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बड़े तालाब में नहीं थम रहा अतिक्रमण अब एफटीएल में निजी जमीन बताकर की जा रही फेंसिंग…

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भोपाल. खानूगांव क्षेत्र में बड़े तालाब के एफटीएल के भीतर नए कंस्ट्रक्शन का सिलसिला जारी है। यहां स्थित निजी कॉलेज के पीछे की ओर एफटीएल के भीतर फेंसिंग की जा रही है। फेंसिंग के भीतर दो मुनारें नजर आ रहीं हैं। यहां पर निजी जमीन का बोर्ड लगा है, जिस पर मुमताज अनवर का नाम लिखा है।

नगर निगम झील संरक्षण प्रकोष्ठ के अफसरों ने शनिवार को जब यहां फेंसिंग होते हुए देखी तो रविवार को अतिक्रमण अधिकारी को जांच के लिए भेजा गया। अतिक्रमण शाखा के अधिकारी मधुसूदन तिवारी ने बताया कि जब वे मौके पर पहुंचे तो वहां फेंसिंग का काम चल रहा था। फेंसिंग करने वाले व्यक्ति से जब पूछताछ की तो उसने निजी जमीन होने का हवाला दिया। तिवारी ने उन्हें सोमवार को कागजात पेश करने को कहा।

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों नगर निगम और जिला प्रशासन अमले द्वारा किए गए सर्वे में पूरे बड़े तालाब के एफटीएल के भीतर 500 से अधिक अतिक्रमण मिले थे। इनमें 40 से ज्यादा अकेले खानूगांव में हैं। नगर निगम झील संरक्षण प्रकोष्ठ के प्रभारी सिटी इंजीनियर संतोष गुप्ता कहते हैं कि खानूगांव से कोहेफिजा तक तालाब के बड़े हिस्से में कोई एप्रोच नहीं है। एेसे में निगरानी आसान नहीं है।

यहां लगे बोर्ड पर दर्ज मोबाइल पर बात करने पर मो. सलीम ने फोन रिसीव किया। उन्होंने कहा कि वे मुमताज के भाई हैं। परिवार खानूगांव में नहीं बल्कि कोहेफिजा में निवास करता है, लेकिन खानूगांव में हमारी निजी जमीन है। पटवारी द्वारा किए गए सीमांकन के बाद जिला प्रशासन की अनुमति लेकर हम यहां फेंसिंग करा रहे हैं। हमें पता है यह जमीन एफटीएल के भीतर है। हम यहां कोई निर्माण नहीं करेंगे, बल्कि कुछ पेड़ लगाएंगे। यह संभव है कि इस जगह का उपयोग पास के शादी हॉल के लिए वाहन पार्किंग के लिए किया जा सके।

खानूगांव में फेंसिंग होते हुए पाई गई है। जांच करा रहे हैं। रिपोर्ट के बाद कार्रवाई करेंगे। निजी जमीन होने पर भी एफटीएल से 50 मीटर पर कंस्ट्रक्शन प्रतिबंधित है। वहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी की सलाह पर बिसनखेड़ी में प्रवासी पक्षियों के लिए टापू बना रहे हैं। संतोष गुप्ता, सिटी इंजीनियर (प्रभारी झील संरक्षण)

बिसनखेड़ी में बड़े तालाब पर प्रवासी पक्षियों और अन्य जीवों के लिए टापू बनाने का काम शुरू हो गया है। इसके लिए तालाब के भीतर पानी के चैनल्स की खुदाई की जा रही है। यहां से निकलने वाली मिट्टी का उपयोग ही टापू बनाने में किया जाएगा। पौधे भी रोपे जाएंगे। फिलहाल यहां 6 से 8 फीट ऊंचाई के 10 टापू बनाए जा रहे हैं। एक तरह से यह क्षेत्र एक पक्षी विहार के रूप में विकसित हो जाएगा। नेशनल इंस्टीट्यूट अॉफ इकोलॉजी के प्रेसिडेंट प्रोफेसर बृजकुमार ने यहां बायोडायवर्सिटी को संरक्षित करने के लिए तालाब के भीतर टापू बनाने का सुझाव दिया था, ताकि पक्षियों को यहां पानी व अन्य सुविधाएं मिल सकें। अनुकूल परिस्थितियां होने पर यहां आने वाली पक्षियों की संख्या बढ़ेगी।

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