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रेजांग ला पर मेजर शैतान सिंह के 123 जवानों ने चीन के 1300 को मारा था…

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हाल ही में पूर्वी लद्दाख में एक बार फिर भारतीय जवानों और चीनी फौजियों के बीच झड़प हुई है. चीन ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को जबरदस्ती पार करने की कोशिश की. जिसे भारतीय जवानों ने विफल कर दिया. 7 सितंबर को चीन की पीपुल्‍स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने रेजांग ला में घुसपैठ की कोशिशें की. 29 से 30 अगस्‍त की रात को रेजांग ला-रेचिन ला पर कब्‍जा कर लिया था. लेकिन जिसे बाद में भारतीय जवानों ने मुक्त करा लिया. यह खबर सुनकर 1962 के भारत-चीन युद्ध याद आता है, इसमें भी चीनी घुसपैठियों ने रेजांग ला पास का उपयोग किया था.

चुशुल के तहत आने वाला रेजांग ला भारतीय सेना के लिए बहुत ही रणनीतिक स्थान है. यह जगह पहली बार 1962 के युद्ध में सब सबके सामने आई थी जब मेजर शैतान सिंह की 123 कुमाऊं ने चीन के 1300 जवानों को पस्त कर दिया था. जब चीन ने हमला किया तो इस जगह पर हुई लड़ाई को रेजांग ला युद्ध के नाम से जाना गया. 62 की जंग में इस जगह पर अगर सेना जीत नहीं हासिल करती तो फिर शायद पूरे लद्दाख पर चीन का कब्‍जा होता है. रेजांग ला, लद्दाख में दाखिल होने वाले दक्षिण-पूर्व के रास्‍ते पर पड़ने वाला दर्रा यानी पास है. यह 2.7 किलोमीटर लंबा और 1.8 किलोमीटर चौड़ा है. इसकी ऊंचाई करीब 16,000 फीट है. 62 की जंग के समय रेजांग ला पास में 13 कुमाऊं बटालियन की एक टीम को मेजर शैतान सिंह लीड कर रहे थे. यहां पर हड्डियां कड़कड़ा देने वाली सर्दी पड़ती है. चीनियों ने 18 नवंबर 1962 को सुबह-सुबह बर्फ से ढंकी पहाड़ी से गोलियां चलानी शुरू कर दी थीं.

चीन ने PLA के 5 से 6,000 सैनिक हथियारों और तोप के साथ लद्दाख के रेजांग ला में दाखिल हो गए थे. 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशूल वैली की रक्षा में तैनात थी. मेजर शैतान सिंह के पास बस 123 जवान थे. इन जवानों ने चीन के हजारों जवानों को देखकर भी हौंसला नहीं खोया. पूरी ताकत से चीनी घुसपैठियों का सामना किया. मेजर शैतान सिंह गोलियों से घायल होने के बावजूद अपनी टीम की हौसला अफजाई करते रहे.

चीन की सेना के पास तोप और भारी गोला-बारूद था. भारत के सामने सबसे बड़ी दिक्कत थी पहाड़ की एक ऊंची चोटी जो बर्फ से ढंकी थी. इस ऊंची चोटी की वजह से मेजर शैतान सिंह को मदद नहीं भेजी जा सकती थी. मेजर शैतान सिंह ने अपने 123 जवानों में दम भरा और चीन का सामना करने के लिए कहा. तीन दिन तक लड़ाई होती रही. बाद में इसी जगह पर मेजर शैतान सिंह का शव मिला है. अब यहा शैतान सिंह के नाम पर स्मारक है. 123 में से 114 सैनिक शहीद हो गए थे. भारतीय सैनिकों के पराक्रम के आगे चीनी सेना को हथियार डालना पड़ा. चीन के 1300 सैनिक मारे गए थे. जबकि, उनके पास 132 मिमी रॉकेट, 120 मिमी हैवी मोर्टार, 81 और 60 मिमी मीडियम मोर्टार, 75-53 मिमी आरसीएल गन्स से भारी फायरिंग कर रहे थे. अचानक एक मीडियम मशीन गन से चलाई गई गोलियां शैतान सिंह के पेट में लगीं. भारत ने 76 मिमी मोर्टार हमलों से चीनियों को पस्त कर दिया था.

आखिर में चीन ने 21 नवंबर को यहां पर सीजफायर का ऐलान कर दिया था. मेजर शैतान सिंह को भारत सरकार की तरफ से 1963 में परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया था. आज दुनिया रेजांग ला पास को अहीर धाम के नाम से भी जानते हैं. दरअसल 13 कुमाऊं के 123 जवान दक्षिण हरियाणा के उस क्षेत्र से आते थे जिसे अहीरवाल के तौर पर जानते हैं. सभी 123 जवान गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ जिलों से आते थे. मेजर शैतान सिंह रेवाड़ी के रहने वाले थे. रेजांग ला युद्ध में शहीद सैनिकों की याद में रेवाड़ी और गुड़गांव में याद में स्मारक बनाए गए हैं. रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है.

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