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शिवराज ने पहले डीआईजी को डांटा, फिर कमलनाथ के सामने एसीएस से बोले..

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आदिवासियों की मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान उस समय खासे नाराज हो गए, जब रैली में शामिल होने आ रहे आदिवासियों के ट्रैक्टरों को भदभदा से पहले रोक दिया गया। टीटी नगर में बेटी बचाओ कार्यक्रम से ही उन्होंने फोन पर डीआईजी भोपाल इरशाद वली को तकरीबन डांटते हुए कहा कि मुझे शिवराज सिंह चौहान कहते हैं। जब परमिशन है तो ट्रैक्टर कैसे रोक दिया। मैं आ रहा हूं। रोककर दिखाओ।

ज्यादा करोगे तो वल्लभ भवन को घेर लूंगा। इसके बाद वे मौके पर पहुंचे और खुद ट्रैक्टर पर बैठकर आए। सभा की। इसके बाद शिवराज सिंह एक प्रतिनिधिमंडल को लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ से मिलने मंत्रालय पहुंचे।

यहां उन्होंने आदिवासियों की मांगों पर मुख्यमंत्री से बात की। आदिवासियों को बेदखल करने की बात आई तो वहां मौजूद वन विभाग के अपर मुख्य सचिव केके सिंह ने सफाई में कहा, ऐसा नहीं है। वे अवैध कब्जे थे। शिवराज सिंह चौहान एक बार तो चुप रहे, लेकिन जब केके सिंह ने दूसरी बार फिर कहा तो वे फिर नाराज हो गए। उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने ही केके सिंह को तल्ख अंदाज में कहा कि ब्यूरोक्रेटिक एटीट्यूड मत दिखाओ। मुख्यमंत्री से बात कर रहे हैं, आपको समझ में नहीं आता।

बहरहाल, चर्चा के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सकारात्मक पहल करते हुए कहा कि विकास में सहयोग करें। शिवराज सिंह ने भी कहा कि वे उनके साथ हैं। नाथ और चौहान के बीच करीब आधे घंटे बात हुई। शिवराज सिंह ने उन्होंने ज्ञापन सौंपा। साथ ही कहा कि सरकार ने आदिवासियों की मांगें मान ली हैं।

आदिवासियों पर दर्ज फर्जी एवं झूठे मुकदमे वापस लिए जाए। वनाधिकारी पट्टे पर गेहूं-चने की तत्काल खरीदी प्रारंभ हो। मक्के का बोनस दिया जाए। कपिल धारा योजना के अंतर्गत कुंआ खोदने की अनुमति मिले। पूरे परिवार का 60 साल का रिकार्ड मांगा जा रहा है, जिससे बेटे-बेटियां परेशान हो रहे है। आदिवासी समाज की पंचायतों का पुनः सीमांकन किया जाए। तेंदूपत्ता बोनस राशि मिले।

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पूर्ववर्ती तत्कालीन भाजपा सरकार के कार्यकाल में साढ़े तीन लाख से ज्यादा आदिवासियों के जो पट्टे निरस्त किए गए थे, उन पर पुनर्विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अादिवासियों के हितों के संरक्षण के प्रति वचनबद्ध है। नाथ ने यह बात मंगलवार को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ आए प्रतिनिधि मंडल से चर्चा के दौरान कही। नाथ ने साफतौर पर कहा कि आदिवासी परिवारों के साथ किसी भी प्रकार के अन्याय को सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सदैव नीति रही है कि आदिवासी वर्ग का न केवल सर्वांगीण विकास हो, बल्कि परंपरा से उन्हें मिले अधिकारों का संरक्षण भी हो। नाथ ने बताया कि वनाधिकार कानून 2006 यूपीए सरकार ने लागू किया था। इस कानून के अंतर्गत मध्यप्रदेश में 6 लाख 25 हजार आवेदन पूर्ववर्ती सरकार के शासनकाल में आए थे। इनमें से 3 लाख 55 हजार आवेदन निरस्त कर दिए गए थे। नई सरकार ने इन सभी आवेदनों का पुनरीक्षण कर पात्र कब्जा धारियों को वनाधिकार पत्र देने का काम शुरू किया है। इसके साथ ही तेंदूपत्ता संग्रहण की दर 2000 रुपये प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 2500 रुपए की है। इसके इस काम में लगे आदिवासियों को प्रति बोरा 500 रुपये का लाभ मिला है।

इधर, जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि शिवराज के मुख्यमंत्री रहते आदिवासियों के लिए खर्च होने वाली 8332 करोड़ रुपए की राशि लैप्स हुई। शर्मा ने पत्रकारवार्ता में कहा कि इतना ही नहीं उस समय आदिवासियों के जो पट्टे निरस्त किए थे। हम तो उनका परीक्षण करा रहे हैं। वास्तव में आदिवासियों के हितों की अनदेखी पिछले 15 सालों में हुई है। सरपंचों को अधिकार दे दिए गए हैं कि वे प्रमाणित कर दें कि जमीन पर अादिवासी का पट्टा था उसका नामांतरण कर दिया जाएगा।

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