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दो बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे माधवराव सिंधिया…

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माधव राव सिंधिया (30 सितंबर 2001): माधवराव सिंधिया का निधन 30 सितंबर 2001 में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी ज़िले में विमान दुर्घटना में हुआ था. माधवराव सिंधिया ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे. माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य व पुत्री चित्रांगदा राजे हैं. माधवराव सिंधिया ने लगातार नौ बार लोकसभा चुनाव जीतकर कीर्तिमान क़ायम किया. कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद माधव राव सिंधिया का नाम उस समय चर्चा में आया था जब 1984 के आम चुनाव में उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता अटलबिहारी वाजपेयी को हराया था.

पूर्व रेलमंत्री माधवराव सिंधिया का 16 साल पहले आज के दिन यानी 30 सितंबर को ही विमान हादसे में निधन हुआ था. उनसे जुड़ीं यादें आज भी भारतीय राजनीति में चर्चित हैं. वाकया उस दौरान का है जब माधवराव सिंधिया दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए.

1989 में चुरहट कांड के चलते अर्जुन सिंह पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा तो राजीव गांधी की इच्छा तत्कालीन रेलमंत्री माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने की थी. उधर, अर्जुन सिंह इस्तीफा न देने की बात पर अड़े थे.

बताया जाता है कि अंतिम समय तक सिंधिया भोपाल में अपने मुख्यमंत्री बनने का इंतजार करते रहे, लेकिन अंतत: एक समझौते के तहत मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बना दिया गया. हालांकि, इसके बाद राजीव गांधी अर्जुन सिंह से खासे नाराज रहे.

अर्जुन सिंह के धुर विरोधी श्यामाचरण शुक्ल को कांग्रेस में वापस ले लिया गया और वोरा के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया. इसके बाद अर्जुन सिंह मध्यप्रदेश की राजनीति में कभी वापस नहीं आए.

मध्य प्रदेश में शुरू से ही दिग्विजय सिंह और माधवराव सिंधिया के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता रही. वर्ष 1993 में जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने, उस समय माधवराव सिंधिया का नाम भी मुख्यमंत्री बनने वालों में शीर्ष पर था. किन्तु, एक बार फिर एकदम से पांसे पलट गए और अर्जुन गुट ने दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया. सिंधिया अब दूसरी बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे.

माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1979 में अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया के विपरीत जाकर कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन कर ली थी. इसे लेकर राजमाता और माधवराव के बीच कटुता की खबरें आईं.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी किताब ‘न दैन्यं न पलायनम्’ में लिखा है कि मां और पुत्र के बीच खाई पैदा हो गई है. वह कम से कम मुझे तो अच्छी नही लगी. जब राजमाता विजयाराजे सिंधिया की मौत हुई, तब माधवराव की उनसे बातचीत बंद थी. जब वे अपनी मां के अंतिम संस्कार के लिए आए तो वहीं पर फूट-फूट कर रोने लगे. तब लोगों ने उन्हें ढांढस बंधाया था.

हालांकि, वर्ष 1971 में महज 26 साल की उम्र में माधवराव सिंधिया जनसंघ के समर्थन से लड़े थे. वर्ष 1977 में माधवराव ने निर्दलीय रूप से ग्वालियर का चुनाव लड़ा. माधवराव के लिए यह चुनाव जीतना लोहे के चने चबाने जैसा था. जिसके बाद राजमाता को उनके पक्ष में अपील करनी पड़ी, तब जाकर माधवराव अकेले ऐसे प्रत्याशी थे, जो मध्य प्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में से एक पर निर्दलीय विजयी हुए. बाकी पर जनसंघ की जीत हुई.

माधवराव सिंधिया और संजय गांधी को हवाई जहाज उड़ाने का बहुत शौक था. दोनों सफदरजंग हवाई पट्टी पर हवाई जहाज उड़ाने जाते थे. उस समय संजय गांधी के पास नया लाल रंग का जहाज पिट्स एस-2ए वापस आया था, क्योंकि इस विमान को जनता पार्टी की सरकार ने जब्त कर लिया था.

इस जहाज को संजय और माधवराव सिंधिया उड़ाने वाले थे, लेकिन किसी वजह से सुबह सिंधिया की नींद नहीं खुल पाई और अकेले संजय उसे उसे उड़ाने पहुंच गए. यह उड़ान संजय के लिए अंतिम उड़ान बनकर रह गई, क्योंकि जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया और संजय गांधी की मृत्यु हो गई.

इसके बीस साल बाद 30 सिंतबर 2001 को माधवराव सिंधिया की भी एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस बार 8 सीटों वालेसेसना सी-90 हवाई जहाज से माधवराव सिंधिया कानपुर में एक चुनावी सभा का संबोधित करने जा रहे थे. इस हादसे में चार पत्रकार भी मारे गए थे.

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