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मरेंगे या जीतेंगे… कृषि कानूनों की वापसी पर अड़े किसानों का सरकार को मैसेज….

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केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों और सरकार के बीच आठवें दौर की बातचीत का नतीजा भी वही हुआ जो अब तक होता रहा यानी दोनों पक्ष अपने रुख पर अड़े रहे और सहमति नहीं बन पाई। कई बैठकों में हां या ना में जवाब की मांग वाला पोस्टर दिखाते रहे किसान तीनों कानूनों को वापस लिए जाने की मांग करते रहे, जबकि सरकार ने फिर दोहराया कि वह संशोधन को तैयार है। इस दौरान एक किसान नेता ने कॉपी पर लिखकर जो संदेश दिया वह किसानों के रुख को साफ करने के लिए काफी है। किसान नेता ने लिखा- मरेंगे या जीतेंगे।

कृषि कानूनों पर जारी गतिरोध को दूर करने के लिए प्रदर्शनकारी किसान संगठनों और तीन केंद्रीय मंत्रियों के बीच 8वें दौर की बातचीत हुई। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री और पंजाब से सांसद सोम प्रकाश करीब 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विज्ञान भवन में बात की।

इससे पहले, चार जनवरी को हुई वार्ता बेनतीजा रही थी, क्योंकि किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे, वहीं सरकार ”समस्या वाले प्रावधानों या गतिरोध दूर करने के लिए अन्य विकल्पों पर ही बात करने पर जोर दिया।किसान संगठनों और केंद्र के बीच 30 दिसंबर को छठे दौर की वार्ता में दो मांगों, पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और बिजली पर सब्सिडी जारी रखने को लेकर सहमति बनी थी।

इससे पहले, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने उम्मीद जताई कि शुक्रवार की बैठक में कोई समाधान निकलेगा। चौधरी ने कहा, ”मुझे उम्मीद है कि शुक्रवार को होने वाली बैठक में किसी समाधान तक पहुंचा जा सकेगा। प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों ने पहली बैठक में उठाए गए मुद्दों पर चर्चा की होती तो अभी तक तो हम गतिरोध को समाप्त कर चुके होते। उन्होंने कहा कि पहली बैठक में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग नहीं की गई थी।

बैठक के पहले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेसीसी) की सदस्य कविता कुरूगंटी ने कहा, ”अगर आज की बैठक में समाधान नहीं निकला तो हम 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालने की अपनी योजना पर आगे बढ़ेंगे।” उन्होंने कहा, ”हमारी मुख्य मांग कानूनों को निरस्त करना है। हम किसी भी संशोधन को स्वीकार नहीं करेंगे। सरकार इसे अहम का मुद्दा बना रही है और कानून वापस नहीं ले रही है। लेकिन, यह सभी किसानों के लिए जीवन और मरण का प्रश्न है। शुरुआत से ही हमारे रूख में कोई बदलाव नहीं आया है।”

सरकार के साथ बातचीत से पहले गुरुवार को हजारों किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली। प्रदर्शनकारी किसानों ने कहा कि वे तीनों कानूनों में संशोधन के केंद्र के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे। भीषण ठंड के बावजूद पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के हजारों किसान एक महीने से ज्यादा समय से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर डटे हुए हैं। किसान कृषि कानूनों को निरस्त करने, फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी देने तथा दो अन्य मुद्दों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

इस साल सितंबर में अमल में आए तीनों कानूनों को केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश किया है। सरकार का कहना है कि इन कानूनों के आने से बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकेंगे। दूसरी तरफ, प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से एमएसपी का सुरक्षा कवच खत्म हो जाएगा और मंडियां भी खत्म हो जाएंगी तथा खेती बड़े कारपोरेट समूहों के हाथ में चली जाएगी।

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