी ताकि कोई समस्या न आए।”

सृष्टि कहती हैं, जब हम सिविल सेवा परीक्षा के बारे में सोचते हैं तो सब कहते हैं, चलो दिल्ली में कोचिंग करेंगे। लेकिन मैंने दिल्ली जाने के बारे में सोचा ही नहीं, या यूं कहें कि मुझे दिल्ली जाने का मौका ही नहीं मिला। केवल फाइनल इंटरव्यू के लिए दिल्ली गई थी।

सृष्टि ने सिविल सर्विस परीक्षा के लिए यूपीएससी सेलेबस और पुराने पेपर हमेशा अपने साथ रखा। इसका उन्हें फायदा भी मिला। भोपाल में रहकर किस तरह से टाइम ये मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था। सृष्टि का स्कूल से लेकर सिविल सेवा परीक्षा तक का सफर भोपाल में ही पूरा हुआ। उन्होंने स्कूली पढ़ाई भोपाल में एक कॉन्वेंट स्कूल से की। इसके बाद साल 2018 में शहर के ही एलएनसीटी कॉलेज से केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।

सृष्टि कहती है, यहां पर रहने के कुछ फायदे और नुकसान दोनों हैं. फायदा ये है कि मां के हाथ का खाना खाने को मिलता है। रात को पापा के साथ बात करके अपनी परेशानियां कह सकते हैं। घर से दूर रहते हैं तो सारे काम भी खुद करने पड़ते हैं। लेकिन, काफी सारी दिक्कतें भी आईं हैं।

सृष्टि कहती हैं कि वो अलग-अलग विषयों के अनुसार दिन में समय तय करती थीं। उनका ऑप्शनल पेपर सोश्योलॉजी था। करंट अफेयर्स पर भी काफ़ी ध्यान दिया। थक जाने या तनाव होने पर योगा और म्यूजिक से वो खुद को आराम देती थीं। घर के बाहर आकर बच्चों के साथ खेलती थीं।

सृष्टि कहती हैं कि सब सोचते हैं कि दिल्ली चलो, यहां सिविल सेवा परीक्षा की मैटेरियल नहीं मिलता है। लेकिन मुझे इंटरनेट ने काफी सहारा दिया। इसका मैंने पूरा उपयोग किया, सारी टेस्ट सीरीज और अन्य सामग्री इंटरनेट पर मिल गई।

इंटरनेट एक तलवार है, जिसके दो सिरे हैं। एक तरफ तो ये नॉलेज प्रदान करता है तो दूसरी तरफ आपकी एकाग्रता को भी भंग करता है। इसलिए मैंने सोशल एकाउंट बंद कर दिए थे, दोस्तों से नहीं मिली और पार्टियों से दूर रही। सोचा था अगर आज पढ़ लिया तो कल कुछ बन जाऊंगी।

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