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जलवायु परिवर्तन का हिमालाय क्षेत्र की खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा पर बुरा असर…

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आईआईटी मंडी में भारतीय हिमालय क्षेत्र के जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक बदलाव की घटनाओं पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला सी2ई2 का आयोजन किया गया। कार्यशाला का लक्ष्य जलवायु परिवर्तन, हिमनद पिघलने, बार-बार अत्यधिक बदलाव की घटनाएं, वातावरण प्रदूषण, हिमालय क्षेत्र में पराली जलाने से प्रदूषण के दुष्परिणामों को समझना और समाधान के लिए रिमोट सेंसिंग के उपयोग पर विमर्श करना रहा।

कार्यशाला में डॉ. एम राजीवन, सचिव पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस), भारत सरकार मुख्यातिथि रहे। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की बड़ी वजह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन है। भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम दिखने लगे हैं। विशेष कर मंडी जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में ये दुष्परिणाम अधिक स्पष्ट हैं।

डॉ. राजीवन ने कहा कि हिमालय जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से आर्कटिक क्षेत्र के साथ दुनिया के सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में एक है। जलवायु परिवर्तन का क्षेत्र की खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा पर बुरा असर पड़ सकता है। हिमालय क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से मौसम में बदलाव की घटनाएं बढ़ रही हैं। इससे इस क्षेत्र में बर्फ का जमना बढ़ जाएगा और इस परिघटना को समझने के लिए गहन शोध करना होगा। संबंधित डाटा के अध्ययन से इसके प्रमाण मिले हैं कि हिमालय क्षेत्र में अत्यधिक गर्म दिनों और रातों की संख्या बढ़ गई है जो ग्लोबल वार्मिंग का स्पष्ट संकेत है। पर्यावरण की अनिश्चितताओं से अत्यधिक बदलाव की कई घटनाएं हो रही हैं जैसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट, भूकम्प और चट्टान/ जमीन का खिसकना। उपग्रहों की मदद से इनका मानचित्र तैयार किया जा सकता है और निरंतर निगरानी रखी जा सकती है।

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