Home मध्य प्रदेश 8 विधानसभाएं; BJP अपने गढ़ रतलाम समेत 3 सीटों पर मजबूत…

8 विधानसभाएं; BJP अपने गढ़ रतलाम समेत 3 सीटों पर मजबूत…

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झाबुआ-रतलाम संसदीय क्षेत्र का नाम बदलकर भले रतलाम-झाबुआ हो गया पर चुनाव नतीजों को लेकर यहां की पहचान अब तक नहीं बदल पाई है। रतलाम भाजपा का गढ़ है और हर चुनाव में पार्टी यहां से जीतती भी है पर झाबुआ की बढ़त के कारण संसदीय सीट के नतीजे कांग्रेस की ओर जाते रहे हैं।

रतलाम में तीन विधानसभा सीटें हैं, इनमें से दो और झाबुआ सीट को मिला लें तो इन तीन सीटों पर भाजपा विधानसभा चुनाव के पांच महीने बाद भी अपने वोट बैंक को एकजुट रखती दिख रही है। जबकि कांग्रेस अपनी सीट आलीराजपुर में अंतर्कलह से निपट रही है, जबकि चार सीटों पर वह मौजूदा लोकसभा प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया के दम पर ताल ठोक रही है। 13 मई को रतलाम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की सभाएं हैं। इन दो दिग्गजों के दौरों के बाद इस सीट का वोट गणित बदलने के भी संकेत हैं। हालांकि 2014 का लोकसभा चुनाव छोड़ दें तो 1980 से लगातार यहां कांग्रेस जीतती रही है।

भाजपा को 2014 में कांग्रेस से टूटकर आए दिलीपसिंह भूरिया को लड़ाया तो वो 1 लाख 20 हजार वोट से जीते, लेकिन एक साल बाद ही मोदी के पीएम बनने के बाद उप चुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने 80 हजार से जीतकर वापसी की। इस बार कांग्रेस ने यहां महीनेभर पहले ही सांसद कांतिलाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया था। आर-पार की लड़ाई के मूड में भाजपा ने पूरे प्रदेश से इकलौते वर्तमान झाबुआ विधायक जीएस डामोर को मैदान में उतारा है। तीसरी ताकत के रूप में इस बार आदिवासी संगठन जयस भी मौजूद है।

क्षेत्र में आदिवासियों का पलायन, पानी की समस्या और टूटी सड़कें मुख्य मुद्दा है। कृषि कॉलेज नहीं खुलने का मुद्दा भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ खड़ा किया है, तो कांग्रेसी मेडिकल कॉलेज खुलवाने के प्रयासों को प्रचार में बता रहे हैं। हालांकि केंद्र में मंत्री रह चुके भूरिया के नाम क्षेत्र में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। भाजपा के डामोर विधानसभा चुनाव में झाबुआ से कांग्रेस प्रत्याशी भूरिया के बेटे विक्रांत को हरा चुके हैं और अब पिता भूरिया को हराने की जुगत जमा रहे हैं।

डामोर यहीं से विधायक हैं तो भूरिया इसी क्षेत्र के मोर डूंडिया के निवासी हैं। 1993 से 2018 तक के छह चुनाव में तीन बार भाजपा तो इतनी ही बार कांग्रेस जीती। पिछले विस चुनाव में कांग्रेस के बागी जेवियर मेढ़ा 36 हजार वोट ले गए तो डामोर 10400 वोट से जीते, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। जेवियर फिर से कांग्रेस में हैं।

यहां भाजपा की निर्मला भूरिया 2015 में लोकसभा उप चुनाव और 2018 में विधानसभा चुनाव हारीं। निर्मला का पिता दिलीपसिंह के कारण जो प्रभाव था वो उनके निधन के साथ खत्म होता जा रहा है। अब यहां भाजपा में कोई बड़ा नेता नहीं बचा है। डामोर ने यहीं से विधानसभा टिकट मांगा था, लेकिन नहीं मिला। वीरसिंह भूरिया कांग्रेस से विधायक हैं। कांतिलाल यहां से चार बार विधायक रहे। इसलिए उनकी यहां पकड़ है। 2013 में निर्दलीय ने दोनों पार्टियों को पटकनी दी थी।

कांग्रेस जिलाध्यक्ष महेश कुमार और कांग्रेस विधायक महेश पटेल में विवाद है, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। 1993 से अब तक छह चुनाव में तीन-तीन बार दोनों पार्टियां रहीं। कांतिलाल की भतीजी कलावती भूरिया 18 साल से जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। निर्दलीय मैदान में उतरकर कांतिलाल का कांटा बन रहे मथाइस को उन्होंने मना लिया है। 2018 के विधानसभा में कांग्रेस के बागी के 32 हजार वोट लाने के बाद कलावती जीतीं और अब काका को लीड दिलाने का वादा किया है।

पिछले छह विधानसभा चुनावों में चार बार भाजपा जीती है तो एक बार कांग्रेस और एक बार निर्दलीय। कांग्रेस यहां आज भी जमीन तलाश रही है। 2014 में यहां से भाजपा 24 हजार वोट से हारी तो उपचुनाव 5 हजार वोट से, लेकिन पिछले विस चुनाव में वह 5600 वोट से जीती। इसी वोट की दम पर वह यहां मजबूत दिख रही।  विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां 30 हजार वोट से जीत दर्ज की है, जिसे लोकसभा में कांग्रेस प्लस ही मानकर चल रही है। भाजपा यहां वोट बैंक बढ़ाने में जुटी है।

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